Dhaaraa370

Thursday, 5 July 2018

जातिव्यवस्था: समझ की भूल














भारतीय वर्ण व्यवस्था और हमारी समझ


जिस तरह कलेक्टर, डॉक्टर, नर्स, इंजीनियर, चपरासी, सफाईवाला, कामगार, क्लर्क इत्यादि सब के सब वर्तमान काल की कार्य व्यवस्था है, ठीक उसी तरह बढई (कारपेंटर), लुहार, नाई, क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण वगैरह वगैरह ये जाति व्यवस्था नहीं थी, बल्कि कार्य व्यवस्था थी. कालांतर में काम के समीपता के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी उस काम को किया जाता रहा और लोग उस परिवार को पीढ़ी दर पीढ़ी उसी नाम से जानते समझते रहे. फर्ज कीजिये, पंडित नेहरू, श्री लालू प्रसाद यादव, सिंधिया, महाजन, परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी नेता का काम करते चले आ रहे हैं, तो क्या उन्हें नेता जाति का माना जाने लगना उचित होगा. नहीं न. ठीक उसी प्रकार किसी कार्य व्यवस्था को जाति व्यवस्था के रूप में स्थापित कर देना हमारी नासमझी ही कही जायेगी.
चलिए एक और उदहारण से समझने की कोशीश करते हैं. ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग सोफे को “डनलप” के नाम से जानते हैं. जबकि आप सभी जानते हैं की डनलप एक सोफे बनाने बाली बड़ी कंपनी है न की सोफा. ज़ेरॉक्स एक वैसा ही उदहारण है जो की फोटो कॉपी का पर्यायवाची बन गया है, हालाँकि वस्तुस्थिति वैसी है नहीं.
आज हिंदुस्तान जिस दौर से गुजर रहा है, उसमे भीम-मीम, सवर्ण-दलित, हिन्दू-मुस्लिम की एक ऐसी आग फ़ैलाने की नापाक कोशिश हो रही है, जिससे देश और समाज टुकड़ों में बंट जाए, और इसकी जिम्मेदारी हम सब की होगी. आने वाली पीढियां हमारी नादानी पे हँसेगी और अपनी दुर्दशा पर रोएगी.
पोंछ कर अश्क अपने आँखों से मुस्कुराओं तो कोई बात बने,
सर छुपाने से कुछ नहीं होता सर उठाओं तो कोई बात बने ,
रंग और नस्ल और मजहब ये जो भी है आदमी से कमकर है,
इस हकीकत को तुम भी मेरी तरह मान जाओ तो कोई बात बने,

जय हिन्द
जय भारत

6 comments:

  1. ये सर्वज्ञात है, पर सत्य को सदैव तोड़ मरोड़कर राजनीतिक फायदे के हिसाब से परोसा जाता है।

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    1. सत्य को प्रमाण की जरुरत तो नहीं होती पर प्रमाणिक लोगों के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार करता है. अतः आप जैसे बौद्धिक क्षमता वाले लोगों को इसमे लगातार सहयोग करना होगा. टिपण्णी के लिए धन्यवाद श्रीमान

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  2. I always challenge people around me to answer, why proposal of A birth based caste system was accepted by majority of Hindus and how they lived happily for centuries? This is a question we should ponder with open and logical mind.

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  3. To the best of my understanding, over a period of time, work specialization of family has been taken (mistaken) as caste and since we had plentiful of resources, there were no fight for it.

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