Dhaaraa370

Friday 11 October 2019

Global classes 30.09.19

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 30/09/2019 - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞 ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद् - द्वितीय अध्याय (नवरात्रि सत्र)
🎥 कक्षा संचालन. आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 शिक्षक बैंच. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी"
🌸 परम तेजस्वी शुकदेव मुनि का पंचकोश गर्भावस्था में परिष्कृत हो चुका था| परमपूज्य गुरुदेव की माता जी भी जब गुरुदेव गर्भ में थे भागवत का पाठ - श्रवण, दान पुण्य आदि में निरत रहती थीं| गर्भावस्था में मां के:-
१. सात्विक भोजन से शिशु का अन्नमयकोश स्वस्थ/परिष्कृत
२. सूर्योपासना से प्राणमयकोश स्वस्थ
३. स्वाध्याय से मनोमयकोश स्वस्थ
४. परिवार में आत्मीयता/सहृदयता/सद्भावना से विज्ञानमयकोश स्वस्थ
🌸 शरीर को अयोध्या (जिसे कोई युद्ध में हरा ना सके) भी कहा गया है| अन्नमयकोश की साधना से हम शरीर को इतनी मजबूती प्रदान कर सकते हैं|
🌸 भेद दर्शनं अज्ञानं - भेद दर्शन अज्ञान है| आसक्ति ही निषेधात्मक चिंतन (Negative thoughts) है|
🌸 माता लक्ष्मी का आसन कमलासन है| अर्थात् जो स्थितप्रज्ञ है वही धनवान है| ज्ञानवान ही धनवान है, ज्ञानवान ही बलवान है, ज्ञानवान ही जिंदा है| स्थित प्रज्ञ ही कर्मों में लिप्त नहीं होता|
🌸 हमारे जो भी कार्य (duties, responsibilities) हैं उसे हम ईश्वरीय कार्य समझें| शरीर को स्वस्थ, बलवान, बुद्धिमान, प्रेमी (आत्मीय) बनाना भी हमारी duty है| जब हम ईश्वरीय कार्य समझ कर कार्य करेंगे तो प्रमाद आसक्ति आदि से सदैव दूर रहेंगे| ईशावास्योपनिषद् में इसे ही "तेन त्येक्तन भूंजीथा" कहा गया है|
🌸 महर्षि अरविंद ने स्थितप्रज्ञ को ही योग कहा है| वह कहते हैं -
१. शुद्धि - पंचकोश शुद्धि
२. मुक्ति - आत्मिक रूझान| हमने संसार को पकड़ रखा है ना कि संसार ने हमें| हमारी असफलता के लिए हमारे अलावा कोई भी जिम्मेदार नहीं है|
३. सिद्धि - स्थितप्रज्ञ|
🌸 लाखों जन्म की यात्रा को हमें एक ही जन्म में पूरा करना हो तो क्रियायोग (साधना) की आवश्यकता होती है|
🌸 मंत्र संख्यां ४१ - राजा जनक कहते हैं - हे परमज्ञानी शुकदेव जी,
👉 जो वासनाओं का निःशेष परित्याग कर देता है, वही वास्तविक श्रेष्ठ त्याग है उसी विशुद्धावस्था को ज्ञानीजनों ने मोक्ष कहा है|
👉 पुनः जो शुद्ध वासनाओं से युक्त है - जो अनर्थ शुन्य जीवन वाले हैं जो ज्ञेय तत्व के ज्ञाता हैं, वे ही मनुष्य पूर्ण जीवन मुक्त कहे जाते हैं|
✍ वासना (जो वास करता है) दो प्रकार के हैं -
१. अशुद्ध वासना का परित्याग
२. शुद्ध वासना - आदर्शों का संवर्धन
हमें असफलता मिलती है की हम एकपक्षीय (इकतरफा) सोचते हैं|
👉 पदार्थों की भावनात्मक दृढ़ता को ही बंधन और वासनाओं की क्षीणता को ही मोक्ष कहा गया है|
🌸 मंत्र संख्या ४२ - जिसे तप आदि साधना के अभावों में स्वभाववश ही सांसारिक भोग अच्छे नही लगते हैं वही जीवन मुक्त है|
🌸 मंत्र संख्या ४३ - जो प्रतिपल प्राप्त होने वाले सुखों या दुखों में आसक्त नहीं होते तथा जो ना हर्षित होता है और ना दुखी होता है वही जीवन मुक्त कहलाता है|
🌸 मंत्र संख्या ४४ - जो हर्ष, अमर्श, भय, काम, क्रोध एवं शोक आदि विकारों से मुक्त रहता है वही जीवन मुक्त कहलाता है|
🌸 मंत्र संख्या ४५ - जो अहंकार युक्त वासनाओं का अति सहजता से त्याग कर देता है तथा जो चित्त के अवलंबन में जो सम्यक रूप से त्याग भाव रखता है  - वही जीवन मुक्त है|
🌸 मंत्र संख्या ५४ - जो ज्ञानी पुरूष खट्टे, चटपटे, कड़वे, नमकीन, स्वादयुक्त एवं आस्वाद को एक जैसा मानकर भोजन करता है वही जीवन मुक्त है|
Note - बिना तन्मात्रा साधना के मन के layer को पार नहीं किया जा सकता है|
🌸 श्रीकृष्ण अर्जून को कहते हैं - दुख तभी होगा जब मन का विषयों में चिपकाव होगा| संसार में सभी चीजें आनंद से भरी हैं आनंद लें किंतु चिपकें नहीं| दिमाग की खुजली अर्थात् सुख दुख विषय से चिपक जाना दुख का कारण है| स्थितप्रज्ञ अर्थात् संसार को पकड़ा तो भी आनंद में और संसार को छोड़ा तो भी आनंद में|
(🤔 हर हाल मस्त - हर चाल मस्त)
🌸 सर्वकर्मनिराकरणंआवाहनं - सभी कर्मों का disposal (आसक्ति रहित निर्वहन) ही आवाह्न है| हम अपनी किसी भी duty को ईश्वर से अलग ना समझें - बस चिपकें नहीं - disposal करते रहें| स्थितप्रज्ञ वाले layer में लाने के लिये श्रीकृष्ण ने अर्जून को गीता का द्वितीय पाठ समझाया| कर्म करें लेकिन उसकी बंधनकारी माध्यम पाप-पुण्य में ना फंसे|
(🤔 निर्वाण! क्रिया होती है किंतु प्रतिक्रिया नहीं होती है
🌞 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः - अखंडानंदबोधाय - जय युगॠषि श्रीराम 🙏

Global classes 01.10.1

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 01/10/2019 - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद् - द्वितीयोध्याय (नवरात्रि सत्र)
🎥 कक्षा संचालन - आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 शिक्षक बैंच. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌸 परम तेजस्वी शुकदेव मुनि परम पद को प्राप्त कर चूके थे| वो राजा जनक के पास उसके प्रमाणिकता के लिये गये थे| राजा जनक परम सन्यासी कहे जाते हैं|
🌸 याज्ञवल्क्य ॠषि ब्रह्म ज्ञानियों में श्रेष्ठ थे| उन्होंने हर एक ज्ञानेनद्रियों में भी ब्रह्म का साक्षात्कार किया था| संसार के हर परिवर्तनशील सत्ता में एक अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता विद्यमान है जिसे ज्ञान/प्रज्ञा के नेत्रों से देखा जा सकता है|
🌸  संत कबीरदास जी आनंदमयकोश के layer को पार कर लिये थे| वो कहते हैं - 
साधो! सहज समाधि भली।
गुरु प्रताप भयो जा दिन से सुरति न अनंत चली॥
आँखन मूँदूँ कानन रुँदूँ, काया कष्ट न धारुँ।
खुले नयन से हँस-हँस देखूँ सुन्दर रुप निहारुँ॥
कहूँ सोई नाम, सुनूँ सोई सुमिरन, खाउँ पीउँ सोई पूजा गृह उद्यान एक सम लेखूँ भाव मिटाउँ दूजा॥
जहाँ - जहाँ जाऊँ सोई परिक्रमा जो कछु करूं सो सेवा।
जब सोउँ तब करूं दंडवत, पूजूँ और न देवा॥
शब्द निरंतर मनुआ राता, मलिन बासना त्यागी।
बैठत उठत कबहूँ न विसरै, ऐसी ताड़ी लागी॥
कहै कबीर यह उन मनि रहनी सोई प्रकट कर गाई।
दुख सुख के एक परे परम सुख, तेहि सुख रहा समाई॥
🌸 श्री कृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन आप युद्ध भी करो और मेरा स्मरण भी| युद्ध means duty. योगस्थः कुरू कर्मणि|
(🤔 स्मरण means peace, happiness, balance ....)
🌸 आसक्ति ही मृत्यु है| जीवन में उतार चढ़ाव की कैसी भी स्थिति रहे, मन को संतुलित रखना योग है| इसे अच्युतावस्था कहते हैं|
🌸 गुरूदेव ने कहा है स्वादेन्द्रिय और जननेन्द्रिय को साधना अति दुष्कर है| महोपनिषद्  (मंत्र संख्या ५४) - जो ज्ञानी पुरूष खट्टे, चटपटे,कड़वे, नमकीन, स्वादयुक्त एवं अस्वाद को एक जैसा मानकर भोजन करता है वही जीवन मुक्त है|
स्वाद की कोई अपनी सत्ता नहीं होती है| एक ही भोजन का भूखे पेट और पेट भरने के बाद स्वाद अलग हो जाते हैं| मनपसंद भोजन का नाम सुनते ही मूंह में पानी आ जाता है| उसका taste memory में save रहता है| सारे taste आकाश में विद्यमान हैं| दूध को जला कर खोये बनाते हैं तो खोये का एक बड़ा भाग आकाश में चला जाता है| रस तन्मात्रा की साधना में योगी आकाश से मनोवांछित उपयुक्त रसों को ले लेते हैं|
नीम के छाल का काढ़ा एक बार पीने से ६ महीने तक बुखार नहीं होने देते| Antibiotics बूरे के साथ ही साथ अच्छे जीवाणु को भी मारता है, जबकि नीम बुरे जीवाणु को मारता है और अच्छे जीवाणु को support करता है|
रस तन्मात्रा साधना में अच्छी चीजें को चख कर उसे अपने subconscious mind में save कर लेंवें और लाभान्वित करने वाली कड़वी चीजें का सेवन करते समय Honey जैसे मीठे taste को memorise कर नीम को शहद की तरह सेवन कर सकते हैं|
🌸 शब्द तन्मात्रा साधना - अगर किसी के शब्द हमारे विचार के प्रतिकूल हैं तो हमें उस विचार पर त्राटक करना चाहिए| शब्दो वै ब्रह्मा - शब्द ही ब्रह्म है तो उनके शब्द हमें कष्ट क्यों महसुस हुआ, अर्थात् हमारे साधना में कमी है|
👉 वाक्य - शब्दों के मेल को वाक्य कहते हैं| अतः वाक्य को समझने के लिये शब्दों पर त्राटक कीजिये|
👉 शब्द - अक्षरों के मेल को शब्द कहते हैं| अतः शब्द को समझने के लिये अक्षरों पर त्राटक कीजिये|
👉 अक्षर  - अ + क्षर अर्थात् जिसका क्षर (क्षय) नहीं किया जा सके वो कौन है - परब्रह्म|
❤️ परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं आत्मसुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है| महर्षि रमन बिना बोले ही विश्व की सारी शंकाओं का समाधान करते थे| गुरुदेव ने विश्व की सारे लाइब्रेरी के पुस्तकों के भाष्य लिख डाले| हिमालय में तपस्यारत् ॠषि सत्तायें वहीं से सारे संसार का कल्याण कर रही हैं|
🌸 अग्नि हमें तेजस्विता प्रदान करती है|
🌸 महोपनिषद् (मंत्र संख्या ५७) जो उद्वेग और आनंद से रहित हो (सुसंतुलित मनःस्थिति| यहां आनंद रहित अर्थात सुख - दुख आदि विषयों से उतपन्न आनंद को छोड़ने की बात हो रही है|)
तथा जो शोक और हर्षोल्लास में समान भाव एवं परिष्कृत बुद्धि से संपन्न हो|
🌸 क्षुधा - पिपासा पर नियंत्रण| किसी भी अवस्था में संतुलित रहें| भावों पर भी कालिमा चढ़ती है - विज्ञानमयकोश की साधना में हम भावों के कचरे को हटाते हैं| खाना नही मिला - सारे घर को आसमान पर उठा लिया जैसे सभी लोग आपके नौकर चाकर बैठे हैं|
🌸 महोपनिषद् (मंत्र संख्या - ६०) जिसने संसारिक विषयों की प्राप्ति की कामना का त्याग कर दिया है जो चित्त में रहते हुए भी चित्त रहित हो गया है वही पुरूष जीवनमुक्त है|

Global classes 02.10.2019

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 02/10/2019 - नवरात्रि सत्र - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌🌞
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📖 विषय. महोपनिषद्  स्वाध्याय
📡 प्रसारण - आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 प्रशिक्षक. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞 महोपनिषद् तृतीय अध्याय में ब्रह्म ज्ञानी ॠभु अपने पुत्र निदाघ को ब्रह्म ज्ञान दे रहे हैं| इससे हमें यह शिक्षा/प्रेरणा मिलती है पिता, बड़े एवं गुरू संज्ञक को सदैव ब्रह्म ज्ञान की प्रेरणा देती रहनी चाहिए| हम केवल प्रेरणा दे सकते हैं, बांकी हर एक जीव को ईश्वर ने स्वतंत्र सत्ता दी है की वह ग्रहण करे या ना करे| अतः हमें प्रेरित करना चाहिए ना की लादना चाहिए|
🌸 यह आनंद की कक्षा है|
ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन विमल सहज सुख राशी|
सो माया वश भयो गोसाईं बंध्यो जीव मरकट के नाहीं ||
हम व्यक्ति के गुण-दोष को देख कह देते हैं आदमी खराब है| जबकि आत्मा कभी भी खराब नहीं हो सकती, उसके बाह्य कलेवर (छिलका - पंचकोश की परतें) विकृत हो सकती है| आत्मा और शरीर दोनों अलग अलग हैं हमें यह समझना होगा|  परम दयालु सत्ता ने आत्मसत्ता के उपर सुरक्षा हेतु पांच परत (Five Layers - पंचकोश) दिये हैं| इस पर कालिमा/विकृति आने से हम अपने आत्मस्वरूप को भूल जाते हैं|
अतः पंचकोश - विकृत होने पर बंधन है, तो परिष्कृत होने पर मोक्ष का साधन है| पंचकोश हमारा लक्ष्य नहीं वरन् आत्म लक्ष्य की प्राप्ति का साधन है|
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार की मिश्रित controller अंतःकरण research करता है|
लक्ष्य को वरण करने की प्रबल जिज्ञासा अर्थात् अभीप्सा होनी चाहिए| आत्मा आनंदमय है तो इसे जानने की अभीप्सा होनी चाहिये|
🌸 जो हर क्षण मनन करते रहते हैं वो मुनि कहलाते हैं| और जो मनन के साथ शोध कार्य practical करते हैं वो ॠषि कहलाते हैं|
🌸 हम सूर्योपासक हैं गायत्री (सविता) की उपासना करते हैं|
क्या सूर्य boundary में बंधते हैं - भेदभाव करते हैं❓
दीपक तले कालिमा हो सकती है लेकिन सूर्य तले नहीं|
सूर्य साधक जीवन के सभी क्षेत्रों में सबल/उज्जवल होता है| वह परावलंबी नहीं हो सकता|
१. ब्रह्मा - ज्ञान कम - तो भी कष्ट
२. विष्णु - धन कम - तो भी कष्ट
३. महेश - शक्ति कम - तो भी कष्ट
एवं इन तीनों की अत्यधिकता भी क्रमशः अहंकारी, उच्छृंकल एवं उदण्ड बना सकती है अतः हमें ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि व महेश ग्रंथि तीनों को फोड़ना भी पड़ता है| अतः हमें Balance (समन्वय - संतुलन) की साधना करनी होती है|
🌸 साधना में प्रमाद नहीं करनी चाहिए| साधना के प्रति हमारा concept clear होनी चाहिए नही तो practical सही परिणाम देंगे| गायत्री माता के मूर्ति में एक हाथ में वेद - Concept द्योतक, दूसरे हाथ में कमंडल - practial द्योतक एवं इसके बाद हंस पर सवार अर्थात् संसार के अमृत - विष तत्वों में अमृत तत्व को ले लेगा|
🌸 निदाघ मुनि साढ़े तीन करोड़ तीर्थ स्थल में स्नान किये अर्थात् उस समय हर एक गाँव तीर्थ स्थल होगा|
👉 वो कहते हैं - यह जगत उतपन्न होता है मरने के लिये, पुनः मरता है जन्मने के लिये - अर्थात् वो पदार्थ जगत के ज्ञान-विज्ञान को समझ गये थे|
👉 ये सभी पदार्थ लौह शलाका के सदृश परस्पर पृथक रहते हुए मानसिक कल्पना रूपी चूंबक द्वारा एकत्रित होते रहते हैं|
Hydrogen (H2) जलाता है एवं Oxygen (O2) इंधन है, एक जलता है तो दूसरा जलाता है जबकि इन दोनों का संयोग Water ( 2H2 + O2 = 2H2O) जल ठंडा है - अर्थात् दोनों जलाने वाले तत्वों के बीच कुछ ऐसा तत्व था जो दोनों को मिलाकर दोनों के गुण धर्म को बिल्कुल परिवर्तित कर देती है यही chemistry है|
अर्थात विचारों (Concepts) के साथ श्रद्धा रूपी रस का समावेश करना होता है| अतः research में concept के साथ श्रद्धा का समावेश करना होता है|
🌸 निदाघ मुनि कहते हैं - सांसारिक पदार्थों से, धन आदि से स्वजन संबंधियों आदि से विरक्ति हो रही है| इन सबसे आनंद नहीं मिल सकता है|
१. पदार्थों से आसक्ति - लोभ
२. संबंधों से आसक्ति - मोह
३. मान्यताओं से आसक्ति - अहंकार
🌸 निदाघ मुनि कहते हैं - वायु को लपेटना, आकाश को खंड खंड करना एवं जल को गुंथन करने में भले ही संभव हो जाये, किंतु जीवन में आस्था एवं विश्वास रखना संभव नहीं हो पाता|
ऐसी स्थिति आने पर ही आत्म ज्ञान का संधान करना संभव बन पड़ता है| जब तक संसार से चिपकाव है आसक्ति है तब तक संसार की नश्वरता का ज्ञान नहीं होता और आत्मज्ञान संभव नहीं हो पाता|  ईश्वर की definition नहीं है वह अपरिभाषित (Undefined) है, असीमित है, अपरीमित है| अतः मान्यताओं में ना फंसे| शरीर के साथ मान्यता - अन्नमयकोश में, पद के साथ मान्यता - प्राणमयकोश, स्वभाव के साथ मान्यता - मनोमयकोश में फंसे हैं|

Global classes 03.10.19

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 03/10/2019 - नवरात्रि सत्र - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद् - चतुर्थ अध्याय|
📡 प्रसारण - आ॰ अमन भैया। 💐
🌞 शिक्षक बैंच. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌸 जो स्वेच्छा से अाते हैं वह अवतरण प्रक्रिया में आते हैं एवं जो कर्मफल के तहद आते हैं वह पुनरावर्तन प्रक्रिया में|
🌸 चेतना की एक ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेना जिससे पुनरावर्तन ना हो|
🌸 आत्म अनुभव को आत्म बोध कहते हैं | प्रज्ञोपनिषद् में कहते हैं अध्यात्म का उद्देश्य ईश्वर की विवेचना नहीं वरन् उसे इस मानव शरीर में अनुभव करना है|
🌸 मंत्र संख्या १. अपने पुत्र निदाघ मुनि की सभी की बातों को सुनकर ॠषिवर ॠभु ने कहा - हे प्रभु|
ॠषिवर अर्थात् ॠषियों में श्रेष्ठ, वो अपने पुत्र को कहते हैं - हे प्रभु! तुम ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ हो| ........
❤️ देखें ॠषि परंपरा को - अपने बच्चे/Juniors के प्रति सम्मान की भावना .... क्या हम ऐसा करते हैं❓
🌸 मंत्र संख्या ३. मोक्षद्वार के ४ द्वारपाल:-
१. शम (मनोनिग्रह)
२. विचार
३. संत
४. सत्संग
यदि इनमें से कोई एक का भी आश्रय प्राप्त कर लिया जाये तो शेष तीन सहजतापूर्वक प्राप्त हो जाते हैं|
👉 ईश्वर को सर्वव्यापी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में शिरोधार्य करेंगे|
👉 तब तक त्राटक करेंगे जब तक उस सर्वव्यापी ईश्वर को देख ना लें| त्राटक means concentration, ध्यान means depth.
🌸 मंत्र संख्या ४-५. सर्वप्रथम तप, दम (इन्द्रिय निग्रह), शास्त्र एवं सत्संग के द्वारा सद्ज्ञान को बढ़ाना चाहिए| अपनी आत्मा के अनुभव, शास्त्रों एवं गुरु के वचनों का उपदेश से सतत अभ्यास द्वारा आत्मचिंतन करना चाहिए|
🌸 मंत्र संख्या ७. जो चित्त का अकतृत्व है वही चित्त वृत्तियों का निरोध अर्थात् समाधि कही गयी है यही कैवल्यावस्था एवं परम कल्याणकारी परम शांति कहलाती है|
👉 संसार के यथार्थता को समझने के बाद अकतृत्व अर्थात् चित्त वृत्त का निरोध हो जाता हैं|
🌸 मंत्र संख्या ८. इस जगत के संपूर्ण पदार्थों में आत्म भावना का सम्यक रूप से त्याग करके संसार में गूंगे, अंधे, बहरे तुम्हारे रहने से ही संभव है|
👉 सभी चीजों में दोनों सत्ता है - जड़ (संसार), चेतन (आत्मिकी)| अतः हमें दोनों अर्थों को साथ में लेकर चलना चाहिये|
हमें अनुचित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए| अगर हमारे कान तक वह पहूंच जाता है तो उसके अंदर के ईश्वर को देख लेवें - क्योंकि शब्द ही ब्रह्म है|
👉 युद्ध (Duty) करें - किंतु ईश्वरीय कार्य समझ कर करें - अनासक्त भाव से करें - कुशलतापूर्वक करें|
🌸 मंत्र संख्या ११. सांसारिक कार्यों को सतत करते हुए भी नित प्रबुद्धचित्त होकर आत्मा के एकत्व को जानकर प्रशान्त रहने वाले महासागर के सदृश निश्चल एवं स्थिरचित्त  बने रहो| इसमें कल्याण की संभावनायें है|
🌸 मंत्र संख्या १२. यह आत्मज्ञान वासना रूपी तृण को दग्ध करने वाली अग्नि के सदृश है| इसे समाधि कहते हैं| केवल मौन रहकर बैठना ही समाधि नहीं है|
🌸 मंत्र संख्या १७-२० सत्व गुण में स्थित मनुष्य स्वर्णकमल  की भांति रात्रिकाल आपत्तियों में कुम्हलाते नहीं हैं| वे प्राप्त भोगों के अतिरिक्त अन्य पदार्थों की इच्छा नहीं करते, वरन शास्त्रोक्त मार्ग में भ्रमण करते हैं| वो स्वतः अपने मन के अनुकूल रहकर ही  मैत्री, करूणा, मुदिता, उपेक्षा आदि गुणों से विभुषित रहते हैं|
🌸 मंत्र संख्या २१. प्राज्ञों संतजनों के साथ हमें प्रयत्नपूर्वक सदैव चिंतन करने रहना चाहिये - मैं कौन हूँ?
परमपूज्य गुरुदेव ने एक पुस्तक लिखी है मैं कोन हूँ? इसे सभी थाती के तरह अपने साथ रखें|
🌸 मंत्र संख्या २२. यह विराट विश्व प्रपंच किस प्रकार प्रादुर्भाव हुआ? कभी निरर्थक कार्यों में ना लगा रहे तथा अनार्य पुरूष के संग से सदैव अपने को बचाता रहे|
🌸 मंत्र संख्या २३.सभी की संघारक, मृत्यु के प्रति उपेक्षा भाव से ना देखे| यदि उपेक्षा करनी ही है तो शरीर, अस्थि, मांस, रक्त आदि को घृणित मानकर इसकी उपेक्षा करनी चाहिए|
🌸 मंत्र संख्या २५.परमात्म तत्व के विषय में गुरु एवं शास्त्र के अनुसार बताये हुए मार्ग से स्वानुभूति से मैं ही ब्रह्म हूँ - ऐसा जानकर शोक रहित होना चाहिये|
🌸 मंत्र संख्या २६. गुरू एवं शास्त्र वचनों  के अनुसार तथा अन्तः अनुभूति के माध्यम से जो अन्तः की शुद्धि होती है उसी के सतत अभ्यास से आत्म साक्षात्कार किया जा सकता है|
🌸 अध्यात्मिकी -  मैं कौन हूँ? (को अहं) ➡ से लेकर मैं ब्रह्म हूँ (सो अहं) की यात्रा है|
🌞 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः - अखंडानंदबोधाय - जय युगॠषि श्रीराम 🙏

Thursday 3 October 2019

शिव के गले में सर्प , मस्तक से गंगा की धारा का ज्ञान विज्ञान (रहस्य भेद)







जीभ से अपने को आत्मा कहने वाले अनेक मिल जायेंगे पर जो दृढ विश्वास के साथ यह अनुभव करता है कि  “ मैं विशुद्ध आत्मा हूँ और आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं, वे हीं आत्मज्ञानी कहलाते हैं. लेकिन अनुभव प्राप्त करने से पहले यह जान लेना जरुरी होता है कि क्या हम सचमुच शरीर से अलग हैं? क्या शरीर को नियंत्रित करने वाला कोई ईश्वरीय सत्ता है? क्या ब्रह्मा, विष्णु, महेश हीं वो तीन ईश्वरीय विभाग हैं जो इस संसार को रचते हैं, पालते हैं और विनाश करते हैं?इन विषयों को गहराई में समझने के लिए हमें शरीर से परे शुक्ष्म स्तर पर जाना होगा. जीव के सूक्ष्म विज्ञान को समझना होगा . जीव के तीन ग्रंथियां (knots) होते हैं, जो उर्जा केंद्र होते हैं, 


इन ग्रंथियों के गुण भेद निम्न प्रकार हैं.

व्यावहारिक जीवन में इन्हें इस तरह से जाना जाता है.

दार्शनिक दृष्टि  से इन्हीं गुणों को इस तरह से देखा जाता है.

हमारे ऋषियों ने सूक्ष्म अन्वेषण के आधार पर यह बताया है कि तीन गुण, तीन शरीरों या तीन क्षेत्रों का व्यवस्थित या अव्यवस्थित होना हमारे शरीर के अदृश्य केन्द्रों पर निर्भर करता है .

साधनात्मक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए जो व्यक्ति विज्ञानमय कोष की स्थिति में पहुँच जाता है तो उसे अपने भीतर तीन कठोर, गठीली, चमकदार गांठें दिखता है, जिसका विवरण इस प्रकार है 


इन तीन महाग्रन्थियों के दो  सहायक ग्रंथियां भी होती हैं, जो मेरुदंड (Spine) स्थित सुषुम्ना नाड़ी के मध्य में रहने वाली ब्रह्मनाडी के भीतर रहती हैं. इन्हें हीं चक्र भी कहते हैं. 



   रूद्र ग्रंथि के शाखा ग्रंथियां मूलाधार चक्र और स्वधिस्थान चक्र कहलाती है .


विष्णु ग्रंथि की दो शाखायें मणिपुर चक्र और अनाहत चक्र कहलाते हैं .
ब्रह्म ग्रंथि के शाखायों को विशुद्धि चक्र एवं आज्ञा चक्र कहते हैं.



आकार



१ रूद्र ग्रंथि : ग्रंथि का आकार बेर के सामान  ऊपर को नुकीला, नीचे को भारी, और पेंदे में गड्ढा लिए होता है, इसका वर्ण कालापन मिला हुआ लाल होता है.

  इस ग्रंथि के दक्षिण भाग को रूद्र और वाम भाग को काली कहते हैं. दक्षिण भाग के गह्वर में प्रवेश करके देखते हैं तो उर्ध्व में स्वेत रंग की छोटी सी नाड़ी हल्का सा स्वेत रस प्रवाहित करती है (शिव के मस्तक पर गंगा की धारा ) एक तंतु पीले वर्ण की ज्योति सा चमकता रहता है (चन्द्रमा), मध्य भाग में एक काले वर्ण की नाड़ी सांप की तरह मूलाधार से लिपटी हुई है ( गले में नाग), प्राण वायु का जब इस भाग से संपर्क होता है तो डिम डिम जैसी ध्वनि उसमें से निकलती है (डमरू).

  ऋषियों ने रूद्र (शिव) का सुन्दर चित्र इन्हीं गुणों को संकेत रूप में दिखाने के लिए अंकित किया है ताकि भगवान शंकर का ध्यान इन गुणों को ध्यान में रखकर किया जा सके. इस ग्रंथि का वाम भाग जिस स्थिति में उसी के अनुरूप काली का सुन्दर चित्र सूक्ष्मदर्शी अध्यात्मिक चित्रकारों ने अंकित कर दिया हैं.



  विष्णु ग्रंथि : 


  अगर विष्णु भगवन के विग्रह को देखा जाय तो विष्णु ग्रंथि के सारे गुणधर्म सहज हीं पता लग जाएगा . जैसे कि नील वर्ण, गोल आकार, शंख ध्वनि, कौस्तुभ मणि, बनमाला इत्यादि उस मध्य ग्रंथि का सहज प्रतिबिम्ब हैं.

  

  ब्रह्म ग्रंथि :

ब्रह्म ग्रंथि मध्य मस्तिष्क में है. इससे ऊपर सहस्त्रार शतदल कमल है, यह ग्रंथि ऊपर से चतुष्कोण और नीचे से फैली हुई है, इसका निचे का एक तंतु ब्रह्मा-रंध्र से जुड़ा हुआ है. इसी को सहस्त्रमुख वाले शेष नाग के शैया पर लेटे हुए भगवान की नाभि कमल से उत्पन्न चार मुखवाला ब्रह्मा चित्रित किया है. इसी के वाम भाग को चतुर्भुजी सरस्वती कहते हैं. वीणा झंकार से इस  क्षेत्र में ऊंकार ध्वनि निरंतर गुंजित होता रहता है 

यह तीन ग्रंथियां जब सुप्त अवस्था में रहती हैं, बंधी हुई रहती हैं तब तक जीव साधारण दीन हीन अवस्था में पड़ा रहता है, पर जब इनका खुलना प्रारंभ होता है तो उनका वैभव बिखर पड़ता है.

अध्यात्म के रास्ते पर चलकर इन बंधनों को खोला जा सकता है और  भौतिक एवं दैविक सभी लक्ष्यों को हासिल करना आसान बनाया जा सकता है.

टिपण्णी- अगर अध्यात्म के ज्ञान विज्ञान से जुड़े किसी भी प्रकार का शंका हो तो बताएं ताकि वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को बढ़ावा मिल सके .


How to apply for enhanced Pension (EPS95) on EPFO web site: Pre 2014 retirees

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