Dhaaraa370

Friday, 7 December 2018

अभिव्यक्ति की आजादी: जे एन यु विचारमंच





जेएनयू, नालंदा, नेहरू और भारत: ये चारों विषय इतनी विशालता और महत्ता समेटे हुए है कि मेरे जैसा एक अदना सा भूतपूर्व सैनिक कुछ लिखने की हिम्मत बटोरे, वह अपने आप में एक उपलब्धि है. ऊपर से इस विषय को जिन गुणी एवं प्रतिभावान लोगों ने लिखा अथवा शेयर किया है, उनकी जानकारी की तुलना में मैं बिल्कुल तुच्छ ज्ञान रखता हूँ, फिर भी २२ वर्ष सेना में रहने के कारण देश की बात जब भी आती है, थोडा जज्बाती हो जाता हूँ और फिर मचलते विचार खुद ब खुद अँगुलियों को "तेज चल" का आदेश देने लगता है.
परम आदरणीय Premkumar Mani  ( एक खबर के हवाले से कहते हैं कि "जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में कल 5 दिसम्बर को सुबह नौ बजे आरएसएस संरंक्षित स्वदेशी जागरण मंच की श्रीराम मंदिर संकल्प रथयात्रा जत्थे ने प्रवेश किया और हलचल मचा दी . कोई घंटे भर परिसर की वीथियों पर इस जत्थे या जुलूस ने मार्च किया और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर जमकर नारेबाजी की . जुलूस और नारेबाजी जे एन यू के लिए आम बात है . नयी बात (नहीं) है "


तो जनाब नयी बात क्या है?

मैं बताता हूँ ," नई बात क्या है?
नयी बात यह है कि सोचने एवं बोलने की आजादी के पैरोकार विद्यार्थी, शिक्षक, एवं बंधुगण मानते हैं कि यह आजादी सिर्फ और सिर्फ "भारत तेरे तुकडे होंगे, इंशाअल्लाह, इंशाअल्लाह" "अफज़ल तेरे कातिल जिन्दा हैं, तब तक हम शर्मिंदा हैं" के नारों तक ही सीमित रहे,, "भारत माता की जय" तक ना पहुंचे.
विचारों की आजादी मार्क्सवाद, लेनिनवाद तक हीं सीमित रहे, महर्षि पतंजलि, महर्षि चरक, महर्षि विश्वामित्र तक न पहुंचे.
विचारों की आजादी, मां दुर्गा को एक वेश्या के रूप में पेश करने तक रहे, मां दुर्गा को एक सामूहिक शक्ति पुंज, अनाचारियों के विनाशक के रूप में पेश करने तक न जाए,
विचारों की आजादी देश के प्रधानमंत्री के आलोचना तक ही सीमित रहे, उनके आलोचकों के आलोचना तक न पहुंचे.
और अगर इनमे से एक भी हुआ तो आप विचारों की आजादी के हत्यारे हैं. क्यूँ साहेब सही है न.

आप लोगों की तरह हम कलम के सिपाही तो हैं नहीं कि लच्छेदार शब्दों के मकडजाल में मासूम मकड़ियों को फंसा सकें, हम तो बन्दुक के सिपाही हैं और हो सकता है शब्दों के रण में आपसे पीछे रह जाएँ लेकिन इस अपंगता के डर से हम चुप बैठेंगे ऐसा तो कतई न होगा.


नेहरू जी की बिटिया और उसके प्रशंसक ने बड़े अरमान से जे एन यु बनाई होगी और उसका हम सब सम्मान करते हैं, पर एक सवाल है आप गुणी लोगों से- कृपया यह बताएं कि आम जनता (आप विशेष गुणी जनों को छोड़कर) इस विश्वविद्यालय को किसके नाम से जानती है? कन्हैया, अनिर्बान और उम्र खालिद जैसे विद्यार्धियों के नाम से,भारत तेरे टुकडे होंगे जैसे नारों के नाम से. जानता है उनके उन विवादित बोलों से जो उनके ही विश्वविद्यालय से डिग्री लिए फ़ौज के अधिकारिओं के खिलाफ होता है.
और दावे के साथ कह सकता हूँ कि नेहरु जी की बिटिया और उनके प्रशंसकों के ये तो अरमान नहीं ही रहे होंगे.
आप कहते हैं , " नेहरू के लिए प्राचीन भारतीय इतिहास का अर्थ राम -कृष्ण -शिव नहीं था ; उनके लिए इतिहास का मतलब बुद्ध -अशोक - आर्यभट्ट था या फिर अश्वघोष -कालिदास - कबीर या फिर सभ्यताओं के उत्थान और पतन की गाथाएं अथवा इतिवृत्त."
तो क्या आपकी विचारों की उड़ान नेहरू और उनके किताबों की रचना तक जाकर रुक जाती है, थक जाती है. और अगर ऐसा है तो क्या आप हमें भी विचारों की गुलामी नहीं सिखा रहे हैं. आप तत्कालीन शाशकों के भाट-चरण गिरी नहीं कर रहे हैं.

हम तो वो हैं जो, सत्य की खोज के लिए क्षितिज के क्षितिज तक जाने की बात करतें हैं, हम तो वो हैं जो सत्यम, शिवम्, सुन्दरम तक जाने की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो एको अहम् बहुस्यामः की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो कृष्ण की गीता से जीवन के सूत्रों की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों से जीवन को सजाने की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो महर्षि चरक के प्रकृति के साहचर्य बनकर स्वस्थ बने रहने की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो भौतिक विज्ञान से ऊपर चेतना विज्ञान की बात करते हैं पर आप के लिए ये सब बेमानी बातें हैं और हो भी क्यूँ नहीं. आपने कभी अपने पूर्वजों को ज्ञानवान समझा हीं कहाँ है, आपके लिए तो सारे ज्ञान पश्चिम के पुस्तकों और विद्वानों के मस्तिष्क में भरा हुआ है, हम तो ठहरे पैदायशी अनपढ़, अज्ञानी, सांप संपेरों वाला देश.
जय हिन्द

Saturday, 1 December 2018

स्वर्ग और नर्क की अवधारणा : Concept of Heaven and Hell

स्वर्ग की अप्सरा 






स्वर्ग की अप्सराएँ, जन्नत की ७२ हूरें, नर्क की क्रूर यातनाएं. ऐसे अनगिनत कहानियां हमारे सोच को हर पल हर क्षण प्रभावित करती रहती हैं. पर क्या हमने कभी सोचा कि  क्या सचमुच जन्नत में ७२ हूरें हमारी इन्तेजार करती मिलेंगी और स्वर्ग में उर्वशी और रम्भा जैसी अप्सराएँ? क्या सचमुच कोई नर्क जैसी यातना गृह है जहाँ हमें खौलते तेल में जलाया जाता है?

आइये एक बौध्दिक नजर डालें.

सच तो यह है की स्वर्ग या नर्क किसी अलग लोक में निर्मित ईमारतें या परिस्थितियां नहीं हैं, जैसा की सांकेतिक तौर पर धार्मिक ग्रंथों में बताया जाता है.  स्वर्ग और नर्क का अस्तित्व इसी धरती पर है और हमेशा हमारे साथ चलता रहता है.

जब चिंतन की धारा उत्कृष्ट और क्रिया-कलाप उच्चस्तरीय हो तो हम आनंद से भरे रहते हैं, और यही स्वर्ग है.अपनी सज्जनता बाहर के लोगों की श्रद्धा, सहानुभूति और योगदान लेकर लौटती है. ऐसे व्यक्ति घटिया व्यक्तियों, वस्तुओं और परिस्थितियों के बीच भी उल्लास भरा वातावरण बना लेते हैं. यही स्वर्ग का सृजन है,
स्वर्ग का सृजन मनुष्य के अपने हाथ में है. उत्कृष्ट चिंतन और आदर्श कर्तृत्व अपनाकर कोई भी मनुष्य आतंरिक प्रसन्नता और बाहर से सज्जनों का सद्भाव संपन्न सहयोग पाकर स्वर्गीय आनंद का रसास्वादन कर सकता है. उर्ध्वगमन ही स्वर्गारोहण है, पांडव इसी शांत-शीतलता की तलाश में हिमालय की चोटियों पर चढ़े थे.इस उपाख्यान में यह अलंकर व्यक्त किया गया है कि जितनी अधिक मात्र में उत्कृष्टता अपनाई जाएगी, अपनी स्थिति दूसरों की तुलना में उतनी ही ऊँची उठ जाएगी और उतनी ही मात्र में शांत-शीतलता का अनुभव होगा, स्वर्ग इसी प्रकार पाया जाता है.

ठीक उसी प्रकार दुर्बुद्धि बाले मनुष्य अपनी दूषित दृष्टि और दुष्प्रवृतियों के कारण अच्छे वातावरण में भी विक्षोभ उत्पन्न करते हैं. यही नर्क का सृजन है.

परिस्थितियां नहीं मनःस्थिति ही हमें नरक में डुबोती है और स्वर्ग के शिखर पर चढ़ाती है. नरक को नीचे पाताल लोक में बताया गया है और स्वर्ग को ऊपर आसमान में. इसका तात्पर्य इतना है कि पतित और निकृष्ट व्यक्तित्व अपनी दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृतियों के दुखद अनुभूतियों एवं परिस्थितियों से घिरा रहता है और यमदूत द्वारा उत्पीडन दिए जाने जैसी पीड़ा सहता है. यह यमदूत कोई और नहीं बल्कि अपने हीं कुविचार और कुकर्म हैं. गया-गुजरा स्तर अन्दर हीं अन्दर जलता है और बाहर से प्रतिकूलताएं सहता है, यही यमदूतों का दंड प्रहार है.

जहां प्रेम है, सहयोग है, सत्कर्म है, सदाचार है, शिक्षा है, विद्या है, वहीँ स्वर्ग है,
जहाँ घृणा है, स्वार्थ है, दुष्कर्म है, दुराचार है, अज्ञान और अभाव है वहीँ नर्क है.

अतः स्वर्ग में ७२ हूरें मिलेंगी, इस उम्मीद में अपनी बर्तमान जिंदगी को नर्क ना बनाएं.
जय हिन्द

सन्दर्भ- युगधर्मी साहित्य (पंडित श्री राम शर्मा आचार्य)

Tuesday, 20 November 2018

Smash Brahmanical Patriarchy



"Smash Brahmmanical Patriarchy" का पोस्टर हाथ में थामे श्री जैक डोरसी और उनके तथाकथित संभ्रांत दोस्त को शायद 'ब्राह्मण" शब्द की समझ नहीं है या फिर हिंदु और हिंदुस्तान के प्रति नफ़रत का नतीजा है कि वे ब्राह्मण और ब्राहमणत्व को समाप्त करने में अपनी उपलब्धि समझ रहे हैं. लेकिन आप के लिए यह जरुरी है कि आप समझ लें, ब्राह्मण किसे कहते हैं और ब्राह्मण कोई जाति विशेष का नाम है या फिर कुछ और.
आइये जानें ब्राह्मण होता कौन है ? हमने भारतीय धर्म ग्रंथों से यह समझने की कोशिश की है कि ब्राह्मण कौन है, आप भी देखें और अपना कमेंट दें. 


1.    भगवान बुद्ध अनाथ पिण्डक के जैतवन में ग्रामवासियों को उपदेश कर रहे थे। शिष्य, अनाथ पिण्डक भी समीप ही बैठा, धर्मचर्चा का लाभ ले रहा था। तभी सामने से महाकाश्यप, मौद्गल्यायन, सारिपुत्र, चुन्द और देवदत्त आदि आते हुए दिखाई दिये। उन्हें देखते ही बुद्ध ने कहा- वत्स! उठो! यह ब्राह्मण मण्डली आ रही है, उसके लिए योग्य आसन का प्रबन्ध करे।
अनाथ पिण्डक ने आयुष्मानों की ओर दृष्टि दौड़ाई, फिर साश्चर्य कहा- भगवन्! आप सम्भवतः इन्हें जानते नहीं। ब्राह्मण तो इनमें कोई एक ही है, शेष कोई क्षत्रिय, कोई वैश्य और कोई अस्पृश्य भी है।
गौतम बुद्ध अनाथ पिण्डक के वचन सुनकर हँसे और बोले- तात! जाति जन्म से नहीं गुण, कर्म और स्वभाव से पहचानी जाती है। श्रेष्ठ, रागरहित, धर्मपरायण, संयमी और सेवा भावी होने के कारण ही इन्हें मैंने ब्राह्मण कहा है। ऐसे पुरुष को तू निश्चय ही ब्राह्मण मानजन्म से तो सभी जीव शूद्र होते हैं।
         -akhand Jyoti by AWGP 1986

2   “निरुक्त शास्त्रके प्रणेता यास्क मुनि इसीलिए कहते हैं
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात्‌ भवेत द्विजः।
वेद पाठात्‌ भवेत्‌ विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।
अर्थात व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।
3      भगवद गीता में श्री कृष्ण के अनुसार
शम, दम, करुणा, प्रेम, शील (चारित्र्यवान), निस्पृही जेसे गुणों का स्वामी ही ब्राह्मण हे
4       सत्य यह हे कि केवल जन्म से ब्राह्मण होना संभव नहीं हे.
कर्म से कोई भी ब्राह्मण बन सकता हे यह सत्य हे.
इसके कई प्रमाण वेदों और ग्रंथो में मिलते हे जेसे…..
(a) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे | परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की| ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है|
(b) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीन चरित्र भी थे | परन्तु बाद मेंउन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये|ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(c) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |
 (d) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मणहुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)
(e) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं |
(f) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |
(g) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपनेकर्मों से राक्षस बना |
 (h) विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(i) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |
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अतएव वर्ण निर्धारण” …गुण और कर्म के आधार पर ही तय होता हैं, जन्म के आधार पर नहीं.
कुछ भ्रमित लोग विदेशी ताकतों के साथ मिलकर हमारे सत्य सनातन धर्म को बांटना चाहते हैं, उनकी कुत्सित मंशा को अपने ज्ञान एवं क्षमता के द्वारा विफल करना आज के ब्राह्मणत्व की मांग है.


Saturday, 17 November 2018

चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ

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तुम सीता और शेखर, हम सलमा और सुलेमान हो जाएँ
तुम थोड़े हिन्दू और हम थोड़े मुसलमान हो जाएँ,
चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ
हरी सलवार और मस्तक पर वो भगवा बिंदी,
इस धरा के ऊपर सुबह का आसमान हो जाएँ
चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ
पहन धोती और माथे पे वो प्यारी टोपी
चलो हम सुबह की पहली अजान हो जाएँ.
चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ
मेरे दिवाली की दीपक की लौ से रोशन
तेरा चाक, चौबारा और मकान हो जाए
चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ
तेरे ईद की ईदी और इबादत से ,
हमारे जिन्दगी के जंग कुछ आसान हो जाए
चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ
हमारे ध्यान में अल्लाह की इबादत हो,
तेरे नमाज में अल्लाह भी भगवान हो जाएँ
चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो; हमहीं हम हैं तो क्या हम हैं,
क्यूँ न हम तुम सब मिलकर, प्यारा हिंदुस्तान हो जाएँ.
चलो हम थोड़े से इंसान हो जाएँ
निवेदन: मेरी दूसरी रचना “हे मां, तुम्हें नमन है’ पर प्रतिक्रिया दें, अच्छी लगी तो नीचे दिए लिंक पर जाकर  वोट करें. 
सादर धन्यवाद


https://hindi.sahityapedia.com/?p=100953

Friday, 9 November 2018

हे माँ, तुम्हें नमन है


माँ, निर्झर का पानी है; अमिट कहानी है,
माँ, धरती और अम्बर की तुम ही तो रानी है,
माँ, जलती दुपहरी में पीपल का छाँव है,
माँ, सागर की लहरों पर इठलाती नाव है,
माँ, ठिठुरती सर्दी में दोशाले का ताप है,
माँ, श्रध्दा है, भक्ति है, गायत्री का जाप है,
माँ माली है, चमन है; चमन का सुमन भी है,
माँ, खुशबू का झोंका है,बासंती पवन भी है .
माँ, अटपटे सवालों का, प्यारा जबाब है,
माँ, दर्द भरे दुनियां में, प्यारा सा ख्वाब है.
माँ, प्रेम है, भक्ति है; शिव है और शक्ति है
माँ, धरती पर ईश्वर की; एकमात्र अभिव्यक्ति है .
माँ, वंदन है, चन्दन है; धड़कन है, पुलकन है,
माँ, स्वर्ग सा घरौंदा है, घरौदें में जीवन है.
माँ, जीवन का लक्ष्य है, ईश्वरीय पैगाम है,
माँ, सीता-सावित्री है, शबरी है, राम है
माँ ब्रह्मा है, विष्णु है, माँ ओंकार है ,
माँ, सरस्वती की विद्या और दुर्गा की हुंकार है.
माँ पुण्य का पुरौधा और पाप का शमन है,
हे माँ, तुम्हें हमारा, नमन है, नमन है.

अगर कविता अच्छी लगी हो तो निचे दिए लिंक पर जाकर अपना मत (वोट) अवश्य दें. यह एक प्रतियोगिता का हिस्सा है.

Monday, 5 November 2018

द्रौपदी का चीरहरण



आओ मुरारी अब,
 द्रौपदी बचाओ तुम्हीं;
 पक्ष या विपक्ष हो,
सबों में दु:शासन हैं

घर हो, गली हो या
फिर शासन- प्रशासन हो
पांडव दुबके हुए हैं;
दुर्योधन का शासन है,
आओ मुरारी----

धर्म का धरा है डोला,
भीम का गदा ना बोला,
पार्थ का गाण्डीव भी,
करे अब वज्रासन है.
आओ मुरारी----

कुरु की आँखों में हवस,
भीष्म की चले हैं न वस;
द्रोण के गुरुकुल में भी;
हवसियों का शासन है.
आओ मुरारी----

दिल्ली दहल रही है,
पटना भी परेशां ,
गाँधी के गुजरात का भी;
बिगड़ा अनुशासन है.
आओ मुरारी----

द्वापर में द्रौपदी को;
आपका सहारा मिला,
कलयुग में द्रौपदी के;
चारों ओर रावण है .
आओ मुरारी----

Tuesday, 16 October 2018

विज्ञान और धर्म की आस्तिकता - नास्तिकता



विज्ञान कहने से सामान्य तौर पर हम भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान समझते हैं. और तो और जीव विज्ञान तो अपना दायरा सिर्फ शारीरिक पक्ष तक हीं सीमित कर रखा  है. जबकि शरीर में  शारीरिक पक्ष से कई गुना बड़ा  दायरा, शुक्ष्म एवं कारण शरीर का है जो जीव विज्ञान के दायरे में है ही नहीं.

धर्म के दायरे में हम सिर्फ धार्मिक कर्मकांडों - बाबा, मौलवी और पादरी - मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों को लाते हैं.

लेकिन दृष्टिकोण बदलते हीं आप देखेंगे कि विज्ञान का दायरा वहीं  जाकर ख़त्म होता है जहाँ धर्म (आध्यात्म) का दायरा. और वह दायरा है  "अंतिम सत्य का अन्वेषण" .

अब सवाल यह खड़ा होता है की आखिर वह अंतिम सत्य है क्या? कोई अंतिम सत्य  हो भी सकता है क्या?

आगे बढ़ने से पहले आइये एक नजर डालते है,  समाज  ने विज्ञान एवं धर्म के माध्यम से क्या खोया क्या पाया?

विज्ञान (भौतिक) ने  समाज को नित्य नए  तकनीक दे रही  है जिससे जीवनयापन को आसान से आसान बनाया जा सकता है. उद्योग, संचार, ट्रांसपोर्टेशन, मेडिकल सुविधा, आर्तिफ़िसिअल इंटेलिजेंस वगैरह वगैरह. इससे ऊपर कुछ किया भी नहीं है और किया जा भी नहीं सकता है.

साथ में इसने हमें दिया है अस्त्र शस्त्रों का जखीरा, नए नए जानलेवा रोग जिससे न सिर्फ लाखों रोगी तमाम मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा को भोगने को मजबूर हैं बल्कि सामूहिक विध्वंस के अस्त्र शस्त्र दुनिया को मिटाने के लिए बेताब हो रहे  हैं.

धर्मं ने हमें यह सिखाया है कि हमें अपने ज्ञान एवं कर्मेन्द्रियों का बेहतर और उचित इस्तेमाल कैसे करना है ताकि हम अच्छे भाई-बहन, अच्छे पति-पत्नी, अच्छे माँ-पिता और अच्छे नागरिक बन सकें और अंततः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कर सकें.

साथ में इसने हमें दिया है अंधविश्वास और अंधभक्ति जिसके चपेट में आकर हमारे मासूम भाई बहन न सिर्फ अपनी जिंदगी बरबाद कर लेते हैं बल्कि सामजिक एवं देश के विकाश के लिए हानिकारक भी सिद्ध होते हैं.

अगर हम विज्ञान के शिक्षा पक्ष (बुध्धि) और धर्म के ज्ञान पक्ष (विवेक) को एक साथ मिला दें तो न सिर्फ हमारी व्यक्तिगत जीवन यात्रा शानदार हो जाती है बल्कि हम एक ऐसे समाज की रचना कर पाते हैं   जहाँ न अश्पृश्यता होगा न भुखमरी, ना आतंकवाद होगा और न अज्ञान , ना चाटुकारिता होगी न शोषण.

फिर हम विज्ञान के "बिग बैंग सिद्धांत" और "धर्म के एकोअहम बहुश्यामः" सिद्धांत की समानता को समझ पायेंगे. दोनों ही हमें उस अंतिम सत्य तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा है कि हम सभी एक ही उर्जा का विभिन्न अभिव्यक्ति मात्र हैं, हम सब एक ही इश्वर के संतान हैं.

धर्मपूर्ण विज्ञान और वैज्ञानिक अध्यात्म (धर्म) इस वक्त की मांग हैं और पंडित श्री राम शर्मा आचार्य (अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक) ने वैज्ञानिक अध्यात्म का प्रतिपादन करने के पश्चात यह घोषणा कई दशक पहले कर चुकें हैं की वैज्ञानिक अध्यात्मवाद ( गायत्री विद्या एवं यज्ञ विज्ञान) के द्वारा धरती पर स्वर्ग का अवतरण तय है.
गायत्री विद्या हमारे चिंतन एवं ज्ञान पक्ष को  जबकि यज्ञ विज्ञान हमारे कर्म  पक्ष को सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक  बनाता है.
यही है हमारे भारत के धर्मं एवं ऋषि परंपरा का वैज्ञानिक अध्यात्मवाद .



  नवादा विधान सभा में किसानों की आय दोगुनी करने की रणनीति एक स्थायी कृषि विकास योजना नवादा की कृषि को विविधीकरण , तकनीक अपनाने ,...