Dhaaraa370

Friday 7 December 2018

अभिव्यक्ति की आजादी: जे एन यु विचारमंच





जेएनयू, नालंदा, नेहरू और भारत: ये चारों विषय इतनी विशालता और महत्ता समेटे हुए है कि मेरे जैसा एक अदना सा भूतपूर्व सैनिक कुछ लिखने की हिम्मत बटोरे, वह अपने आप में एक उपलब्धि है. ऊपर से इस विषय को जिन गुणी एवं प्रतिभावान लोगों ने लिखा अथवा शेयर किया है, उनकी जानकारी की तुलना में मैं बिल्कुल तुच्छ ज्ञान रखता हूँ, फिर भी २२ वर्ष सेना में रहने के कारण देश की बात जब भी आती है, थोडा जज्बाती हो जाता हूँ और फिर मचलते विचार खुद ब खुद अँगुलियों को "तेज चल" का आदेश देने लगता है.
परम आदरणीय Premkumar Mani  ( एक खबर के हवाले से कहते हैं कि "जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में कल 5 दिसम्बर को सुबह नौ बजे आरएसएस संरंक्षित स्वदेशी जागरण मंच की श्रीराम मंदिर संकल्प रथयात्रा जत्थे ने प्रवेश किया और हलचल मचा दी . कोई घंटे भर परिसर की वीथियों पर इस जत्थे या जुलूस ने मार्च किया और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर जमकर नारेबाजी की . जुलूस और नारेबाजी जे एन यू के लिए आम बात है . नयी बात (नहीं) है "


तो जनाब नयी बात क्या है?

मैं बताता हूँ ," नई बात क्या है?
नयी बात यह है कि सोचने एवं बोलने की आजादी के पैरोकार विद्यार्थी, शिक्षक, एवं बंधुगण मानते हैं कि यह आजादी सिर्फ और सिर्फ "भारत तेरे तुकडे होंगे, इंशाअल्लाह, इंशाअल्लाह" "अफज़ल तेरे कातिल जिन्दा हैं, तब तक हम शर्मिंदा हैं" के नारों तक ही सीमित रहे,, "भारत माता की जय" तक ना पहुंचे.
विचारों की आजादी मार्क्सवाद, लेनिनवाद तक हीं सीमित रहे, महर्षि पतंजलि, महर्षि चरक, महर्षि विश्वामित्र तक न पहुंचे.
विचारों की आजादी, मां दुर्गा को एक वेश्या के रूप में पेश करने तक रहे, मां दुर्गा को एक सामूहिक शक्ति पुंज, अनाचारियों के विनाशक के रूप में पेश करने तक न जाए,
विचारों की आजादी देश के प्रधानमंत्री के आलोचना तक ही सीमित रहे, उनके आलोचकों के आलोचना तक न पहुंचे.
और अगर इनमे से एक भी हुआ तो आप विचारों की आजादी के हत्यारे हैं. क्यूँ साहेब सही है न.

आप लोगों की तरह हम कलम के सिपाही तो हैं नहीं कि लच्छेदार शब्दों के मकडजाल में मासूम मकड़ियों को फंसा सकें, हम तो बन्दुक के सिपाही हैं और हो सकता है शब्दों के रण में आपसे पीछे रह जाएँ लेकिन इस अपंगता के डर से हम चुप बैठेंगे ऐसा तो कतई न होगा.


नेहरू जी की बिटिया और उसके प्रशंसक ने बड़े अरमान से जे एन यु बनाई होगी और उसका हम सब सम्मान करते हैं, पर एक सवाल है आप गुणी लोगों से- कृपया यह बताएं कि आम जनता (आप विशेष गुणी जनों को छोड़कर) इस विश्वविद्यालय को किसके नाम से जानती है? कन्हैया, अनिर्बान और उम्र खालिद जैसे विद्यार्धियों के नाम से,भारत तेरे टुकडे होंगे जैसे नारों के नाम से. जानता है उनके उन विवादित बोलों से जो उनके ही विश्वविद्यालय से डिग्री लिए फ़ौज के अधिकारिओं के खिलाफ होता है.
और दावे के साथ कह सकता हूँ कि नेहरु जी की बिटिया और उनके प्रशंसकों के ये तो अरमान नहीं ही रहे होंगे.
आप कहते हैं , " नेहरू के लिए प्राचीन भारतीय इतिहास का अर्थ राम -कृष्ण -शिव नहीं था ; उनके लिए इतिहास का मतलब बुद्ध -अशोक - आर्यभट्ट था या फिर अश्वघोष -कालिदास - कबीर या फिर सभ्यताओं के उत्थान और पतन की गाथाएं अथवा इतिवृत्त."
तो क्या आपकी विचारों की उड़ान नेहरू और उनके किताबों की रचना तक जाकर रुक जाती है, थक जाती है. और अगर ऐसा है तो क्या आप हमें भी विचारों की गुलामी नहीं सिखा रहे हैं. आप तत्कालीन शाशकों के भाट-चरण गिरी नहीं कर रहे हैं.

हम तो वो हैं जो, सत्य की खोज के लिए क्षितिज के क्षितिज तक जाने की बात करतें हैं, हम तो वो हैं जो सत्यम, शिवम्, सुन्दरम तक जाने की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो एको अहम् बहुस्यामः की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो कृष्ण की गीता से जीवन के सूत्रों की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों से जीवन को सजाने की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो महर्षि चरक के प्रकृति के साहचर्य बनकर स्वस्थ बने रहने की बात करते हैं, हम तो वो हैं जो भौतिक विज्ञान से ऊपर चेतना विज्ञान की बात करते हैं पर आप के लिए ये सब बेमानी बातें हैं और हो भी क्यूँ नहीं. आपने कभी अपने पूर्वजों को ज्ञानवान समझा हीं कहाँ है, आपके लिए तो सारे ज्ञान पश्चिम के पुस्तकों और विद्वानों के मस्तिष्क में भरा हुआ है, हम तो ठहरे पैदायशी अनपढ़, अज्ञानी, सांप संपेरों वाला देश.
जय हिन्द

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