Dhaaraa370

Friday 11 October 2019

Global classes 02.10.2019

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 02/10/2019 - नवरात्रि सत्र - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद्  स्वाध्याय
📡 प्रसारण - आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 प्रशिक्षक. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞 महोपनिषद् तृतीय अध्याय में ब्रह्म ज्ञानी ॠभु अपने पुत्र निदाघ को ब्रह्म ज्ञान दे रहे हैं| इससे हमें यह शिक्षा/प्रेरणा मिलती है पिता, बड़े एवं गुरू संज्ञक को सदैव ब्रह्म ज्ञान की प्रेरणा देती रहनी चाहिए| हम केवल प्रेरणा दे सकते हैं, बांकी हर एक जीव को ईश्वर ने स्वतंत्र सत्ता दी है की वह ग्रहण करे या ना करे| अतः हमें प्रेरित करना चाहिए ना की लादना चाहिए|
🌸 यह आनंद की कक्षा है|
ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन विमल सहज सुख राशी|
सो माया वश भयो गोसाईं बंध्यो जीव मरकट के नाहीं ||
हम व्यक्ति के गुण-दोष को देख कह देते हैं आदमी खराब है| जबकि आत्मा कभी भी खराब नहीं हो सकती, उसके बाह्य कलेवर (छिलका - पंचकोश की परतें) विकृत हो सकती है| आत्मा और शरीर दोनों अलग अलग हैं हमें यह समझना होगा|  परम दयालु सत्ता ने आत्मसत्ता के उपर सुरक्षा हेतु पांच परत (Five Layers - पंचकोश) दिये हैं| इस पर कालिमा/विकृति आने से हम अपने आत्मस्वरूप को भूल जाते हैं|
अतः पंचकोश - विकृत होने पर बंधन है, तो परिष्कृत होने पर मोक्ष का साधन है| पंचकोश हमारा लक्ष्य नहीं वरन् आत्म लक्ष्य की प्राप्ति का साधन है|
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार की मिश्रित controller अंतःकरण research करता है|
लक्ष्य को वरण करने की प्रबल जिज्ञासा अर्थात् अभीप्सा होनी चाहिए| आत्मा आनंदमय है तो इसे जानने की अभीप्सा होनी चाहिये|
🌸 जो हर क्षण मनन करते रहते हैं वो मुनि कहलाते हैं| और जो मनन के साथ शोध कार्य practical करते हैं वो ॠषि कहलाते हैं|
🌸 हम सूर्योपासक हैं गायत्री (सविता) की उपासना करते हैं|
क्या सूर्य boundary में बंधते हैं - भेदभाव करते हैं❓
दीपक तले कालिमा हो सकती है लेकिन सूर्य तले नहीं|
सूर्य साधक जीवन के सभी क्षेत्रों में सबल/उज्जवल होता है| वह परावलंबी नहीं हो सकता|
१. ब्रह्मा - ज्ञान कम - तो भी कष्ट
२. विष्णु - धन कम - तो भी कष्ट
३. महेश - शक्ति कम - तो भी कष्ट
एवं इन तीनों की अत्यधिकता भी क्रमशः अहंकारी, उच्छृंकल एवं उदण्ड बना सकती है अतः हमें ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि व महेश ग्रंथि तीनों को फोड़ना भी पड़ता है| अतः हमें Balance (समन्वय - संतुलन) की साधना करनी होती है|
🌸 साधना में प्रमाद नहीं करनी चाहिए| साधना के प्रति हमारा concept clear होनी चाहिए नही तो practical सही परिणाम देंगे| गायत्री माता के मूर्ति में एक हाथ में वेद - Concept द्योतक, दूसरे हाथ में कमंडल - practial द्योतक एवं इसके बाद हंस पर सवार अर्थात् संसार के अमृत - विष तत्वों में अमृत तत्व को ले लेगा|
🌸 निदाघ मुनि साढ़े तीन करोड़ तीर्थ स्थल में स्नान किये अर्थात् उस समय हर एक गाँव तीर्थ स्थल होगा|
👉 वो कहते हैं - यह जगत उतपन्न होता है मरने के लिये, पुनः मरता है जन्मने के लिये - अर्थात् वो पदार्थ जगत के ज्ञान-विज्ञान को समझ गये थे|
👉 ये सभी पदार्थ लौह शलाका के सदृश परस्पर पृथक रहते हुए मानसिक कल्पना रूपी चूंबक द्वारा एकत्रित होते रहते हैं|
Hydrogen (H2) जलाता है एवं Oxygen (O2) इंधन है, एक जलता है तो दूसरा जलाता है जबकि इन दोनों का संयोग Water ( 2H2 + O2 = 2H2O) जल ठंडा है - अर्थात् दोनों जलाने वाले तत्वों के बीच कुछ ऐसा तत्व था जो दोनों को मिलाकर दोनों के गुण धर्म को बिल्कुल परिवर्तित कर देती है यही chemistry है|
अर्थात विचारों (Concepts) के साथ श्रद्धा रूपी रस का समावेश करना होता है| अतः research में concept के साथ श्रद्धा का समावेश करना होता है|
🌸 निदाघ मुनि कहते हैं - सांसारिक पदार्थों से, धन आदि से स्वजन संबंधियों आदि से विरक्ति हो रही है| इन सबसे आनंद नहीं मिल सकता है|
१. पदार्थों से आसक्ति - लोभ
२. संबंधों से आसक्ति - मोह
३. मान्यताओं से आसक्ति - अहंकार
🌸 निदाघ मुनि कहते हैं - वायु को लपेटना, आकाश को खंड खंड करना एवं जल को गुंथन करने में भले ही संभव हो जाये, किंतु जीवन में आस्था एवं विश्वास रखना संभव नहीं हो पाता|
ऐसी स्थिति आने पर ही आत्म ज्ञान का संधान करना संभव बन पड़ता है| जब तक संसार से चिपकाव है आसक्ति है तब तक संसार की नश्वरता का ज्ञान नहीं होता और आत्मज्ञान संभव नहीं हो पाता|  ईश्वर की definition नहीं है वह अपरिभाषित (Undefined) है, असीमित है, अपरीमित है| अतः मान्यताओं में ना फंसे| शरीर के साथ मान्यता - अन्नमयकोश में, पद के साथ मान्यता - प्राणमयकोश, स्वभाव के साथ मान्यता - मनोमयकोश में फंसे हैं|

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