Dhaaraa370

Showing posts with label #Islam. Show all posts
Showing posts with label #Islam. Show all posts

Monday 17 February 2020

The Kashmir Files: धर्मनिरपेक्षता या शुतुरमुर्गी चाल


धर्मनिरपेक्षता या अकर्मण्यता / धर्मनिरपेक्षता या पक्षाघात 



   1.      कुछ हजार साल पहले गांधार की गांधारी हस्तिनापुर की रानी हुआ करती थी, फिर उसी भौगोलिक क्षेत्र  से गजनी आता है, हमारे मंदिरों को लूटता है  और आज उसी भौगोलिक क्षेत्र में एक इस्लामिक राज्य है, जिसे अफगानिस्तान के नाम से हम जानते हैं .

   2.      कुछ ७४ साल पहले लाहौर, करांची, सिंध, ढाका भारत का अभिन्न अंग हुआ करता था पर आज वहां इस्लामिक राज्य है.

   3.      कुछ ३० साल पहले काश्मीर में काश्मीरी पंडितों के हंसते खेलते परिवारों का एक समृद्ध संस्कृति का विस्तार हुआ करता था, आज वहां भी अघोषित इस्लामिक राज्य है.

   4.      देश के विभिन्न कोने में ना जाने कितने छोटे छोटे अघोषित इस्लामिक राज्य हैं (जहाँ हम बसने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकते हैं), इसका हम बस अनुमान हीं लगा सकते हैं.

जब मैं इन पंक्तियों को लिख रहा हूँ, इस बात का भान है मुझे कि मेरे कई प्रिय दोस्त हैं जो इस्लाम के मानने वाले हैं. 
पर सत्य से आँखे मोड लेने मात्र से वस्तु स्थिति बदल जाएगी ऐसा तो होता है नहीं. 
"और बात करने से बात बनती है"  इस विचार को केंद्र में रखकर मैं लिख रहा हूँ कि मैं भी सोचूं और आप भी सोचिये कि कहाँ चूक हुई, किससे चूक हुई? विचारिए कि क्या ऐसी चूक आज भी करने की कोशीश  कर रहे हैं? क्या इतिहास इसी तरह दुहराया जाता रहेगा तबतक जबतक हमारे पास खोने के लिए कुछ भी बचा नहीं रहेगा?

मैं खुद से पूछता हूँ और औरों से भी, क्या कोई बता सकता है कि ऐसा कौन सा एक कारण है कि धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित पुजारिओं के रहते हुए भी 
१. हम गांधारी से गजनी के रस्ते चलकर एक इस्लामिक राज्य अफगानिस्तान तक कैसे पहुँच गए?  

२. ऋषि कश्यप के काश्मीर से कौल, रैना और टिक्कू के बलात्कार और हत्या वाले काश्मीर तक कैसे चले आए?  


3.  
शनैःशनैः सनातन धर्मियों का भौगोलिक सिकुड़ाव क्यूँ होता रहा और क्यूँ उन भौगोलिक क्षेत्रों में इस्लामिक राज्यों का  गठन होता चला गया?

मुग़ल आए और हमारे बीच में से गुमराह किये जा सकने वाले तत्वों के साथ मिलकर हमारे शिक्षा, सभ्यता और संस्कृती के तमाम धरोहरों को लूटते, तोड़ते और जलाते चले गए, चाहे वो सोमनाथ का मंदिर हो या नालंदा का विशाल विश्वविद्यालय और पुस्तकालय.
अंग्रेज आए और हमें आपस में लड़ा भिड़ाकर हम पर शासन किया. 

अब जब देश तमाम कुर्बानियों और नुकसान के बाद आजाद हुआ है तो एक बार फिर भ्रमित किया जा रहा है कि हम असहिष्णु हैं, हम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं.


पर सनद रहे कि जब-जब देशहित  पर राजनीतिक हित भारी पड़ा है, देश और सनातन को हीं नुकसान उठाना पड़ा है, इतिहास साक्षी है. नजर उठाकर मूल्याङ्कन कर लीजिए.

मैं आप तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नागरिकों से समझना चाहता हूँ कि आखिर कौन सा धर्मनिरपेक्षता काम कर रहा था तब जब:

   १.     मो अली जिन्ना एक अलग इस्लामिक राज्य "पाकिस्तान" की मांग कर रहे थे और सड़कों पर खून की नदियाँ बहाई जा रही थी. दोनों धर्मों  के लोगों को हिंसा और प्रति हिंसा की आग में झोंक दिया गया था?

   २.     क्या धर्मनिरपेक्ष लोगों की उस वक्त एक भी चली थी ? क्या वे समझा पाए जिन्ना को कि धार्मिक आधार पर राष्ट्र माँगना धर्मनिरपेक्षता और इस्लामिक मूल्यों के खिलाफ है?

   ३.     क्या कोई शाहिनबाग, कोई  जामियाँ, कोई जे एन यू , कोई कन्हैया, कोई उमर खालिद, कोई स्वरा, कोई नसीरुद्दीन राष्ट्रव्यापी आंदोंलन खड़ा कर पाए कि धर्म के आधार पर देश को नहीं बंटने देंगे?
   ४.  क्या आज भी उन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों की सुनी जाएगी?

   ५.     चलो मानते हैं गलती हो जाया करती है? फिर हम उससे सबक लेते हैं और भविष्य में ऐसी गलतियों से बचते हैं.

तो बताओ तो भला कि

१.     आप कहाँ सो रहे थे जब धरती के स्वर्ग में मस्जिदों से अल्लाह की अजान की जगह यह ऐलान हो रहा था कि कश्मीरी पंडित अपनी औरतों को छोड़कर काश्मीर से चले जाएं  या मरने के लिए तैयार रहें?

२.     आपकी धर्मनिरपेक्षता कहाँ घास चार रही थी जब गिरिजा टिक्कू को उसके मुस्लिम दोस्त के घर से अपहृत कर लिया गया और कोई कुछ नहीं बोला? गिरिजा टिक्कू के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और लकड़ी काटने वाले आरा मशीन में डालकर दो भाग में जिन्दा चीर दिया गया था.

३.     आपकी धर्मनिरपेक्षता को लकवा मार गया था क्या जब टेलिकॉम अभियंता बी के गंजू को चावल के कंटेनर में छूपे होने का राज आतंकियों को उसके पडोसी मुस्लिम परिवार ने बताया था और फिर उस बदनसीब को उसके परिवार के सामने उसी कंटेनर में गोलियों से भून दिया गया और परिवार वालों को उसके खून से सने चावल को खाने को कहा गया था?

४.   उस धर्मनिरपेक्षता का हम क्या करें जिसके छांह में भूषण लाल रैना को इसा मसीह की तरह पेड़ में शूली चढ़ाकर इंच दर इंच मार दिया  गया था जबकि वे गोली मार देने की प्रार्थना करते रहे ?

५.     आप जिस धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं, सर्वानन्द कॉल प्रेमी उसी के पुजारी थे. वे  पूजागृह में हिन्दू ग्रंथों के  साथ कुरान  भी रखते थे. लेकिन सर्वानन्द जी को तिलक लगाने वाले जगह पर लोहे की छड घुसा कर मारा गया. उनके शरीर से चमड़े को छील कर निकाल दिया गया था?

ये सब लिखने का मेरा एक मात्र उद्देश्य यह है कि हमें धर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाण देने की जरुरत नहीं है, इतिहास अटा पड़ा हुआ है ऐसे उदाहरणों से कि हम अपने मां बहनों के  इज्जत-अस्मत , अपने जान, अपनी सम्पति और अपने देश के बंटबारा धार्मिक आधार पर होने के बाबजूद कभी असहिष्णु नहीं हुए. 

हाँ आप तथाकथित धर्मनिर्पेक्ष बुद्धिजीवियों को एक बार अवश्य  सोचने की जरुरत है कि  ऐसा क्यूँ है कि :
अलग अलग कालखंड में हमसे अलग होकर एक इस्लामिक राज्य पैदा होता है और हमारे जमीं में भविष्य के लिए एक इस्लामिक राज्य का बीज छोड़ जाता है. जो निकलते समय के साथ अंकुरित, पुष्पित एवं पल्लवित होता है और फिर एक नए इलामिक राज्य की आहट सुनाई देने लगता है.  

पर मौन समुद्र कब तक मौन रहे? जब आप दीवाल तक धकेल दिए जाते हों, आपके पास और पीछे जाने की जगह नहीं होती तो फिर आपके पास दो हीं विकल्प होते हैं या तो प्रतिरोध कर अपना अस्तित्व बचाए रखें या फिर साल दर साल काल के गाल में समाते चले जाएँ .

अरे जरा सोचिये तो सही, हम इतिहास में हमारे साथ हुए तमाम अत्याचारों को याद भी करें तो हम असहिष्णु कहला दिए जाते  हैं  और वहां  महीनों से दिल्ली के एक खास क्षेत्र को सिर्फ इसलिए पंगु बनाकर रखा गया है क्यूँकि उन्हें आशंका है कि उनके साथ कुछ गलत हो सकता है (जिस आशंका का कोई आधार नहीं है). 
और इनके सुर में कौन सुर मिला रहा है ? 

क्या हमें भी अपने अस्तित्व की चिंता करने का हक है? 

ऐसे में आप हीं बताएं भविष्य किसका दासी बनेगा? उसका जो अपने ऊपर हुए सैकड़ों अत्याचारों को भूलकर आज फिर शुतुरमुर्ग बना हुआ है या फिर उसका जो अपने अस्तित्व पे आने वाले हर आशंका को भी जड़ मूल से मिटाने के लिए अपनी नौकरी, रोजगार, घर परिवार सब छोड़कर सड़कों निकल पड़ा है ?

हो सकता है आपमें से कई लोग कहेंगे कि आज जब हमें उद्योग धंधा, रोजगार और शिक्षा की बात करनी चाहिए वैसे में आजाद हिंदुस्तान में ऐसी बात करना सिर्फ धर्मान्धता की बात है .

तो आपको बता दूँ कि आप ऐसे पहले हिन्दुस्तानी हैं, इस मुगालते में मत रहिएगा. गांधारी से चलते हुए गजनी से लेकर गिरिजा टिक्कू तक पहुँचने में हर मोड, हर गली, हर चौराहे में मुझे आप जैसे लोगों से दो चार होना पड़ा है और आपकी बातों को मानते हुए हीं यहाँ तक की यात्रा तय की है. कश्मीरी पंडितों के पास धन दौलत, ज्ञान, रोजगार सब कुछ तो था पर लाखों कश्मीरियों द्वारा अपना नौकरी-पेशा, धन संपत्ति, मान सम्मान छोड़कर अपनी हीं जन्म भूमि से भागना पड़ा. आज उनका धर्म निरपेक्ष सरकार और आपके जैसे ज्ञानी गुणी जनता के नाक के ठीक सामने अपने हीं देश में शरणार्थी बने रहना आपके वाले धर्मनिरपेक्षता का हर पल चीर हरण कर रहा है और आप हैं कि शुतुरमुर्ग बने रहने में अपना बड़प्पन समझते हैं. आपको आपका शुतुर्मुगी चलन मुबारक हो लेकिन हम सिर्फ तब तक  धर्म निरपेक्ष हैं जब तक हमारे धर्म के ऊपर आक्रमण नहीं होता. 


Friday 29 March 2019

इस्लाम को अपने इन सिद्धांतों को बदलना होगा.




“दर-अल-हरब” से “दर-अल- इस्लाम”  तक की यात्रा



   क्या इस्लाम उपनिवेशवाद को अभिन्न अंग मानता है?


इस्लामी धर्मशास्त्र में “दर अल-हरब” औरदर अल-इस्लाम” के मायने क्या हैं  । इन शब्दों का क्या मतलब है और यह मुस्लिम राष्ट्रों और चरमपंथियों को कैसे प्रवृत्त और प्रभावित करता है? आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह समझना और समझाना अति महत्वपूर्ण हो गया है ।

दर अल-हरब” और दर अल-इस्लाम” का अर्थ

सामान्य अर्थ में, दर अल-हरब” को "युद्ध या अराजकता का क्षेत्र" के रूप में समझा जाता है। यह उन क्षेत्रों के लिए नाम है जहां इस्लाम प्रभावी नहीं है या सत्ता में नहीं है या फिर जहां अल्लाह के आदेश को नहीं माना जाता है। इसलिए, वहां निरंतर संघर्ष ही आदर्श है, जब तक कि वहां भी इस्लाम का शासन स्थापित ना हो जाए. काश्मीर से कश्मीरी पंडितों को मार कर, महिलायों का बलात्कार कर भागने पर मजबूर कर देना और तमिलनाडु में श्री रामलिंगम जैसे लोगों की हत्या कर दिया जाना इस बात का गवाह है कि हिंदुस्तान जैसे "दर-अल-हरब" क्षेत्र में संघर्ष हीं इस्लाम का आदेश है. पाकिस्तान में हिन्दू युवतियों का अपहरण कर धर्मान्तरण करवाना यह साफ़ करता है कि जब तक आखिरी इंसान अल्लाह के आदेश के सामने झुक नहीं जाता इस्लाम का संघर्ष जारी रहना चाहिए.

इसके विपरीत, दर अल-इस्लाम” "अमन का क्षेत्र" है। यह उन क्षेत्रों/देशों के नाम है जहाँ इस्लाम का शासन  है और जहाँ अल्लाह के आदेश को माना जाता है। यह वह जगह है जहां अमन  और चैन राज करती है। पर इस सिद्धांत का खोखलापन आप ईरान,इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, फिलीस्तीन तथा अन्य इस्लामिक देशों की आतंरिक हालत से समझ सकते हैं.

पर भेद इतना सरल नहीं है जितना कि दिखाई देता है। दरअसल इस विभाजन का धर्म के बजाय कानूनी आधार माना जाता है। फर्ज कीजिये कि एक देश में इस्लामी सरकार है लेकिन वह आधुनिक मूल्यों के आधार पर चलता है जहाँ शरिया के बहुत से पुराने एवं अप्रासंगिक आदेशों को नहीं लागू किया जाता हो तो वैसे इस्लामी देश भी “दर अल-हरब”  अथवा "युद्ध या अराजकता का क्षेत्र" की श्रेणी में रखे जायेंगे और चरमपंथियों की कोशिश रहेगी कि संघर्ष या राजनितिक नियंत्रण कर के वहां भी अल्लाह के आदेशों को हुबहू लागू किया जाय.



एक मुस्लिम बहुल देश, जो इस्लामिक कानून से शासित नहीं है, अभी भी “दर-अल-हरब” है। इस्लामी कानून द्वारा शासित एक मुस्लिम-अल्पसंख्यक राष्ट्र भी “दर-अल-इस्लाम” का हिस्सा होने के योग्य है। जहाँ भी मुसलमान प्रभारी हैं और इस्लामी कानून लागू करते हैं, वहाँ “दर-अल-इस्लाम” है।

"युद्ध के क्षेत्र" का मतलब
दर-अल-हरब”, या  "युद्ध का क्षेत्र" को थोड़ा और विस्तार से समझने की आवश्यकता है। दर-अल-हरब” अथवा युद्ध के क्षेत्र के रूप में इसकी पहचान इस सिद्धांत  पर आधारित  है कि अल्लाह के आदेशों का अवहेलना करने का अनिवार्य परिणाम है संघर्ष अथवा युद्ध। जब हर कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करेगा, तो उसका परिणाम अमन और चैन होगा। यहाँ बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि जब तक विश्व का हर व्यक्ति इस्लाम को कबूल नहीं कर लेता, तब तक “अमन का क्षेत्र” या “ दर अल-इस्लाम”  कि स्थपाना नहीं मानी जायेगी और तब तक यह युद्ध जारी रहना चाहिए.
ध्यान देने योग्य  तथ्य यह है कि "युद्ध" दर-अल-हरब”और दर-अल-इस्लाम के बीच संबंध के बारे में भी वर्णन करता है। मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे अल्लाह के आदेश और इच्छा को पूरी मानवता के लिए लाएँ और यदि आवश्यक हो तो बलपूर्वक ऐसा करें।
दर-अल-हरब”को नियंत्रित करने वाली सरकारें इस्लामी  रूप से वैध शक्तियां नहीं हैं क्योंकि वे अल्लाह से अपने अधिकार प्राप्त नहीं करती हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वास्तविक राजनीतिक प्रणाली क्या है, इसे मौलिक और आवश्यक रूप से अमान्य माना जाता है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इस्लामिक सरकारें उनके साथ अस्थायी शांति संधियों में प्रवेश नहीं कर सकती हैं. व्यापार और सुरक्षा के लिए इस्लामिक सरकारें  दर-अल-हरब” को नियंत्रित करने वाली सरकारों के साथ  अस्थायी संधियाँ कर सकती हैं, जैसा कि पाकिस्तान और चीन के बीच देखा जा सकता है ।
सौभाग्य से, सभी मुसलमान वास्तव में गैर-मुस्लिमों के साथ अपने सामान्य संबंधों में इस तरह के व्यवहार नहीं करते हैं - अन्यथा, दुनिया शायद इससे भी बदतर स्थिति में होगी। पर यह भी कटु सत्य है कि आधुनिक समय में भी, इन सिद्धांतों और विचारों को कभी भी निरस्त नहीं किया गया है। उन सिद्धांतों को लागू किया जा रहा हो या नहीं पर ये सिद्धांत आज भी इस्लामिक समाज में गहरी जड़ें जमाई हुई है और उपयुक्त वातावरण पाते हीं उनका विकृत चेहरा हम सब को देखने को मिलता रहता है.


 
मुस्लिम राष्ट्रों और गैर मुस्लिम राष्ट्रों के सामने इस्लाम के 
औपनिवेशिक सिद्धांतों का सुरसा की तरह मुंह बाये चुनौतियाँ 
 
इस्लाम और अन्य संस्कृतियों और धर्मों के साथ शांतिपूर्वक सह-
अस्तित्व के लिए यह सिद्धांत एक बड़ी चुनौती के रूप में 
उपस्थित है. इसमें इस्लाम के अलावा अन्य सभी मान्यताओं के
अस्तित्व को हर पल एक खतरे का आभास बना रहता है। जहाँ
अन्य धर्मों ने अपने पुराने मान्यतायों को आधुनिक जरूरतों के 
अनुसार लगातार बदलता रहा वहीं इस्लाम आज भी इस तरह
के सिद्धांतों को ढो रहा है। यह न केवल गैर-मुसलमानों के लिए 
बल्कि स्वयं मुसलमानों के लिए भी गंभीर खतरे पैदा करता है।
 
ये खतरे इस्लामी चरमपंथियों की देन है जो उन पुराने विचारों 
को औसत मुस्लिम की तुलना में बहुत अधिक शाब्दिक अर्थो में
और अधिक गंभीरता से लेते हैं।यही कारण है कि  मध्य पूर्व में आधुनिक 
धर्मनिरपेक्ष सरकारों को भी पर्याप्त रूप से इस्लामी नहीं माना जाता है
 . ऐसे में  चरमपंथियों के अनुसार, यह उनका इस्लामिक फर्ज है कि काफिरों को सत्ता से 
पदच्युत कर पुनः अल्लाह का शासन स्थापित करे, चाहे उसके लिए 
कितना ही खून क्यूँ ना बहाना पड़े.

इस धारणा से उस रवैये को बल मिलता है कि यदि कोई क्षेत्र जो कभी दर अल-इस्लाम का हिस्सा था, वह दर अल-हरब के नियंत्रण में आता है, तो यह इस्लाम पर हमला माना जाएगा । इसलिए, सभी मुसलमानों का फर्ज  है कि वे खोई हुई भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष करें। यह विचार धर्मनिरपेक्ष अरब सरकारों के विरोध में न केवल कट्टरता को प्रेरित करता है, बल्कि इजरायल राज्य के अस्तित्व को भी चुनौती देता रहता है। चरमपंथियों के लिए, इज़राइल  दर अल-इस्लाम  क्षेत्र पर एक घुसपैठ  है और इस्लामी शासन को उस भूमि पर पुनः बहाल करने से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं है।
उपसंहार 
इस्लाम का कानून या अल्लाह का आदेश सभी लोगों तक पहुँचाने का धार्मिक लक्ष्य को लागू करने  के प्रयास में नतीजतन लोग मरेंगे  - यहां तक ​​कि मुस्लिम या गैर मुस्लिम, बच्चे और औरतें और अन्य सामान्य नागरिक कोई भी हो। और यह उन सबको भली प्रकार पता भी है. फिर भी वे अगर जान हथेली पर  लिए चलते हैं तो उसका कारण है इस्लाम का कर्तव्य के प्रति निष्ठा ना की परिणाम के प्रति. मुस्लिम नैतिकता कर्तव्य की नैतिकता है, परिणाम की नहीं। नैतिक व्यवहार वह है जो अल्लाह के आदेशों के अनुसार हो और जो अल्लाह की इच्छा का पालन करता हो चाहे परिणाम स्वरुप बच्चे और औरतों के ऊपर जुल्म क्यूँ न ढाना पड़े । अनैतिक व्यवहार वह है जो अल्लाह की आदेशों का अवज्ञा करता है। कर्तव्य पथ पर चलने के भयानक एवं दुर्भाग्यपूर्ण नतीजे हो सकते हैं, पर इस्लाम कर्त्तव्य को प्राथमिक मानता है परिणाम को नहीं.परिणाम व्यवहार के मूल्यांकन के लिए एक मानदंड के रूप में काम नहीं कर सकता है। इसी का गलत फायदा उठाकर चरमपंथी धर्मगुरु नौजवानों को आतंकवादी घटना अंजाम देने के लिए मानसिक तौर पर तैयार करते हैं. उन्हें यह अच्छी तरह पढ़ा दिया जाता है कि अल्लाह के रास्ते पर चलते हुए बच्चे, औरतें, सामान्य नागरिक कोई भी मरें फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि तुम अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए ये सब कर रहे हो.
 
Disclaimer: किसी की धार्मिक भावना को आहत करना कतई
उद्देश्य नहीं है, उद्देश्य सिर्फ यह है कि हम एक दुसरे शांतिपूर्ण
सह अस्तित्व के सामने खड़े चुनौतियों को समझें और 
उसका समाधान करें .


Monday 9 July 2018

Indian National Congress (INC) Or Hindu Congress


MAJ (Md.Ali Jinnah)called INC 
a Hindu Congress

"Secularism" is the most talked about topic in the independent India. It is more so today, when India is ruled by BJP (Bhartiya Janta Party) and its ally (NDA) led by Shri Narendra Modi as PM. Congress leaves no effort to brand current government and its leading political party BJP as a Hindu Party, anti Muslim or communal party (both words have become synonymous). 

To appreciate the facts linked to perception based branding of any political organisation as secular or non secular, I will take you to pre-independence era of India. India was inching towards independence from English dominion and "Two nation" theory was gaining strength. The patron of " Two nation" theory Md. Ali Jinnah was not at all in mood to accept independence as one nation on certain notions which he categorically mentioned in his write ups to British government in order to justify his demand. He said:

1.  Muslim India will never accept any method of framing the constitution of India by means of  one constitution making body for all India in which mussulmans will be in hopeless minority.
2.  Nor will they agree to any united India constitution, federal or otherwise, with one centre, in which, again they will be in hopeless minority, and will be at the mercy of perennial Hindu majority domination.
3.   Further, any attempt to set up a provisional government at the centre, which would be in any way prejudice or militate against the Pakistan demand, will not be acceptable to us, as the thin end of the wedge, as it is sought by Hindu India under the term of the Provisional "National" Government of India.
4.   If the labour government wishes to prove its bonafides to give freedom to the peoples of this sub continent, they must face realities and facts as they are. First, the Hindus and the Mussulmans are two major nations living in this sub-continent, and there are Muslim Provinces and Hindu Provinces, and it is the high time that the British government apply their mind definitely to the division of India and the establishment of Pakistan and Hindustan , which means freedom for both, whereas an united India means slavery for mussulmans and complete domination of the imperialistic caste Hinduraj throughout this sub-continent, and this is what the Hindu Congress (http://www.nationalarchives.gov.uk/wp-content/uploads/2014/03/cab127-1361.jpg) seeks to attain by constant threats to all and sundry...


If we just go by the highlighted portion of above statements made by Md. Ali Jinnah, he had brandished the then Political Party in the helm of the affairs as "Hindu congress" and in no mincing words linked the INC with word like "Hindu Majority domination", "Hindu India". In view of the above fact, can INC claim to be secular party, if yes, why BJP should be called communal?
If one has to make up their mind about secular credential of INC ( Indian National Congress) after going through the letter and its annexure written by Md. Ali Jinnah to then British government, what will be your opinion on the subject. Kindly comment in comment box.
Disclaimer: It is just for academic purpose and not for any political purpose.

How to apply for enhanced Pension (EPS95) on EPFO web site: Pre 2014 retirees

                 Step wise guide A) Detailed steps. 1. Open EPFO pension application page using the link  EPFO Pension application The page ...