Dhaaraa370

Saturday 21 November 2020

PMR option for armed forces is an effort to add misery to defence personnel and defence forces both

 



PMR option for armed forces

Genesis: DMA after internal study felt that due to lesser vacancies, and certain service restrictions, number of personnel were boarded out. Also, the super-specialists and specialists who were highly trained for specific jobs in the service opted out to work outside.

Therefore, “Loss of highly skilled manpower leads to void within the Services skill matrix. For the armed forces, this is counter-productive.” The review of pension entitlements is based on this.

 

Remedies proposed


1. Proposed new retirement age in Indian Army and equivalent posts in IAF and Indian Navy:

Colonels -57 yrs

Brigadier - 58 yrs

Major General - 59 yrs

JCO & OR – 57 years

 

 2. 4 slabs for PMR of personnel

50% of entitled pension for 20-25 years of service.

60% of entitled pension for 26-30 years of service.

75% of entitled pension for 31-35 years of service.

Full pension for 35 years and above service.

 

Point of view:

Remedy, most importantly the best remedy will be the one which reduces or removes the root cause of the problem. In instant case, the problem being faced by defence forces as indicated by DMA is out flow of manpower due to following reason:

1.    Lesser vacancies

2.    Service restrictions

3.    Super specialists and specialists opting out to work out side.

Will the proposal of DMA:

a.    Increase vacancies in armed forces?

b.    Help in identifying those service restrictions and remove or reform at least those which can be safely done away with?

c.    Stop Super specialist and specialist from opting out to work outside.

I think answer is a big “NO”.

In that case what is the rationale behind such proposal? It seems there can be two possibilities. Either reasons shown are wrong or remedy proposed is wrong. In both the cases govt. of India must reject this proposal of DMA in totality and direct them to do RCA (root cause analysis based on five Ws).

 

Wednesday 8 July 2020

महत्वपूर्ण खबरे जो आपके बड़े काम की हैं .

ख़बरें जो आपके नजरों के नजर में नहीं आते. 

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और फेसबुक इंडिया (Facebook India)

डिजिटल सुरक्षा और ऑनलाइन कल्याण/Digital Safety and Online Well-being  और आभासी वास्तविकता/Virtual Reality पर शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए डिजिटल प्रशिक्षण कार्यक्रम पेश कर रहें हैं।

पाठ्यक्रम नि: शुल्क हैं

a) डिजिटल सुरक्षा और ऑनलाइन कल्याण-  यह कार्यशाला छात्रों को संभावित ऑनलाइन खतरों और उत्पीड़न की पहचान करने और प्रतिक्रिया देने और डिजिटल उपयोगकर्ताओं के जवाब देने में मदद करेगी। जो छात्र एक पूर्ण सत्र में भाग लेते हैं और मूल्यांकन में पास होते हैं उन्हें ऑनलाइन प्रमाण पत्र से सम्मानित किया जाएगा।


महत्वपूर्ण तिथियाँ:

आवेदन शुरू होने की तारीख: जुलाई 2020

आवेदन की अंतिम तिथि: रोलिंग के आधार पर

यदि चयनित हैतो आप 30 जुलाई 2020 तक एक ईमेल प्राप्त करेंगे

सत्र की शुरूआत: अगस्त 2020 

अगस्त सेसोमवार से शुक्रवार तक प्रतिदिन 

अगर आप VR प्रशिक्षण के लिए रजिस्टर करना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें

शिक्षक जो Digital Well Being के लिए रजिस्टर करना चाहते हैं, यहाँ यहाँ क्लिक करें

विद्यार्थी  जो Digital Well Being के लिए रजिस्टर करना चाहते हैं, यहाँ क्लिक करें



२. स्नेहल पटेल जो कि एक मेकेनिकल इंजिनीयर हैं और सूरत, गुजरात की हैं, उनका परिवार पिछले ८ सालों से बिजली पानी का बिल नहीं भरा है. इसका मतलब यह नहीं कि वे बिजली पानी की चोरी कर रही हैं. सच तो यह है कि उन्होंने एक ऐसे घर का निर्माण किया है जो आत्मनिर्भर है. सोलर उर्जा, पवन उर्जा, जल संरक्षण , बेहतर डिजाईन जैसे तकनीकों का इस्तेमाल कर उन्होंने स्वयं का , समाज का एवं राष्ट्र का भला किया है.





Monday 17 February 2020

The Kashmir Files: धर्मनिरपेक्षता या शुतुरमुर्गी चाल


धर्मनिरपेक्षता या अकर्मण्यता / धर्मनिरपेक्षता या पक्षाघात 



   1.      कुछ हजार साल पहले गांधार की गांधारी हस्तिनापुर की रानी हुआ करती थी, फिर उसी भौगोलिक क्षेत्र  से गजनी आता है, हमारे मंदिरों को लूटता है  और आज उसी भौगोलिक क्षेत्र में एक इस्लामिक राज्य है, जिसे अफगानिस्तान के नाम से हम जानते हैं .

   2.      कुछ ७४ साल पहले लाहौर, करांची, सिंध, ढाका भारत का अभिन्न अंग हुआ करता था पर आज वहां इस्लामिक राज्य है.

   3.      कुछ ३० साल पहले काश्मीर में काश्मीरी पंडितों के हंसते खेलते परिवारों का एक समृद्ध संस्कृति का विस्तार हुआ करता था, आज वहां भी अघोषित इस्लामिक राज्य है.

   4.      देश के विभिन्न कोने में ना जाने कितने छोटे छोटे अघोषित इस्लामिक राज्य हैं (जहाँ हम बसने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकते हैं), इसका हम बस अनुमान हीं लगा सकते हैं.

जब मैं इन पंक्तियों को लिख रहा हूँ, इस बात का भान है मुझे कि मेरे कई प्रिय दोस्त हैं जो इस्लाम के मानने वाले हैं. 
पर सत्य से आँखे मोड लेने मात्र से वस्तु स्थिति बदल जाएगी ऐसा तो होता है नहीं. 
"और बात करने से बात बनती है"  इस विचार को केंद्र में रखकर मैं लिख रहा हूँ कि मैं भी सोचूं और आप भी सोचिये कि कहाँ चूक हुई, किससे चूक हुई? विचारिए कि क्या ऐसी चूक आज भी करने की कोशीश  कर रहे हैं? क्या इतिहास इसी तरह दुहराया जाता रहेगा तबतक जबतक हमारे पास खोने के लिए कुछ भी बचा नहीं रहेगा?

मैं खुद से पूछता हूँ और औरों से भी, क्या कोई बता सकता है कि ऐसा कौन सा एक कारण है कि धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित पुजारिओं के रहते हुए भी 
१. हम गांधारी से गजनी के रस्ते चलकर एक इस्लामिक राज्य अफगानिस्तान तक कैसे पहुँच गए?  

२. ऋषि कश्यप के काश्मीर से कौल, रैना और टिक्कू के बलात्कार और हत्या वाले काश्मीर तक कैसे चले आए?  


3.  
शनैःशनैः सनातन धर्मियों का भौगोलिक सिकुड़ाव क्यूँ होता रहा और क्यूँ उन भौगोलिक क्षेत्रों में इस्लामिक राज्यों का  गठन होता चला गया?

मुग़ल आए और हमारे बीच में से गुमराह किये जा सकने वाले तत्वों के साथ मिलकर हमारे शिक्षा, सभ्यता और संस्कृती के तमाम धरोहरों को लूटते, तोड़ते और जलाते चले गए, चाहे वो सोमनाथ का मंदिर हो या नालंदा का विशाल विश्वविद्यालय और पुस्तकालय.
अंग्रेज आए और हमें आपस में लड़ा भिड़ाकर हम पर शासन किया. 

अब जब देश तमाम कुर्बानियों और नुकसान के बाद आजाद हुआ है तो एक बार फिर भ्रमित किया जा रहा है कि हम असहिष्णु हैं, हम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं.


पर सनद रहे कि जब-जब देशहित  पर राजनीतिक हित भारी पड़ा है, देश और सनातन को हीं नुकसान उठाना पड़ा है, इतिहास साक्षी है. नजर उठाकर मूल्याङ्कन कर लीजिए.

मैं आप तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नागरिकों से समझना चाहता हूँ कि आखिर कौन सा धर्मनिरपेक्षता काम कर रहा था तब जब:

   १.     मो अली जिन्ना एक अलग इस्लामिक राज्य "पाकिस्तान" की मांग कर रहे थे और सड़कों पर खून की नदियाँ बहाई जा रही थी. दोनों धर्मों  के लोगों को हिंसा और प्रति हिंसा की आग में झोंक दिया गया था?

   २.     क्या धर्मनिरपेक्ष लोगों की उस वक्त एक भी चली थी ? क्या वे समझा पाए जिन्ना को कि धार्मिक आधार पर राष्ट्र माँगना धर्मनिरपेक्षता और इस्लामिक मूल्यों के खिलाफ है?

   ३.     क्या कोई शाहिनबाग, कोई  जामियाँ, कोई जे एन यू , कोई कन्हैया, कोई उमर खालिद, कोई स्वरा, कोई नसीरुद्दीन राष्ट्रव्यापी आंदोंलन खड़ा कर पाए कि धर्म के आधार पर देश को नहीं बंटने देंगे?
   ४.  क्या आज भी उन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों की सुनी जाएगी?

   ५.     चलो मानते हैं गलती हो जाया करती है? फिर हम उससे सबक लेते हैं और भविष्य में ऐसी गलतियों से बचते हैं.

तो बताओ तो भला कि

१.     आप कहाँ सो रहे थे जब धरती के स्वर्ग में मस्जिदों से अल्लाह की अजान की जगह यह ऐलान हो रहा था कि कश्मीरी पंडित अपनी औरतों को छोड़कर काश्मीर से चले जाएं  या मरने के लिए तैयार रहें?

२.     आपकी धर्मनिरपेक्षता कहाँ घास चार रही थी जब गिरिजा टिक्कू को उसके मुस्लिम दोस्त के घर से अपहृत कर लिया गया और कोई कुछ नहीं बोला? गिरिजा टिक्कू के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और लकड़ी काटने वाले आरा मशीन में डालकर दो भाग में जिन्दा चीर दिया गया था.

३.     आपकी धर्मनिरपेक्षता को लकवा मार गया था क्या जब टेलिकॉम अभियंता बी के गंजू को चावल के कंटेनर में छूपे होने का राज आतंकियों को उसके पडोसी मुस्लिम परिवार ने बताया था और फिर उस बदनसीब को उसके परिवार के सामने उसी कंटेनर में गोलियों से भून दिया गया और परिवार वालों को उसके खून से सने चावल को खाने को कहा गया था?

४.   उस धर्मनिरपेक्षता का हम क्या करें जिसके छांह में भूषण लाल रैना को इसा मसीह की तरह पेड़ में शूली चढ़ाकर इंच दर इंच मार दिया  गया था जबकि वे गोली मार देने की प्रार्थना करते रहे ?

५.     आप जिस धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं, सर्वानन्द कॉल प्रेमी उसी के पुजारी थे. वे  पूजागृह में हिन्दू ग्रंथों के  साथ कुरान  भी रखते थे. लेकिन सर्वानन्द जी को तिलक लगाने वाले जगह पर लोहे की छड घुसा कर मारा गया. उनके शरीर से चमड़े को छील कर निकाल दिया गया था?

ये सब लिखने का मेरा एक मात्र उद्देश्य यह है कि हमें धर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाण देने की जरुरत नहीं है, इतिहास अटा पड़ा हुआ है ऐसे उदाहरणों से कि हम अपने मां बहनों के  इज्जत-अस्मत , अपने जान, अपनी सम्पति और अपने देश के बंटबारा धार्मिक आधार पर होने के बाबजूद कभी असहिष्णु नहीं हुए. 

हाँ आप तथाकथित धर्मनिर्पेक्ष बुद्धिजीवियों को एक बार अवश्य  सोचने की जरुरत है कि  ऐसा क्यूँ है कि :
अलग अलग कालखंड में हमसे अलग होकर एक इस्लामिक राज्य पैदा होता है और हमारे जमीं में भविष्य के लिए एक इस्लामिक राज्य का बीज छोड़ जाता है. जो निकलते समय के साथ अंकुरित, पुष्पित एवं पल्लवित होता है और फिर एक नए इलामिक राज्य की आहट सुनाई देने लगता है.  

पर मौन समुद्र कब तक मौन रहे? जब आप दीवाल तक धकेल दिए जाते हों, आपके पास और पीछे जाने की जगह नहीं होती तो फिर आपके पास दो हीं विकल्प होते हैं या तो प्रतिरोध कर अपना अस्तित्व बचाए रखें या फिर साल दर साल काल के गाल में समाते चले जाएँ .

अरे जरा सोचिये तो सही, हम इतिहास में हमारे साथ हुए तमाम अत्याचारों को याद भी करें तो हम असहिष्णु कहला दिए जाते  हैं  और वहां  महीनों से दिल्ली के एक खास क्षेत्र को सिर्फ इसलिए पंगु बनाकर रखा गया है क्यूँकि उन्हें आशंका है कि उनके साथ कुछ गलत हो सकता है (जिस आशंका का कोई आधार नहीं है). 
और इनके सुर में कौन सुर मिला रहा है ? 

क्या हमें भी अपने अस्तित्व की चिंता करने का हक है? 

ऐसे में आप हीं बताएं भविष्य किसका दासी बनेगा? उसका जो अपने ऊपर हुए सैकड़ों अत्याचारों को भूलकर आज फिर शुतुरमुर्ग बना हुआ है या फिर उसका जो अपने अस्तित्व पे आने वाले हर आशंका को भी जड़ मूल से मिटाने के लिए अपनी नौकरी, रोजगार, घर परिवार सब छोड़कर सड़कों निकल पड़ा है ?

हो सकता है आपमें से कई लोग कहेंगे कि आज जब हमें उद्योग धंधा, रोजगार और शिक्षा की बात करनी चाहिए वैसे में आजाद हिंदुस्तान में ऐसी बात करना सिर्फ धर्मान्धता की बात है .

तो आपको बता दूँ कि आप ऐसे पहले हिन्दुस्तानी हैं, इस मुगालते में मत रहिएगा. गांधारी से चलते हुए गजनी से लेकर गिरिजा टिक्कू तक पहुँचने में हर मोड, हर गली, हर चौराहे में मुझे आप जैसे लोगों से दो चार होना पड़ा है और आपकी बातों को मानते हुए हीं यहाँ तक की यात्रा तय की है. कश्मीरी पंडितों के पास धन दौलत, ज्ञान, रोजगार सब कुछ तो था पर लाखों कश्मीरियों द्वारा अपना नौकरी-पेशा, धन संपत्ति, मान सम्मान छोड़कर अपनी हीं जन्म भूमि से भागना पड़ा. आज उनका धर्म निरपेक्ष सरकार और आपके जैसे ज्ञानी गुणी जनता के नाक के ठीक सामने अपने हीं देश में शरणार्थी बने रहना आपके वाले धर्मनिरपेक्षता का हर पल चीर हरण कर रहा है और आप हैं कि शुतुरमुर्ग बने रहने में अपना बड़प्पन समझते हैं. आपको आपका शुतुर्मुगी चलन मुबारक हो लेकिन हम सिर्फ तब तक  धर्म निरपेक्ष हैं जब तक हमारे धर्म के ऊपर आक्रमण नहीं होता. 


Friday 11 October 2019

Global classes 30.09.19

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 30/09/2019 - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞 ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद् - द्वितीय अध्याय (नवरात्रि सत्र)
🎥 कक्षा संचालन. आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 शिक्षक बैंच. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी"
🌸 परम तेजस्वी शुकदेव मुनि का पंचकोश गर्भावस्था में परिष्कृत हो चुका था| परमपूज्य गुरुदेव की माता जी भी जब गुरुदेव गर्भ में थे भागवत का पाठ - श्रवण, दान पुण्य आदि में निरत रहती थीं| गर्भावस्था में मां के:-
१. सात्विक भोजन से शिशु का अन्नमयकोश स्वस्थ/परिष्कृत
२. सूर्योपासना से प्राणमयकोश स्वस्थ
३. स्वाध्याय से मनोमयकोश स्वस्थ
४. परिवार में आत्मीयता/सहृदयता/सद्भावना से विज्ञानमयकोश स्वस्थ
🌸 शरीर को अयोध्या (जिसे कोई युद्ध में हरा ना सके) भी कहा गया है| अन्नमयकोश की साधना से हम शरीर को इतनी मजबूती प्रदान कर सकते हैं|
🌸 भेद दर्शनं अज्ञानं - भेद दर्शन अज्ञान है| आसक्ति ही निषेधात्मक चिंतन (Negative thoughts) है|
🌸 माता लक्ष्मी का आसन कमलासन है| अर्थात् जो स्थितप्रज्ञ है वही धनवान है| ज्ञानवान ही धनवान है, ज्ञानवान ही बलवान है, ज्ञानवान ही जिंदा है| स्थित प्रज्ञ ही कर्मों में लिप्त नहीं होता|
🌸 हमारे जो भी कार्य (duties, responsibilities) हैं उसे हम ईश्वरीय कार्य समझें| शरीर को स्वस्थ, बलवान, बुद्धिमान, प्रेमी (आत्मीय) बनाना भी हमारी duty है| जब हम ईश्वरीय कार्य समझ कर कार्य करेंगे तो प्रमाद आसक्ति आदि से सदैव दूर रहेंगे| ईशावास्योपनिषद् में इसे ही "तेन त्येक्तन भूंजीथा" कहा गया है|
🌸 महर्षि अरविंद ने स्थितप्रज्ञ को ही योग कहा है| वह कहते हैं -
१. शुद्धि - पंचकोश शुद्धि
२. मुक्ति - आत्मिक रूझान| हमने संसार को पकड़ रखा है ना कि संसार ने हमें| हमारी असफलता के लिए हमारे अलावा कोई भी जिम्मेदार नहीं है|
३. सिद्धि - स्थितप्रज्ञ|
🌸 लाखों जन्म की यात्रा को हमें एक ही जन्म में पूरा करना हो तो क्रियायोग (साधना) की आवश्यकता होती है|
🌸 मंत्र संख्यां ४१ - राजा जनक कहते हैं - हे परमज्ञानी शुकदेव जी,
👉 जो वासनाओं का निःशेष परित्याग कर देता है, वही वास्तविक श्रेष्ठ त्याग है उसी विशुद्धावस्था को ज्ञानीजनों ने मोक्ष कहा है|
👉 पुनः जो शुद्ध वासनाओं से युक्त है - जो अनर्थ शुन्य जीवन वाले हैं जो ज्ञेय तत्व के ज्ञाता हैं, वे ही मनुष्य पूर्ण जीवन मुक्त कहे जाते हैं|
✍ वासना (जो वास करता है) दो प्रकार के हैं -
१. अशुद्ध वासना का परित्याग
२. शुद्ध वासना - आदर्शों का संवर्धन
हमें असफलता मिलती है की हम एकपक्षीय (इकतरफा) सोचते हैं|
👉 पदार्थों की भावनात्मक दृढ़ता को ही बंधन और वासनाओं की क्षीणता को ही मोक्ष कहा गया है|
🌸 मंत्र संख्या ४२ - जिसे तप आदि साधना के अभावों में स्वभाववश ही सांसारिक भोग अच्छे नही लगते हैं वही जीवन मुक्त है|
🌸 मंत्र संख्या ४३ - जो प्रतिपल प्राप्त होने वाले सुखों या दुखों में आसक्त नहीं होते तथा जो ना हर्षित होता है और ना दुखी होता है वही जीवन मुक्त कहलाता है|
🌸 मंत्र संख्या ४४ - जो हर्ष, अमर्श, भय, काम, क्रोध एवं शोक आदि विकारों से मुक्त रहता है वही जीवन मुक्त कहलाता है|
🌸 मंत्र संख्या ४५ - जो अहंकार युक्त वासनाओं का अति सहजता से त्याग कर देता है तथा जो चित्त के अवलंबन में जो सम्यक रूप से त्याग भाव रखता है  - वही जीवन मुक्त है|
🌸 मंत्र संख्या ५४ - जो ज्ञानी पुरूष खट्टे, चटपटे, कड़वे, नमकीन, स्वादयुक्त एवं आस्वाद को एक जैसा मानकर भोजन करता है वही जीवन मुक्त है|
Note - बिना तन्मात्रा साधना के मन के layer को पार नहीं किया जा सकता है|
🌸 श्रीकृष्ण अर्जून को कहते हैं - दुख तभी होगा जब मन का विषयों में चिपकाव होगा| संसार में सभी चीजें आनंद से भरी हैं आनंद लें किंतु चिपकें नहीं| दिमाग की खुजली अर्थात् सुख दुख विषय से चिपक जाना दुख का कारण है| स्थितप्रज्ञ अर्थात् संसार को पकड़ा तो भी आनंद में और संसार को छोड़ा तो भी आनंद में|
(🤔 हर हाल मस्त - हर चाल मस्त)
🌸 सर्वकर्मनिराकरणंआवाहनं - सभी कर्मों का disposal (आसक्ति रहित निर्वहन) ही आवाह्न है| हम अपनी किसी भी duty को ईश्वर से अलग ना समझें - बस चिपकें नहीं - disposal करते रहें| स्थितप्रज्ञ वाले layer में लाने के लिये श्रीकृष्ण ने अर्जून को गीता का द्वितीय पाठ समझाया| कर्म करें लेकिन उसकी बंधनकारी माध्यम पाप-पुण्य में ना फंसे|
(🤔 निर्वाण! क्रिया होती है किंतु प्रतिक्रिया नहीं होती है
🌞 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः - अखंडानंदबोधाय - जय युगॠषि श्रीराम 🙏

Global classes 01.10.1

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 01/10/2019 - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद् - द्वितीयोध्याय (नवरात्रि सत्र)
🎥 कक्षा संचालन - आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 शिक्षक बैंच. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌸 परम तेजस्वी शुकदेव मुनि परम पद को प्राप्त कर चूके थे| वो राजा जनक के पास उसके प्रमाणिकता के लिये गये थे| राजा जनक परम सन्यासी कहे जाते हैं|
🌸 याज्ञवल्क्य ॠषि ब्रह्म ज्ञानियों में श्रेष्ठ थे| उन्होंने हर एक ज्ञानेनद्रियों में भी ब्रह्म का साक्षात्कार किया था| संसार के हर परिवर्तनशील सत्ता में एक अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता विद्यमान है जिसे ज्ञान/प्रज्ञा के नेत्रों से देखा जा सकता है|
🌸  संत कबीरदास जी आनंदमयकोश के layer को पार कर लिये थे| वो कहते हैं - 
साधो! सहज समाधि भली।
गुरु प्रताप भयो जा दिन से सुरति न अनंत चली॥
आँखन मूँदूँ कानन रुँदूँ, काया कष्ट न धारुँ।
खुले नयन से हँस-हँस देखूँ सुन्दर रुप निहारुँ॥
कहूँ सोई नाम, सुनूँ सोई सुमिरन, खाउँ पीउँ सोई पूजा गृह उद्यान एक सम लेखूँ भाव मिटाउँ दूजा॥
जहाँ - जहाँ जाऊँ सोई परिक्रमा जो कछु करूं सो सेवा।
जब सोउँ तब करूं दंडवत, पूजूँ और न देवा॥
शब्द निरंतर मनुआ राता, मलिन बासना त्यागी।
बैठत उठत कबहूँ न विसरै, ऐसी ताड़ी लागी॥
कहै कबीर यह उन मनि रहनी सोई प्रकट कर गाई।
दुख सुख के एक परे परम सुख, तेहि सुख रहा समाई॥
🌸 श्री कृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन आप युद्ध भी करो और मेरा स्मरण भी| युद्ध means duty. योगस्थः कुरू कर्मणि|
(🤔 स्मरण means peace, happiness, balance ....)
🌸 आसक्ति ही मृत्यु है| जीवन में उतार चढ़ाव की कैसी भी स्थिति रहे, मन को संतुलित रखना योग है| इसे अच्युतावस्था कहते हैं|
🌸 गुरूदेव ने कहा है स्वादेन्द्रिय और जननेन्द्रिय को साधना अति दुष्कर है| महोपनिषद्  (मंत्र संख्या ५४) - जो ज्ञानी पुरूष खट्टे, चटपटे,कड़वे, नमकीन, स्वादयुक्त एवं अस्वाद को एक जैसा मानकर भोजन करता है वही जीवन मुक्त है|
स्वाद की कोई अपनी सत्ता नहीं होती है| एक ही भोजन का भूखे पेट और पेट भरने के बाद स्वाद अलग हो जाते हैं| मनपसंद भोजन का नाम सुनते ही मूंह में पानी आ जाता है| उसका taste memory में save रहता है| सारे taste आकाश में विद्यमान हैं| दूध को जला कर खोये बनाते हैं तो खोये का एक बड़ा भाग आकाश में चला जाता है| रस तन्मात्रा की साधना में योगी आकाश से मनोवांछित उपयुक्त रसों को ले लेते हैं|
नीम के छाल का काढ़ा एक बार पीने से ६ महीने तक बुखार नहीं होने देते| Antibiotics बूरे के साथ ही साथ अच्छे जीवाणु को भी मारता है, जबकि नीम बुरे जीवाणु को मारता है और अच्छे जीवाणु को support करता है|
रस तन्मात्रा साधना में अच्छी चीजें को चख कर उसे अपने subconscious mind में save कर लेंवें और लाभान्वित करने वाली कड़वी चीजें का सेवन करते समय Honey जैसे मीठे taste को memorise कर नीम को शहद की तरह सेवन कर सकते हैं|
🌸 शब्द तन्मात्रा साधना - अगर किसी के शब्द हमारे विचार के प्रतिकूल हैं तो हमें उस विचार पर त्राटक करना चाहिए| शब्दो वै ब्रह्मा - शब्द ही ब्रह्म है तो उनके शब्द हमें कष्ट क्यों महसुस हुआ, अर्थात् हमारे साधना में कमी है|
👉 वाक्य - शब्दों के मेल को वाक्य कहते हैं| अतः वाक्य को समझने के लिये शब्दों पर त्राटक कीजिये|
👉 शब्द - अक्षरों के मेल को शब्द कहते हैं| अतः शब्द को समझने के लिये अक्षरों पर त्राटक कीजिये|
👉 अक्षर  - अ + क्षर अर्थात् जिसका क्षर (क्षय) नहीं किया जा सके वो कौन है - परब्रह्म|
❤️ परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं आत्मसुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है| महर्षि रमन बिना बोले ही विश्व की सारी शंकाओं का समाधान करते थे| गुरुदेव ने विश्व की सारे लाइब्रेरी के पुस्तकों के भाष्य लिख डाले| हिमालय में तपस्यारत् ॠषि सत्तायें वहीं से सारे संसार का कल्याण कर रही हैं|
🌸 अग्नि हमें तेजस्विता प्रदान करती है|
🌸 महोपनिषद् (मंत्र संख्या ५७) जो उद्वेग और आनंद से रहित हो (सुसंतुलित मनःस्थिति| यहां आनंद रहित अर्थात सुख - दुख आदि विषयों से उतपन्न आनंद को छोड़ने की बात हो रही है|)
तथा जो शोक और हर्षोल्लास में समान भाव एवं परिष्कृत बुद्धि से संपन्न हो|
🌸 क्षुधा - पिपासा पर नियंत्रण| किसी भी अवस्था में संतुलित रहें| भावों पर भी कालिमा चढ़ती है - विज्ञानमयकोश की साधना में हम भावों के कचरे को हटाते हैं| खाना नही मिला - सारे घर को आसमान पर उठा लिया जैसे सभी लोग आपके नौकर चाकर बैठे हैं|
🌸 महोपनिषद् (मंत्र संख्या - ६०) जिसने संसारिक विषयों की प्राप्ति की कामना का त्याग कर दिया है जो चित्त में रहते हुए भी चित्त रहित हो गया है वही पुरूष जीवनमुक्त है|

Global classes 02.10.2019

🌕 पंचकोश साधना - Online Global Class - 02/10/2019 - नवरात्रि सत्र - प्रज्ञाकुंज सासाराम - प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌🌞
📽 Please refer the video uploaded on youtube.
📖 विषय. महोपनिषद्  स्वाध्याय
📡 प्रसारण - आ॰ अंकुर भैया। 💐
🌞 प्रशिक्षक. आ० लाल बिहारी सिंह "बाबूजी" 🙏
🌞 महोपनिषद् तृतीय अध्याय में ब्रह्म ज्ञानी ॠभु अपने पुत्र निदाघ को ब्रह्म ज्ञान दे रहे हैं| इससे हमें यह शिक्षा/प्रेरणा मिलती है पिता, बड़े एवं गुरू संज्ञक को सदैव ब्रह्म ज्ञान की प्रेरणा देती रहनी चाहिए| हम केवल प्रेरणा दे सकते हैं, बांकी हर एक जीव को ईश्वर ने स्वतंत्र सत्ता दी है की वह ग्रहण करे या ना करे| अतः हमें प्रेरित करना चाहिए ना की लादना चाहिए|
🌸 यह आनंद की कक्षा है|
ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन विमल सहज सुख राशी|
सो माया वश भयो गोसाईं बंध्यो जीव मरकट के नाहीं ||
हम व्यक्ति के गुण-दोष को देख कह देते हैं आदमी खराब है| जबकि आत्मा कभी भी खराब नहीं हो सकती, उसके बाह्य कलेवर (छिलका - पंचकोश की परतें) विकृत हो सकती है| आत्मा और शरीर दोनों अलग अलग हैं हमें यह समझना होगा|  परम दयालु सत्ता ने आत्मसत्ता के उपर सुरक्षा हेतु पांच परत (Five Layers - पंचकोश) दिये हैं| इस पर कालिमा/विकृति आने से हम अपने आत्मस्वरूप को भूल जाते हैं|
अतः पंचकोश - विकृत होने पर बंधन है, तो परिष्कृत होने पर मोक्ष का साधन है| पंचकोश हमारा लक्ष्य नहीं वरन् आत्म लक्ष्य की प्राप्ति का साधन है|
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार की मिश्रित controller अंतःकरण research करता है|
लक्ष्य को वरण करने की प्रबल जिज्ञासा अर्थात् अभीप्सा होनी चाहिए| आत्मा आनंदमय है तो इसे जानने की अभीप्सा होनी चाहिये|
🌸 जो हर क्षण मनन करते रहते हैं वो मुनि कहलाते हैं| और जो मनन के साथ शोध कार्य practical करते हैं वो ॠषि कहलाते हैं|
🌸 हम सूर्योपासक हैं गायत्री (सविता) की उपासना करते हैं|
क्या सूर्य boundary में बंधते हैं - भेदभाव करते हैं❓
दीपक तले कालिमा हो सकती है लेकिन सूर्य तले नहीं|
सूर्य साधक जीवन के सभी क्षेत्रों में सबल/उज्जवल होता है| वह परावलंबी नहीं हो सकता|
१. ब्रह्मा - ज्ञान कम - तो भी कष्ट
२. विष्णु - धन कम - तो भी कष्ट
३. महेश - शक्ति कम - तो भी कष्ट
एवं इन तीनों की अत्यधिकता भी क्रमशः अहंकारी, उच्छृंकल एवं उदण्ड बना सकती है अतः हमें ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि व महेश ग्रंथि तीनों को फोड़ना भी पड़ता है| अतः हमें Balance (समन्वय - संतुलन) की साधना करनी होती है|
🌸 साधना में प्रमाद नहीं करनी चाहिए| साधना के प्रति हमारा concept clear होनी चाहिए नही तो practical सही परिणाम देंगे| गायत्री माता के मूर्ति में एक हाथ में वेद - Concept द्योतक, दूसरे हाथ में कमंडल - practial द्योतक एवं इसके बाद हंस पर सवार अर्थात् संसार के अमृत - विष तत्वों में अमृत तत्व को ले लेगा|
🌸 निदाघ मुनि साढ़े तीन करोड़ तीर्थ स्थल में स्नान किये अर्थात् उस समय हर एक गाँव तीर्थ स्थल होगा|
👉 वो कहते हैं - यह जगत उतपन्न होता है मरने के लिये, पुनः मरता है जन्मने के लिये - अर्थात् वो पदार्थ जगत के ज्ञान-विज्ञान को समझ गये थे|
👉 ये सभी पदार्थ लौह शलाका के सदृश परस्पर पृथक रहते हुए मानसिक कल्पना रूपी चूंबक द्वारा एकत्रित होते रहते हैं|
Hydrogen (H2) जलाता है एवं Oxygen (O2) इंधन है, एक जलता है तो दूसरा जलाता है जबकि इन दोनों का संयोग Water ( 2H2 + O2 = 2H2O) जल ठंडा है - अर्थात् दोनों जलाने वाले तत्वों के बीच कुछ ऐसा तत्व था जो दोनों को मिलाकर दोनों के गुण धर्म को बिल्कुल परिवर्तित कर देती है यही chemistry है|
अर्थात विचारों (Concepts) के साथ श्रद्धा रूपी रस का समावेश करना होता है| अतः research में concept के साथ श्रद्धा का समावेश करना होता है|
🌸 निदाघ मुनि कहते हैं - सांसारिक पदार्थों से, धन आदि से स्वजन संबंधियों आदि से विरक्ति हो रही है| इन सबसे आनंद नहीं मिल सकता है|
१. पदार्थों से आसक्ति - लोभ
२. संबंधों से आसक्ति - मोह
३. मान्यताओं से आसक्ति - अहंकार
🌸 निदाघ मुनि कहते हैं - वायु को लपेटना, आकाश को खंड खंड करना एवं जल को गुंथन करने में भले ही संभव हो जाये, किंतु जीवन में आस्था एवं विश्वास रखना संभव नहीं हो पाता|
ऐसी स्थिति आने पर ही आत्म ज्ञान का संधान करना संभव बन पड़ता है| जब तक संसार से चिपकाव है आसक्ति है तब तक संसार की नश्वरता का ज्ञान नहीं होता और आत्मज्ञान संभव नहीं हो पाता|  ईश्वर की definition नहीं है वह अपरिभाषित (Undefined) है, असीमित है, अपरीमित है| अतः मान्यताओं में ना फंसे| शरीर के साथ मान्यता - अन्नमयकोश में, पद के साथ मान्यता - प्राणमयकोश, स्वभाव के साथ मान्यता - मनोमयकोश में फंसे हैं|

How to apply for enhanced Pension (EPS95) on EPFO web site: Pre 2014 retirees

                 Step wise guide A) Detailed steps. 1. Open EPFO pension application page using the link  EPFO Pension application The page ...