Dhaaraa370

Friday, 11 October 2019

Global classes 03.10.19

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 03/10/2019 - नवरात्रि सत्र - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद् - चतुर्थ अध्याय|
📡 प्रसारण - आ॰ अमन भैया। 💐
🌞 शिक्षक बैंच. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌸 जो स्वेच्छा से अाते हैं वह अवतरण प्रक्रिया में आते हैं एवं जो कर्मफल के तहद आते हैं वह पुनरावर्तन प्रक्रिया में|
🌸 चेतना की एक ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेना जिससे पुनरावर्तन ना हो|
🌸 आत्म अनुभव को आत्म बोध कहते हैं | प्रज्ञोपनिषद् में कहते हैं अध्यात्म का उद्देश्य ईश्वर की विवेचना नहीं वरन् उसे इस मानव शरीर में अनुभव करना है|
🌸 मंत्र संख्या १. अपने पुत्र निदाघ मुनि की सभी की बातों को सुनकर ॠषिवर ॠभु ने कहा - हे प्रभु|
ॠषिवर अर्थात् ॠषियों में श्रेष्ठ, वो अपने पुत्र को कहते हैं - हे प्रभु! तुम ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ हो| ........
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🌸 मंत्र संख्या ३. मोक्षद्वार के ४ द्वारपाल:-
१. शम (मनोनिग्रह)
२. विचार
३. संत
४. सत्संग
यदि इनमें से कोई एक का भी आश्रय प्राप्त कर लिया जाये तो शेष तीन सहजतापूर्वक प्राप्त हो जाते हैं|
👉 ईश्वर को सर्वव्यापी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में शिरोधार्य करेंगे|
👉 तब तक त्राटक करेंगे जब तक उस सर्वव्यापी ईश्वर को देख ना लें| त्राटक means concentration, ध्यान means depth.
🌸 मंत्र संख्या ४-५. सर्वप्रथम तप, दम (इन्द्रिय निग्रह), शास्त्र एवं सत्संग के द्वारा सद्ज्ञान को बढ़ाना चाहिए| अपनी आत्मा के अनुभव, शास्त्रों एवं गुरु के वचनों का उपदेश से सतत अभ्यास द्वारा आत्मचिंतन करना चाहिए|
🌸 मंत्र संख्या ७. जो चित्त का अकतृत्व है वही चित्त वृत्तियों का निरोध अर्थात् समाधि कही गयी है यही कैवल्यावस्था एवं परम कल्याणकारी परम शांति कहलाती है|
👉 संसार के यथार्थता को समझने के बाद अकतृत्व अर्थात् चित्त वृत्त का निरोध हो जाता हैं|
🌸 मंत्र संख्या ८. इस जगत के संपूर्ण पदार्थों में आत्म भावना का सम्यक रूप से त्याग करके संसार में गूंगे, अंधे, बहरे तुम्हारे रहने से ही संभव है|
👉 सभी चीजों में दोनों सत्ता है - जड़ (संसार), चेतन (आत्मिकी)| अतः हमें दोनों अर्थों को साथ में लेकर चलना चाहिये|
हमें अनुचित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए| अगर हमारे कान तक वह पहूंच जाता है तो उसके अंदर के ईश्वर को देख लेवें - क्योंकि शब्द ही ब्रह्म है|
👉 युद्ध (Duty) करें - किंतु ईश्वरीय कार्य समझ कर करें - अनासक्त भाव से करें - कुशलतापूर्वक करें|
🌸 मंत्र संख्या ११. सांसारिक कार्यों को सतत करते हुए भी नित प्रबुद्धचित्त होकर आत्मा के एकत्व को जानकर प्रशान्त रहने वाले महासागर के सदृश निश्चल एवं स्थिरचित्त  बने रहो| इसमें कल्याण की संभावनायें है|
🌸 मंत्र संख्या १२. यह आत्मज्ञान वासना रूपी तृण को दग्ध करने वाली अग्नि के सदृश है| इसे समाधि कहते हैं| केवल मौन रहकर बैठना ही समाधि नहीं है|
🌸 मंत्र संख्या १७-२० सत्व गुण में स्थित मनुष्य स्वर्णकमल  की भांति रात्रिकाल आपत्तियों में कुम्हलाते नहीं हैं| वे प्राप्त भोगों के अतिरिक्त अन्य पदार्थों की इच्छा नहीं करते, वरन शास्त्रोक्त मार्ग में भ्रमण करते हैं| वो स्वतः अपने मन के अनुकूल रहकर ही  मैत्री, करूणा, मुदिता, उपेक्षा आदि गुणों से विभुषित रहते हैं|
🌸 मंत्र संख्या २१. प्राज्ञों संतजनों के साथ हमें प्रयत्नपूर्वक सदैव चिंतन करने रहना चाहिये - मैं कौन हूँ?
परमपूज्य गुरुदेव ने एक पुस्तक लिखी है मैं कोन हूँ? इसे सभी थाती के तरह अपने साथ रखें|
🌸 मंत्र संख्या २२. यह विराट विश्व प्रपंच किस प्रकार प्रादुर्भाव हुआ? कभी निरर्थक कार्यों में ना लगा रहे तथा अनार्य पुरूष के संग से सदैव अपने को बचाता रहे|
🌸 मंत्र संख्या २३.सभी की संघारक, मृत्यु के प्रति उपेक्षा भाव से ना देखे| यदि उपेक्षा करनी ही है तो शरीर, अस्थि, मांस, रक्त आदि को घृणित मानकर इसकी उपेक्षा करनी चाहिए|
🌸 मंत्र संख्या २५.परमात्म तत्व के विषय में गुरु एवं शास्त्र के अनुसार बताये हुए मार्ग से स्वानुभूति से मैं ही ब्रह्म हूँ - ऐसा जानकर शोक रहित होना चाहिये|
🌸 मंत्र संख्या २६. गुरू एवं शास्त्र वचनों  के अनुसार तथा अन्तः अनुभूति के माध्यम से जो अन्तः की शुद्धि होती है उसी के सतत अभ्यास से आत्म साक्षात्कार किया जा सकता है|
🌸 अध्यात्मिकी -  मैं कौन हूँ? (को अहं) ➡ से लेकर मैं ब्रह्म हूँ (सो अहं) की यात्रा है|
🌞 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः - अखंडानंदबोधाय - जय युगॠषि श्रीराम 🙏

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