Dhaaraa370

Friday 29 March 2019

इस्लाम को अपने इन सिद्धांतों को बदलना होगा.




“दर-अल-हरब” से “दर-अल- इस्लाम”  तक की यात्रा



   क्या इस्लाम उपनिवेशवाद को अभिन्न अंग मानता है?


इस्लामी धर्मशास्त्र में “दर अल-हरब” औरदर अल-इस्लाम” के मायने क्या हैं  । इन शब्दों का क्या मतलब है और यह मुस्लिम राष्ट्रों और चरमपंथियों को कैसे प्रवृत्त और प्रभावित करता है? आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह समझना और समझाना अति महत्वपूर्ण हो गया है ।

दर अल-हरब” और दर अल-इस्लाम” का अर्थ

सामान्य अर्थ में, दर अल-हरब” को "युद्ध या अराजकता का क्षेत्र" के रूप में समझा जाता है। यह उन क्षेत्रों के लिए नाम है जहां इस्लाम प्रभावी नहीं है या सत्ता में नहीं है या फिर जहां अल्लाह के आदेश को नहीं माना जाता है। इसलिए, वहां निरंतर संघर्ष ही आदर्श है, जब तक कि वहां भी इस्लाम का शासन स्थापित ना हो जाए. काश्मीर से कश्मीरी पंडितों को मार कर, महिलायों का बलात्कार कर भागने पर मजबूर कर देना और तमिलनाडु में श्री रामलिंगम जैसे लोगों की हत्या कर दिया जाना इस बात का गवाह है कि हिंदुस्तान जैसे "दर-अल-हरब" क्षेत्र में संघर्ष हीं इस्लाम का आदेश है. पाकिस्तान में हिन्दू युवतियों का अपहरण कर धर्मान्तरण करवाना यह साफ़ करता है कि जब तक आखिरी इंसान अल्लाह के आदेश के सामने झुक नहीं जाता इस्लाम का संघर्ष जारी रहना चाहिए.

इसके विपरीत, दर अल-इस्लाम” "अमन का क्षेत्र" है। यह उन क्षेत्रों/देशों के नाम है जहाँ इस्लाम का शासन  है और जहाँ अल्लाह के आदेश को माना जाता है। यह वह जगह है जहां अमन  और चैन राज करती है। पर इस सिद्धांत का खोखलापन आप ईरान,इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, फिलीस्तीन तथा अन्य इस्लामिक देशों की आतंरिक हालत से समझ सकते हैं.

पर भेद इतना सरल नहीं है जितना कि दिखाई देता है। दरअसल इस विभाजन का धर्म के बजाय कानूनी आधार माना जाता है। फर्ज कीजिये कि एक देश में इस्लामी सरकार है लेकिन वह आधुनिक मूल्यों के आधार पर चलता है जहाँ शरिया के बहुत से पुराने एवं अप्रासंगिक आदेशों को नहीं लागू किया जाता हो तो वैसे इस्लामी देश भी “दर अल-हरब”  अथवा "युद्ध या अराजकता का क्षेत्र" की श्रेणी में रखे जायेंगे और चरमपंथियों की कोशिश रहेगी कि संघर्ष या राजनितिक नियंत्रण कर के वहां भी अल्लाह के आदेशों को हुबहू लागू किया जाय.



एक मुस्लिम बहुल देश, जो इस्लामिक कानून से शासित नहीं है, अभी भी “दर-अल-हरब” है। इस्लामी कानून द्वारा शासित एक मुस्लिम-अल्पसंख्यक राष्ट्र भी “दर-अल-इस्लाम” का हिस्सा होने के योग्य है। जहाँ भी मुसलमान प्रभारी हैं और इस्लामी कानून लागू करते हैं, वहाँ “दर-अल-इस्लाम” है।

"युद्ध के क्षेत्र" का मतलब
दर-अल-हरब”, या  "युद्ध का क्षेत्र" को थोड़ा और विस्तार से समझने की आवश्यकता है। दर-अल-हरब” अथवा युद्ध के क्षेत्र के रूप में इसकी पहचान इस सिद्धांत  पर आधारित  है कि अल्लाह के आदेशों का अवहेलना करने का अनिवार्य परिणाम है संघर्ष अथवा युद्ध। जब हर कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करेगा, तो उसका परिणाम अमन और चैन होगा। यहाँ बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि जब तक विश्व का हर व्यक्ति इस्लाम को कबूल नहीं कर लेता, तब तक “अमन का क्षेत्र” या “ दर अल-इस्लाम”  कि स्थपाना नहीं मानी जायेगी और तब तक यह युद्ध जारी रहना चाहिए.
ध्यान देने योग्य  तथ्य यह है कि "युद्ध" दर-अल-हरब”और दर-अल-इस्लाम के बीच संबंध के बारे में भी वर्णन करता है। मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे अल्लाह के आदेश और इच्छा को पूरी मानवता के लिए लाएँ और यदि आवश्यक हो तो बलपूर्वक ऐसा करें।
दर-अल-हरब”को नियंत्रित करने वाली सरकारें इस्लामी  रूप से वैध शक्तियां नहीं हैं क्योंकि वे अल्लाह से अपने अधिकार प्राप्त नहीं करती हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वास्तविक राजनीतिक प्रणाली क्या है, इसे मौलिक और आवश्यक रूप से अमान्य माना जाता है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इस्लामिक सरकारें उनके साथ अस्थायी शांति संधियों में प्रवेश नहीं कर सकती हैं. व्यापार और सुरक्षा के लिए इस्लामिक सरकारें  दर-अल-हरब” को नियंत्रित करने वाली सरकारों के साथ  अस्थायी संधियाँ कर सकती हैं, जैसा कि पाकिस्तान और चीन के बीच देखा जा सकता है ।
सौभाग्य से, सभी मुसलमान वास्तव में गैर-मुस्लिमों के साथ अपने सामान्य संबंधों में इस तरह के व्यवहार नहीं करते हैं - अन्यथा, दुनिया शायद इससे भी बदतर स्थिति में होगी। पर यह भी कटु सत्य है कि आधुनिक समय में भी, इन सिद्धांतों और विचारों को कभी भी निरस्त नहीं किया गया है। उन सिद्धांतों को लागू किया जा रहा हो या नहीं पर ये सिद्धांत आज भी इस्लामिक समाज में गहरी जड़ें जमाई हुई है और उपयुक्त वातावरण पाते हीं उनका विकृत चेहरा हम सब को देखने को मिलता रहता है.


 
मुस्लिम राष्ट्रों और गैर मुस्लिम राष्ट्रों के सामने इस्लाम के 
औपनिवेशिक सिद्धांतों का सुरसा की तरह मुंह बाये चुनौतियाँ 
 
इस्लाम और अन्य संस्कृतियों और धर्मों के साथ शांतिपूर्वक सह-
अस्तित्व के लिए यह सिद्धांत एक बड़ी चुनौती के रूप में 
उपस्थित है. इसमें इस्लाम के अलावा अन्य सभी मान्यताओं के
अस्तित्व को हर पल एक खतरे का आभास बना रहता है। जहाँ
अन्य धर्मों ने अपने पुराने मान्यतायों को आधुनिक जरूरतों के 
अनुसार लगातार बदलता रहा वहीं इस्लाम आज भी इस तरह
के सिद्धांतों को ढो रहा है। यह न केवल गैर-मुसलमानों के लिए 
बल्कि स्वयं मुसलमानों के लिए भी गंभीर खतरे पैदा करता है।
 
ये खतरे इस्लामी चरमपंथियों की देन है जो उन पुराने विचारों 
को औसत मुस्लिम की तुलना में बहुत अधिक शाब्दिक अर्थो में
और अधिक गंभीरता से लेते हैं।यही कारण है कि  मध्य पूर्व में आधुनिक 
धर्मनिरपेक्ष सरकारों को भी पर्याप्त रूप से इस्लामी नहीं माना जाता है
 . ऐसे में  चरमपंथियों के अनुसार, यह उनका इस्लामिक फर्ज है कि काफिरों को सत्ता से 
पदच्युत कर पुनः अल्लाह का शासन स्थापित करे, चाहे उसके लिए 
कितना ही खून क्यूँ ना बहाना पड़े.

इस धारणा से उस रवैये को बल मिलता है कि यदि कोई क्षेत्र जो कभी दर अल-इस्लाम का हिस्सा था, वह दर अल-हरब के नियंत्रण में आता है, तो यह इस्लाम पर हमला माना जाएगा । इसलिए, सभी मुसलमानों का फर्ज  है कि वे खोई हुई भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष करें। यह विचार धर्मनिरपेक्ष अरब सरकारों के विरोध में न केवल कट्टरता को प्रेरित करता है, बल्कि इजरायल राज्य के अस्तित्व को भी चुनौती देता रहता है। चरमपंथियों के लिए, इज़राइल  दर अल-इस्लाम  क्षेत्र पर एक घुसपैठ  है और इस्लामी शासन को उस भूमि पर पुनः बहाल करने से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं है।
उपसंहार 
इस्लाम का कानून या अल्लाह का आदेश सभी लोगों तक पहुँचाने का धार्मिक लक्ष्य को लागू करने  के प्रयास में नतीजतन लोग मरेंगे  - यहां तक ​​कि मुस्लिम या गैर मुस्लिम, बच्चे और औरतें और अन्य सामान्य नागरिक कोई भी हो। और यह उन सबको भली प्रकार पता भी है. फिर भी वे अगर जान हथेली पर  लिए चलते हैं तो उसका कारण है इस्लाम का कर्तव्य के प्रति निष्ठा ना की परिणाम के प्रति. मुस्लिम नैतिकता कर्तव्य की नैतिकता है, परिणाम की नहीं। नैतिक व्यवहार वह है जो अल्लाह के आदेशों के अनुसार हो और जो अल्लाह की इच्छा का पालन करता हो चाहे परिणाम स्वरुप बच्चे और औरतों के ऊपर जुल्म क्यूँ न ढाना पड़े । अनैतिक व्यवहार वह है जो अल्लाह की आदेशों का अवज्ञा करता है। कर्तव्य पथ पर चलने के भयानक एवं दुर्भाग्यपूर्ण नतीजे हो सकते हैं, पर इस्लाम कर्त्तव्य को प्राथमिक मानता है परिणाम को नहीं.परिणाम व्यवहार के मूल्यांकन के लिए एक मानदंड के रूप में काम नहीं कर सकता है। इसी का गलत फायदा उठाकर चरमपंथी धर्मगुरु नौजवानों को आतंकवादी घटना अंजाम देने के लिए मानसिक तौर पर तैयार करते हैं. उन्हें यह अच्छी तरह पढ़ा दिया जाता है कि अल्लाह के रास्ते पर चलते हुए बच्चे, औरतें, सामान्य नागरिक कोई भी मरें फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि तुम अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए ये सब कर रहे हो.
 
Disclaimer: किसी की धार्मिक भावना को आहत करना कतई
उद्देश्य नहीं है, उद्देश्य सिर्फ यह है कि हम एक दुसरे शांतिपूर्ण
सह अस्तित्व के सामने खड़े चुनौतियों को समझें और 
उसका समाधान करें .


Wednesday 20 March 2019

उड़ने दे गोरी गालों का गुलाल





बसंत पंचमी के दस्तक के साथ हीं मौसम बौराय लगा है, प्रकृति अपने नए रंगों में सज-धज कर हर जन सामान्य को अपने मादकता से मदहोश करने को बेताब होने लगी है.
फिर हमारा गाँव आंती भी इससे कैसे अछूता रह पाता. गाँव के अलग अलग दालान पर शाम होते हीं लोग इकठ्ठा होने लगे हैं. श्रृंगार और मस्ती से भरे होली गाए जाने लगे हैं. कुछ परदेसिया लोग  हैं जो अगजा के आस पास घर पहुंचेंगे.
देखते हीं देखते अगजा (होलिका दहन) का दिन भी आ गया है. बचवन सब बौरायेल है. घर घर घूम रहे हैं और अगजा जमा किया जा रहा है. लोगों को वानरी सेना के आने की सुचना देते हुए जम कर नारेबाजी हो रही है.
                        अगजा दे भाय कगजा दे; मन के ख़ुशी जलावन दे.”
गाँव बड़ा है और समय कम सो बच्चे अपने आप को अलग दलों में बाँट लिए हैं. पछियारी टोला के अनुजवा तो पुरवारी टोला के टेलीफोन सिंह नेतृत्व सम्हाले हुए हैं. देखते हीं देखते गढ़ पर जलावन का अम्बार खड़ा हो गया है. लेकिन ये क्या.
अचानक खेलावन चचा बच्चों की एक दल को खदेड़ते गुए गढ़ पर पहुँच गए हैं. खूब गलिया रहे हैं. जो मन में आया दिए जा रहे हैं.

माय बाप जलमा जलमा के छोड़ देलके ह, देख तो सार हमर खटीवा (bed) उठा के ले लैलके ह.

समझदार लोग बच्चों को समझाने और डांटने की सरकारी कोशिश कर रहे हैं पर साथ में खेलावन दा को चरका पढ़ाने की भी जबरजस्त कोशिश रहे हैं.
“की करभो ददा. इ सब सार बिगड़ के छाय हो गेले ह. माय बाप के सूनवे नै कर है तो हमर तोहर की सुनतै. जाय द अब अगजा पर रखल समान तो उठावल भी पापे है.”

बेचारे खेलावन दा का खटिया का लाइसेन्स बच्चन जी सब मिलके रिनिऊ कर दिहिस हैं.

शाम को ८  बजकर १५ मिनट पर अगजा जलाया जाएगा. सारी तैयारी हो चुकी है. संजय सिंह एक कच्चा बांस काट कर ले आये हैं. बांस को अगजा के ठीक बीचों बीच गाड़ दिया गया है. यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसपर सभी गाँव वालों की नजर रहती है. जी हाँ अक्सर लोग तब तक अगजा के पास हीं रुकेंगे जब तक गडा हुआ बांस किसी एक दिशा में गिर ना जाय. लोगों  की प्रार्थना है कि बांस अग्नि कोण में हीं गिरे. ऐसी मान्यता है कि ऐसा होने से आने वाला साल गाँव के सुख समृद्धि के लिए बहुत अच्छा रहता है.
गाँव वाले होली गाते हुए पहले अगजा का परिक्रमा कर रहे हैं. इसमे भी खूब ठिठोली चल रहा है. अगजा जलाने के लिए पंडित जी आ गए हैं. मंत्रोच्चारण के साथ अगजा फूंका गया है. देखते हीं देखते आग की लपटें आसमान छूने लगी है. सब लोग बूंट (चना) सेंक रहे हैं. जिसे प्रसाद के तौर पर सभी खाते हैं.
जैसे जैसे आग तमाम जलावन को निगलते जा रही है, बांस जो अभी तक शान से खड़ा था झुकने लगा है. यूँ तो रात का वक्त है पर गाँव वालों के चहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ साफ़ देखी जा सकती है. बांस अग्नि कोण के बजाय दूसरी दिशा में झुक गया है. लोग आपस में बतियाने लगे हैं. मलकाना जी कहते हैं,
            इ सब बारा टोल्वा बाला के देन है, गहिडवा बाबा (शंकर भगवन) गोसाल हखिन.

लेकिन देखते हीं देखते बांस की दिशा बदल गयी और फिर वही हुआ जो लोग चाहते थे. बांस अग्नि कोण में गिरा और लोग एक साथ जयकारा लगाये:
                                                “शंकर भगवान की जय”



आज होली है. सुबह में धूरखेली होगा फिर शाम को रंग अबीर खेला जाएगा. लगभग साढे नौ बजे हैं और सारे होलैया (होली गाने वाले का दल) नेता जी के बंगला पर जमा हो रहे हैं. एक विशेष शरबत का व्यवस्था हुआ है, जिसमे सुखा फल, भांग और चीनी मिलाया गया है. पर बच्चों के लिए एक बड़ी समस्या यह है कि वहां घनघोर एवं कठोर अनुशासन का पालन किया जा रहा है. बी एन सिंह और मत्तु सिंह दोनों मिलकर बच्चन जी को पास फटकने तक नहीं दे रहे हैं. क्यूंकि भांग का नशा बड़ा वैसा वाला होता है. कहते हैं कि भंग का रंग एक बार चढ़ जाय तो हंसने वाला हँसता ही रहता है और रोनेवाला रोता ही रहता है. जैसे तैसे कर के कुछ बच्चे अपना जुगाड़ फिट कर लिए हैं. अब तो होली भी शुरुर पकड़ने लगा है. इसी बीच होली अध्यक्ष श्री हारो दा ( मुखिया जी जो सत्तर साल के सबसे युवा व्यक्ति हैं) एवं उपाध्यक्ष श्री दिनेश शर्मा ( जो उनके कुर्सी के वारिस हैं) का पदार्पण हो गया है. अध्यक्ष जी गले में लौकी लटकाए हैं और उपाध्यक्ष जी बैंगन का माला पहने हुए हैं. भुनी का अभी अभी आये हैं और उनका औल टाइम फेवरिट होली शुरू हुआ है.
            “खम्भवा लागल ठाढ़, खम्भवा लागल ठाढ़; कारण की हौ गे गोरिया
            किया तोरा सास ननद गरियावौ, किया तोरा पिया परदेश हो.
               किया तोरा पिया परदेश, कारण की हौ गे गोरिया.”

बच्चन जी कोरस में सुर मिलाते हैं “ हो हो हो हो होली हो. उनकी औकात भी उतने की है. क्यूंकि पैरू भैया झटाक से डांट दे रहे हैं.
                        धत्त सार, ने गाव है ने गाव दे है.

होलैया का दल निकल चला है. गाँव के गली गली से होकर गुजरेगा और भौजी लोगों से खूब ठिठोली होगी. कोई कोई भौजी तो इतने खतरू हैं कि लोग कन्नी कटा के पहले हीं क्रॉस कर जाते हैं, लेकिन भौजी भी कहाँ पीछे रहने वाली हैं. आज तो मिटटी घोरके भर बालटा (बड़ा बालटी) सुबहे से मोर्चा सम्हाले हुई हैं. मजाल जो कोई बिना गिला हुए गली से निकल जाए. साला भौजी के नाम पर धब्बा न लग जाएगा. होलैया का आगमन हो गया है. मोर्चा दोनों तरफ से बराबर सम्हाल लिया गया है. पहला हमला रामपुर वाली भौजी ने किया, भर कटोरा कीचड़ सीधे पैरु भैया के ऊपर. फिर क्या जंग शुरू. पेरू भैया ने भुनी का को रोका जो अब ढोलक पर साथ दे रहे थे. और हो गए शुरू.
भैया मोर कबीर भले.
                             सैंयाँ अभागा ना जागा, नकबेषर कागा ले भागा.

शाम को रंग अबीर खेलते हुए, इसी तरह जगह जगह पर हमलों का सामना करते लोग आगे बढ़ते रहे और कारवां भी बढ़ता गया. 
कितनी बार भौजी लोग रंग का बैलून से सर्जिकल स्ट्राईक तो कभियो एयर स्ट्राईक भी कर रही हैं।

अब शर्मा जी, सूप जी, दरोगा जी, विधायक जी सब हुजूम में शामिल हो चुके थे. शेखर भी कहाँ मानने वाले थे. नवादा से सब छोड़ छाड़कर घर आ गए हैं. मस्ती भरी टोली आगे बढ़ चली है.  चलते चलते आखिर हम लोग अलगडीहा  पहुँच गए हैं. जद्दु शर्मा जी और हम सभी होलैया दल को छोड़ कर शर्मा जी की टीम ज्वाइन कर लिए हैं. शर्मा जी ने गमछे को सलीके से भौजाई कि तरह ओढ़ लिया है और फिर छेड़ दी सुर:

“चल जा रे हट नट खट तू छू मेरी घूंघट
पलट के दूंगी आज तुझे गाली रे
मोंहे समझो ना तू भोली भाली रे.
धरती है लाल आज, अम्बर है लाल
धरती है लाल आज, अम्बर है लाल
उड़ने दे गोरी गालों का गुलाल
मत लाज का आज घूँघट निकाल
दे दिल की धड़कन पे, धिनक धिनक ताल
झाँझ बजे शँख बजे, संग में मृदंग बजे
अंग में उमंग खुशियाली रे
आज मीठी लगे है तेरी गाली रे
अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मेरा घूँघट
पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे
मुझे समझो तुम भोली भाली रे”

बस अब घर लौट चलने की बारी थी. अपने दोस्तों के हाथ पकडे भारी कदम से सब लौट चले अपने अपने घोंसले को.

उन दिनों को आज दूर बैठ कर याद करने मात्र से जो रोमांच आज पैदा हो जाता है, वो किसी पीवीआर में बैठकर भी नहीं आ सकता है.

पर क्या करें जिंदगी की दौड़ है, सो दौड़ रहे हैं. न रास्ते का पता न मंजिल का, बस दौड़े चले जा रहे हैं.
इस उम्मीद में कि फिर कभी वो उजाला आएगा जब हम अपने गाँव की गलियों में भौजी के आक्रमण का सामना नए अध्यक्ष श्री दिनेश शर्मा जी के नेतृत्व में कर सकेंगे.

आप सभी साथियों को होली हार्दिक शुभकामनाएं.


Wednesday 13 March 2019

Holi ke hullad:होली के हुल्लड़



Register to vote for general election  
https://eci.gov.in/voter/voter/



भाभी की ताले की चाभी गुमी है, 
देवर सब बौराए हुए हैं.
फाग की आग में कूद के, देखो,  
बूढवन भी झुलसाए हए हैं.

राहुल, प्रियंका, ममता, माया,
लालू और अखिलेश को छोडो,
नीरव, मेहुल, और विजय भी 
२३ पे नजरें टिकाए हुए हैं.

दिव्य दृष्टि से देख के संजय, 
अरबिंद को समझाए रहे हैं.
आत्ममुग्ध, हे बौने सम्हल जा, 
मोदी जी लंका जलाए हुए हैं.

हे अभिनंदन, भारत नंदन, 
जबसे हुए हैं तेरे दर्शन;.
हिना रब्बानी भी हुई दीवानी, 
होली में आस लगाये हुए हैं.

Saturday 9 March 2019

जशोदा का अंतर्द्वंद

Register to vote
https://eci.gov.in/voter/voter/


जशोदा का अंतर्द्वंद
आज जशोदा बहुत ही खिन्न थी. विकाश के आदर्शवाद और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे भारी भरकम शब्दों के बोझ तले मानों दबी जा रही थी. घर के नियमित कामों में व्यस्त अपने आप को कोसते कोसते कब रसोईघर गई और चाय बना लाई, पता ही नहीं चला. 
जरा सा हिलने डुलने मात्र से चूं चां करने लग जाने वाली कुर्सी पर बैठकर लिक्कर चाय (काली चाय) की चुस्की लेते हुए जशोदा अपने आप से कानाफूसी करने लगी- ना जाने किस जनम के पापकर्म थे जो ऐसा निन्गोड़ा पति मिला है. इससे तो अच्छा होता कुंवारी ही मर जाती. चाय की निकोटिन भावनाओं के वेग को और गति प्रदान कर रही थी. भावनाओं का प्रबल प्रवाह आज सारी हदें पार कर जाने को मचल रही थी. जशोदा भी आज उसे पूरा सहयोग कर रही थी. वह बडबडाती जा रही थी- ” कौन समझाये इस मुन्हझौसें को कि स्कूल से लेकर कोचिंग क्लास तक, शब्जी वाले से लेकर दूधवाले तक सबके सब को रोकड़ा चाहिए होता है. वहां आदर्शवाद का चेक कोई नहीं लेता. इस कलमुंहे को क्या पता मुझपे क्या गुजरती है, जब गहनों से लदी शर्माइन मुझसे पूछती है, इस तीज भाई साहब ने आपको क्या प्रेजेंट किया? हाथ में चाय की प्याली लिए कुर्सी पर बैठी जशोदा एक टक बल्ब को घूरे जा रही थी. जब भी जशोदा विचारों की दुनिया में होती तो उसका एकमात्र सहचर हौल में लगा बल्ब हीं तो होता था. कब घंटा बीत गया पता ही नहीं चला. विचारों की दुनिया से जब जशोदा बाहर निकली तो बल्ब ने प्यार से कहा, जशोदा तुम्हारी चाय ठंढी हो गयी हैं , जाकर गरम कर लो. जशोदा एक आज्ञाकारी बालिका की तरह रसोईघर की ओर चल पड़ी.
घंटे भर के वैचारिक रस्साकस्सी के बाद चाय भी ख़त्म हो गई थी और विचारों का उच्छ्रिन्खल प्रवाह भी. एक सुकून भरा हल्कापन महसूस कर रही थी जशोदा. 
कहते हैं कि जिस तरह उबलते पानी में अपना अक्स भी साफ़ साफ़ नहीं दिखता ठीक उसी प्रकार विचारों की उफान में आप किसी की शख्सियत को भी ठीक से कहाँ परख पाते हैं. जो जशोदा घंटा भर पहले विकाश की इज्जत की मिट्टी पलीद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी, वही जशोदा यह सोच सोच कर मन ही मन फुदक रही थी कि मेरा  विकाश चाहे खुद के लिए और परिवार के लिए कितना ही कठोर क्यों न हो लेकिन दुनिया के लिए एक सच्चा सहृदयी इन्सान है. उसकी बेचारगी इस बात में है कि वह किसी दुखी को देखकर खुद दुखी हो जाता है, उसकी परेशानी का हल निकालने में वह इस कदर मशगुल हो जाता है कि…..
जशोदा के मन में विकाश के प्रति नाराजगी की भाव के मजबूत किले में सम्मान के भाव के सिपाहियों ने सेंधमारी शुरू कर दी थी.
क्रमश: जारी 

Friday 1 March 2019

Pakistan need to introspect,convince world that we don't condone terrorism



Register to vote in general election 2019






Who said what in Pakistani Parliament.


We need to introspect, convince world that we don't condone terrorism: Khawaja Asif
PML-N's Khawaja Asif, during a joint session of the parliament, has said that "we need to introspect and convince the world we don't condone terrorism."
"Our stance is right but we need introspection. We need to convince the world that we do not condone terrorism. We have been fighting terrorism for the past 17 years and are the only ones that are successful. The [parties] that were our assets until yesterday have today become our liabilities and we have to eliminate them.
"I said this at the Munich security conference that these [terrorists] were created and dumped on us by you [western powers]." — PML-N's Khawaja Asif
Pakistani parliament stands united, India's remains divided: Asad Umar


Finance Minister Asad Umar, in a joint session of the parliament, has said that the entire Pakistani parliament stands united unlike its Indian counterpart.


"Military leadership’s job is to protect and defend the country. But political leadership’s responsibility is to ensure that such a situation does not emerge in the first place. I am proud that in the past 72 hours, Pakistani political leadership has displayed exemplary unity, whereas Indian politicians are divided. We do not see any divide among Pakistanis." — Asad Umar

India has been the aggressor in entire conflict: Sherry Rehman


Senator Sherry Rehman, in a joint session of the parliament, has called out India for being the aggressor in the ongoing armed conflict with Pakistan.


"India has been the aggressor in this entire episode. They started it. Twenty-one parties in India have said that Modi is instigating a war for his personal political gains. We must notice this and appreciate them [Indian parties]. They have seen that no F-16 was shot down. We did not violate their borders, they committed an act of war." — Sherry Rehman

PPP co-chairperson Asif Ali Zardari says that Foreign Minister Shah Mahmood Qureshi should attend the OIC meeting but adds that he would accept the parliament's wishes on the matter.

"I am a democratic man and if the house thinks that foreign minister should not attend then I can’t say anything. But disengagement is not a solution. The foreign minister should attend the OIC meeting. Pakistan should be represented there.

"Our population is emotional, we are emotional and we think with emotions. Wars are fought against nations. If it comes to that we are ready for war. But that should be the last resort. Soft diplomacy is the need of the hour.

"I stand by my position that the foreign minister should go to the OIC. If not the foreign minister then the foreign secretary should go but we must be represented. We must not be cut off. We are one of the founding members and for this OIC our armed forces have fought wars. Small countries have become big powers; we must acknowledge that, but we can’t change others. We can [only] change our way of thinking." — Asif Ali Zardari

How to apply for enhanced Pension (EPS95) on EPFO web site: Pre 2014 retirees

                 Step wise guide A) Detailed steps. 1. Open EPFO pension application page using the link  EPFO Pension application The page ...