Dhaaraa370

Friday 11 October 2019

Global classes 30.09.19

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 30/09/2019 - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞 ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद् - द्वितीय अध्याय (नवरात्रि सत्र)
🎥 कक्षा संचालन. आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 शिक्षक बैंच. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी"
🌸 परम तेजस्वी शुकदेव मुनि का पंचकोश गर्भावस्था में परिष्कृत हो चुका था| परमपूज्य गुरुदेव की माता जी भी जब गुरुदेव गर्भ में थे भागवत का पाठ - श्रवण, दान पुण्य आदि में निरत रहती थीं| गर्भावस्था में मां के:-
१. सात्विक भोजन से शिशु का अन्नमयकोश स्वस्थ/परिष्कृत
२. सूर्योपासना से प्राणमयकोश स्वस्थ
३. स्वाध्याय से मनोमयकोश स्वस्थ
४. परिवार में आत्मीयता/सहृदयता/सद्भावना से विज्ञानमयकोश स्वस्थ
🌸 शरीर को अयोध्या (जिसे कोई युद्ध में हरा ना सके) भी कहा गया है| अन्नमयकोश की साधना से हम शरीर को इतनी मजबूती प्रदान कर सकते हैं|
🌸 भेद दर्शनं अज्ञानं - भेद दर्शन अज्ञान है| आसक्ति ही निषेधात्मक चिंतन (Negative thoughts) है|
🌸 माता लक्ष्मी का आसन कमलासन है| अर्थात् जो स्थितप्रज्ञ है वही धनवान है| ज्ञानवान ही धनवान है, ज्ञानवान ही बलवान है, ज्ञानवान ही जिंदा है| स्थित प्रज्ञ ही कर्मों में लिप्त नहीं होता|
🌸 हमारे जो भी कार्य (duties, responsibilities) हैं उसे हम ईश्वरीय कार्य समझें| शरीर को स्वस्थ, बलवान, बुद्धिमान, प्रेमी (आत्मीय) बनाना भी हमारी duty है| जब हम ईश्वरीय कार्य समझ कर कार्य करेंगे तो प्रमाद आसक्ति आदि से सदैव दूर रहेंगे| ईशावास्योपनिषद् में इसे ही "तेन त्येक्तन भूंजीथा" कहा गया है|
🌸 महर्षि अरविंद ने स्थितप्रज्ञ को ही योग कहा है| वह कहते हैं -
१. शुद्धि - पंचकोश शुद्धि
२. मुक्ति - आत्मिक रूझान| हमने संसार को पकड़ रखा है ना कि संसार ने हमें| हमारी असफलता के लिए हमारे अलावा कोई भी जिम्मेदार नहीं है|
३. सिद्धि - स्थितप्रज्ञ|
🌸 लाखों जन्म की यात्रा को हमें एक ही जन्म में पूरा करना हो तो क्रियायोग (साधना) की आवश्यकता होती है|
🌸 मंत्र संख्यां ४१ - राजा जनक कहते हैं - हे परमज्ञानी शुकदेव जी,
👉 जो वासनाओं का निःशेष परित्याग कर देता है, वही वास्तविक श्रेष्ठ त्याग है उसी विशुद्धावस्था को ज्ञानीजनों ने मोक्ष कहा है|
👉 पुनः जो शुद्ध वासनाओं से युक्त है - जो अनर्थ शुन्य जीवन वाले हैं जो ज्ञेय तत्व के ज्ञाता हैं, वे ही मनुष्य पूर्ण जीवन मुक्त कहे जाते हैं|
✍ वासना (जो वास करता है) दो प्रकार के हैं -
१. अशुद्ध वासना का परित्याग
२. शुद्ध वासना - आदर्शों का संवर्धन
हमें असफलता मिलती है की हम एकपक्षीय (इकतरफा) सोचते हैं|
👉 पदार्थों की भावनात्मक दृढ़ता को ही बंधन और वासनाओं की क्षीणता को ही मोक्ष कहा गया है|
🌸 मंत्र संख्या ४२ - जिसे तप आदि साधना के अभावों में स्वभाववश ही सांसारिक भोग अच्छे नही लगते हैं वही जीवन मुक्त है|
🌸 मंत्र संख्या ४३ - जो प्रतिपल प्राप्त होने वाले सुखों या दुखों में आसक्त नहीं होते तथा जो ना हर्षित होता है और ना दुखी होता है वही जीवन मुक्त कहलाता है|
🌸 मंत्र संख्या ४४ - जो हर्ष, अमर्श, भय, काम, क्रोध एवं शोक आदि विकारों से मुक्त रहता है वही जीवन मुक्त कहलाता है|
🌸 मंत्र संख्या ४५ - जो अहंकार युक्त वासनाओं का अति सहजता से त्याग कर देता है तथा जो चित्त के अवलंबन में जो सम्यक रूप से त्याग भाव रखता है  - वही जीवन मुक्त है|
🌸 मंत्र संख्या ५४ - जो ज्ञानी पुरूष खट्टे, चटपटे, कड़वे, नमकीन, स्वादयुक्त एवं आस्वाद को एक जैसा मानकर भोजन करता है वही जीवन मुक्त है|
Note - बिना तन्मात्रा साधना के मन के layer को पार नहीं किया जा सकता है|
🌸 श्रीकृष्ण अर्जून को कहते हैं - दुख तभी होगा जब मन का विषयों में चिपकाव होगा| संसार में सभी चीजें आनंद से भरी हैं आनंद लें किंतु चिपकें नहीं| दिमाग की खुजली अर्थात् सुख दुख विषय से चिपक जाना दुख का कारण है| स्थितप्रज्ञ अर्थात् संसार को पकड़ा तो भी आनंद में और संसार को छोड़ा तो भी आनंद में|
(🤔 हर हाल मस्त - हर चाल मस्त)
🌸 सर्वकर्मनिराकरणंआवाहनं - सभी कर्मों का disposal (आसक्ति रहित निर्वहन) ही आवाह्न है| हम अपनी किसी भी duty को ईश्वर से अलग ना समझें - बस चिपकें नहीं - disposal करते रहें| स्थितप्रज्ञ वाले layer में लाने के लिये श्रीकृष्ण ने अर्जून को गीता का द्वितीय पाठ समझाया| कर्म करें लेकिन उसकी बंधनकारी माध्यम पाप-पुण्य में ना फंसे|
(🤔 निर्वाण! क्रिया होती है किंतु प्रतिक्रिया नहीं होती है
🌞 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः - अखंडानंदबोधाय - जय युगॠषि श्रीराम 🙏

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