Dhaaraa370

Saturday 30 March 2019

Kanhaiya Kumar: Why I am a ‘detrimental politician’ – and why I must be defeated in the Lok Sabha election 2019


Kanhaiya Kumar: Why I am a ‘detrimental politician’ – and why I must be defeated in the #Lok Sabha #election 2019 (A Parody)




I shot into national limelight in February 2016 when, as president of Jawaharlal Nehru University Students’ Union, I was arrested and charged with sedition. it is time tested formula of becoming favorites of leftist forces, you can also try if you wish.

A video clearly showing me shouting slogans demanding “azadi”turned out to be real and the same was validated by national forensic lab. Almost three years later, a chargesheet was finally filed against me in January.

Report of Indian Express on March 3,2016 on my interim bail order states,
quote (.)

TAKING a strict view against alleged “anti-national slogans” raised on the campus of Jawaharlal Nehru University (JNU) on February 9, the Delhi High Court today granted six-month interim bail to JNUSU president Kanhaiya Kumar with the condition that he give an undertaking that he would not “actively or passively” participate in such an activity again.

The bench of Justice Pratibha Rani, in its order, held that “the thoughts reflected in the slogans raised by some of the students of JNU who organised and participated in that programme cannot be claimed to be protected as fundamental right to freedom of speech and expression”, and that the court would 

“consider this as a kind of infection which needs to be controlled/cured before it becomes an epidemic”.

“Whenever some infection is spread in a limb,” 
the court said, 
“effort is made to cure the same by giving antibiotics orally and if that does not work, by following second line of treatment. Sometimes it may require surgical intervention also. However, if the infection results in infecting the limb to the extent that it becomes gangrene, amputation is the only treatment.” unquote (.)

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Events unfolded in ways that I didn’t realise when I became a “detrimental politician”.

I am an academic by training. But we live in a society where me and people like me nurture and promote violence around us in various manifestations,  be it literal, mental or systemic to name a few- terrorism, naxalism, intellectual terrorism (which shamelessly promotes Goddess Durga as prostitue), urban naxalism and so on. 

So more than anything else, I am also an anti social activist.

I see it as my social responsibility to be part of an "Alter(ior)-motive politics". 

                          Yes you heard it right, "Alter (ior)-motive politics"

A politics that stands up and fights against nation and its citizens by nurturing, promoting, and spreading naxalism, anti national sentiments, terrorism and so on so forth.

A politics that dreams of an India that rises in support of every element what divides us, and deride and demotivate what unites us.

A politics that dreams of a society that truly values only and only leftist thinking, marxist values, and have no place for Vedic Knowledge and their supporters. you may safely call my philosophy of nation is anti sanatana philosophy.

A politics that dreams of a democracy strong enough like erstwhile USSR and present China and  not just to undo the progress of the past five years, but to spoil the opportunities of the coming 20.

That is why we fight. And this, is my story.


The story of who I am is not special. I was like most people around me. In school, I gave polio drops. In college, I worked at a coaching class. In Delhi, as I studied for Union Public Service Commission exams, I took up a job. My brother worked as a guard in Assam, and sent me money for UPSC coaching classes 
but I failed his all efforts by joining anti national elements, 
abusing our country and defence forces, deriding our gods and goddesses.
And rest assured  if you are not making me to loose my deposits, I will be thankful to you for  your anti social, anti sanatana and anti national verdict.




Friday 29 March 2019

इस्लाम को अपने इन सिद्धांतों को बदलना होगा.




“दर-अल-हरब” से “दर-अल- इस्लाम”  तक की यात्रा



   क्या इस्लाम उपनिवेशवाद को अभिन्न अंग मानता है?


इस्लामी धर्मशास्त्र में “दर अल-हरब” औरदर अल-इस्लाम” के मायने क्या हैं  । इन शब्दों का क्या मतलब है और यह मुस्लिम राष्ट्रों और चरमपंथियों को कैसे प्रवृत्त और प्रभावित करता है? आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह समझना और समझाना अति महत्वपूर्ण हो गया है ।

दर अल-हरब” और दर अल-इस्लाम” का अर्थ

सामान्य अर्थ में, दर अल-हरब” को "युद्ध या अराजकता का क्षेत्र" के रूप में समझा जाता है। यह उन क्षेत्रों के लिए नाम है जहां इस्लाम प्रभावी नहीं है या सत्ता में नहीं है या फिर जहां अल्लाह के आदेश को नहीं माना जाता है। इसलिए, वहां निरंतर संघर्ष ही आदर्श है, जब तक कि वहां भी इस्लाम का शासन स्थापित ना हो जाए. काश्मीर से कश्मीरी पंडितों को मार कर, महिलायों का बलात्कार कर भागने पर मजबूर कर देना और तमिलनाडु में श्री रामलिंगम जैसे लोगों की हत्या कर दिया जाना इस बात का गवाह है कि हिंदुस्तान जैसे "दर-अल-हरब" क्षेत्र में संघर्ष हीं इस्लाम का आदेश है. पाकिस्तान में हिन्दू युवतियों का अपहरण कर धर्मान्तरण करवाना यह साफ़ करता है कि जब तक आखिरी इंसान अल्लाह के आदेश के सामने झुक नहीं जाता इस्लाम का संघर्ष जारी रहना चाहिए.

इसके विपरीत, दर अल-इस्लाम” "अमन का क्षेत्र" है। यह उन क्षेत्रों/देशों के नाम है जहाँ इस्लाम का शासन  है और जहाँ अल्लाह के आदेश को माना जाता है। यह वह जगह है जहां अमन  और चैन राज करती है। पर इस सिद्धांत का खोखलापन आप ईरान,इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, फिलीस्तीन तथा अन्य इस्लामिक देशों की आतंरिक हालत से समझ सकते हैं.

पर भेद इतना सरल नहीं है जितना कि दिखाई देता है। दरअसल इस विभाजन का धर्म के बजाय कानूनी आधार माना जाता है। फर्ज कीजिये कि एक देश में इस्लामी सरकार है लेकिन वह आधुनिक मूल्यों के आधार पर चलता है जहाँ शरिया के बहुत से पुराने एवं अप्रासंगिक आदेशों को नहीं लागू किया जाता हो तो वैसे इस्लामी देश भी “दर अल-हरब”  अथवा "युद्ध या अराजकता का क्षेत्र" की श्रेणी में रखे जायेंगे और चरमपंथियों की कोशिश रहेगी कि संघर्ष या राजनितिक नियंत्रण कर के वहां भी अल्लाह के आदेशों को हुबहू लागू किया जाय.



एक मुस्लिम बहुल देश, जो इस्लामिक कानून से शासित नहीं है, अभी भी “दर-अल-हरब” है। इस्लामी कानून द्वारा शासित एक मुस्लिम-अल्पसंख्यक राष्ट्र भी “दर-अल-इस्लाम” का हिस्सा होने के योग्य है। जहाँ भी मुसलमान प्रभारी हैं और इस्लामी कानून लागू करते हैं, वहाँ “दर-अल-इस्लाम” है।

"युद्ध के क्षेत्र" का मतलब
दर-अल-हरब”, या  "युद्ध का क्षेत्र" को थोड़ा और विस्तार से समझने की आवश्यकता है। दर-अल-हरब” अथवा युद्ध के क्षेत्र के रूप में इसकी पहचान इस सिद्धांत  पर आधारित  है कि अल्लाह के आदेशों का अवहेलना करने का अनिवार्य परिणाम है संघर्ष अथवा युद्ध। जब हर कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करेगा, तो उसका परिणाम अमन और चैन होगा। यहाँ बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि जब तक विश्व का हर व्यक्ति इस्लाम को कबूल नहीं कर लेता, तब तक “अमन का क्षेत्र” या “ दर अल-इस्लाम”  कि स्थपाना नहीं मानी जायेगी और तब तक यह युद्ध जारी रहना चाहिए.
ध्यान देने योग्य  तथ्य यह है कि "युद्ध" दर-अल-हरब”और दर-अल-इस्लाम के बीच संबंध के बारे में भी वर्णन करता है। मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे अल्लाह के आदेश और इच्छा को पूरी मानवता के लिए लाएँ और यदि आवश्यक हो तो बलपूर्वक ऐसा करें।
दर-अल-हरब”को नियंत्रित करने वाली सरकारें इस्लामी  रूप से वैध शक्तियां नहीं हैं क्योंकि वे अल्लाह से अपने अधिकार प्राप्त नहीं करती हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वास्तविक राजनीतिक प्रणाली क्या है, इसे मौलिक और आवश्यक रूप से अमान्य माना जाता है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इस्लामिक सरकारें उनके साथ अस्थायी शांति संधियों में प्रवेश नहीं कर सकती हैं. व्यापार और सुरक्षा के लिए इस्लामिक सरकारें  दर-अल-हरब” को नियंत्रित करने वाली सरकारों के साथ  अस्थायी संधियाँ कर सकती हैं, जैसा कि पाकिस्तान और चीन के बीच देखा जा सकता है ।
सौभाग्य से, सभी मुसलमान वास्तव में गैर-मुस्लिमों के साथ अपने सामान्य संबंधों में इस तरह के व्यवहार नहीं करते हैं - अन्यथा, दुनिया शायद इससे भी बदतर स्थिति में होगी। पर यह भी कटु सत्य है कि आधुनिक समय में भी, इन सिद्धांतों और विचारों को कभी भी निरस्त नहीं किया गया है। उन सिद्धांतों को लागू किया जा रहा हो या नहीं पर ये सिद्धांत आज भी इस्लामिक समाज में गहरी जड़ें जमाई हुई है और उपयुक्त वातावरण पाते हीं उनका विकृत चेहरा हम सब को देखने को मिलता रहता है.


 
मुस्लिम राष्ट्रों और गैर मुस्लिम राष्ट्रों के सामने इस्लाम के 
औपनिवेशिक सिद्धांतों का सुरसा की तरह मुंह बाये चुनौतियाँ 
 
इस्लाम और अन्य संस्कृतियों और धर्मों के साथ शांतिपूर्वक सह-
अस्तित्व के लिए यह सिद्धांत एक बड़ी चुनौती के रूप में 
उपस्थित है. इसमें इस्लाम के अलावा अन्य सभी मान्यताओं के
अस्तित्व को हर पल एक खतरे का आभास बना रहता है। जहाँ
अन्य धर्मों ने अपने पुराने मान्यतायों को आधुनिक जरूरतों के 
अनुसार लगातार बदलता रहा वहीं इस्लाम आज भी इस तरह
के सिद्धांतों को ढो रहा है। यह न केवल गैर-मुसलमानों के लिए 
बल्कि स्वयं मुसलमानों के लिए भी गंभीर खतरे पैदा करता है।
 
ये खतरे इस्लामी चरमपंथियों की देन है जो उन पुराने विचारों 
को औसत मुस्लिम की तुलना में बहुत अधिक शाब्दिक अर्थो में
और अधिक गंभीरता से लेते हैं।यही कारण है कि  मध्य पूर्व में आधुनिक 
धर्मनिरपेक्ष सरकारों को भी पर्याप्त रूप से इस्लामी नहीं माना जाता है
 . ऐसे में  चरमपंथियों के अनुसार, यह उनका इस्लामिक फर्ज है कि काफिरों को सत्ता से 
पदच्युत कर पुनः अल्लाह का शासन स्थापित करे, चाहे उसके लिए 
कितना ही खून क्यूँ ना बहाना पड़े.

इस धारणा से उस रवैये को बल मिलता है कि यदि कोई क्षेत्र जो कभी दर अल-इस्लाम का हिस्सा था, वह दर अल-हरब के नियंत्रण में आता है, तो यह इस्लाम पर हमला माना जाएगा । इसलिए, सभी मुसलमानों का फर्ज  है कि वे खोई हुई भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष करें। यह विचार धर्मनिरपेक्ष अरब सरकारों के विरोध में न केवल कट्टरता को प्रेरित करता है, बल्कि इजरायल राज्य के अस्तित्व को भी चुनौती देता रहता है। चरमपंथियों के लिए, इज़राइल  दर अल-इस्लाम  क्षेत्र पर एक घुसपैठ  है और इस्लामी शासन को उस भूमि पर पुनः बहाल करने से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं है।
उपसंहार 
इस्लाम का कानून या अल्लाह का आदेश सभी लोगों तक पहुँचाने का धार्मिक लक्ष्य को लागू करने  के प्रयास में नतीजतन लोग मरेंगे  - यहां तक ​​कि मुस्लिम या गैर मुस्लिम, बच्चे और औरतें और अन्य सामान्य नागरिक कोई भी हो। और यह उन सबको भली प्रकार पता भी है. फिर भी वे अगर जान हथेली पर  लिए चलते हैं तो उसका कारण है इस्लाम का कर्तव्य के प्रति निष्ठा ना की परिणाम के प्रति. मुस्लिम नैतिकता कर्तव्य की नैतिकता है, परिणाम की नहीं। नैतिक व्यवहार वह है जो अल्लाह के आदेशों के अनुसार हो और जो अल्लाह की इच्छा का पालन करता हो चाहे परिणाम स्वरुप बच्चे और औरतों के ऊपर जुल्म क्यूँ न ढाना पड़े । अनैतिक व्यवहार वह है जो अल्लाह की आदेशों का अवज्ञा करता है। कर्तव्य पथ पर चलने के भयानक एवं दुर्भाग्यपूर्ण नतीजे हो सकते हैं, पर इस्लाम कर्त्तव्य को प्राथमिक मानता है परिणाम को नहीं.परिणाम व्यवहार के मूल्यांकन के लिए एक मानदंड के रूप में काम नहीं कर सकता है। इसी का गलत फायदा उठाकर चरमपंथी धर्मगुरु नौजवानों को आतंकवादी घटना अंजाम देने के लिए मानसिक तौर पर तैयार करते हैं. उन्हें यह अच्छी तरह पढ़ा दिया जाता है कि अल्लाह के रास्ते पर चलते हुए बच्चे, औरतें, सामान्य नागरिक कोई भी मरें फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि तुम अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए ये सब कर रहे हो.
 
Disclaimer: किसी की धार्मिक भावना को आहत करना कतई
उद्देश्य नहीं है, उद्देश्य सिर्फ यह है कि हम एक दुसरे शांतिपूर्ण
सह अस्तित्व के सामने खड़े चुनौतियों को समझें और 
उसका समाधान करें .


Wednesday 20 March 2019

उड़ने दे गोरी गालों का गुलाल





बसंत पंचमी के दस्तक के साथ हीं मौसम बौराय लगा है, प्रकृति अपने नए रंगों में सज-धज कर हर जन सामान्य को अपने मादकता से मदहोश करने को बेताब होने लगी है.
फिर हमारा गाँव आंती भी इससे कैसे अछूता रह पाता. गाँव के अलग अलग दालान पर शाम होते हीं लोग इकठ्ठा होने लगे हैं. श्रृंगार और मस्ती से भरे होली गाए जाने लगे हैं. कुछ परदेसिया लोग  हैं जो अगजा के आस पास घर पहुंचेंगे.
देखते हीं देखते अगजा (होलिका दहन) का दिन भी आ गया है. बचवन सब बौरायेल है. घर घर घूम रहे हैं और अगजा जमा किया जा रहा है. लोगों को वानरी सेना के आने की सुचना देते हुए जम कर नारेबाजी हो रही है.
                        अगजा दे भाय कगजा दे; मन के ख़ुशी जलावन दे.”
गाँव बड़ा है और समय कम सो बच्चे अपने आप को अलग दलों में बाँट लिए हैं. पछियारी टोला के अनुजवा तो पुरवारी टोला के टेलीफोन सिंह नेतृत्व सम्हाले हुए हैं. देखते हीं देखते गढ़ पर जलावन का अम्बार खड़ा हो गया है. लेकिन ये क्या.
अचानक खेलावन चचा बच्चों की एक दल को खदेड़ते गुए गढ़ पर पहुँच गए हैं. खूब गलिया रहे हैं. जो मन में आया दिए जा रहे हैं.

माय बाप जलमा जलमा के छोड़ देलके ह, देख तो सार हमर खटीवा (bed) उठा के ले लैलके ह.

समझदार लोग बच्चों को समझाने और डांटने की सरकारी कोशिश कर रहे हैं पर साथ में खेलावन दा को चरका पढ़ाने की भी जबरजस्त कोशिश रहे हैं.
“की करभो ददा. इ सब सार बिगड़ के छाय हो गेले ह. माय बाप के सूनवे नै कर है तो हमर तोहर की सुनतै. जाय द अब अगजा पर रखल समान तो उठावल भी पापे है.”

बेचारे खेलावन दा का खटिया का लाइसेन्स बच्चन जी सब मिलके रिनिऊ कर दिहिस हैं.

शाम को ८  बजकर १५ मिनट पर अगजा जलाया जाएगा. सारी तैयारी हो चुकी है. संजय सिंह एक कच्चा बांस काट कर ले आये हैं. बांस को अगजा के ठीक बीचों बीच गाड़ दिया गया है. यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसपर सभी गाँव वालों की नजर रहती है. जी हाँ अक्सर लोग तब तक अगजा के पास हीं रुकेंगे जब तक गडा हुआ बांस किसी एक दिशा में गिर ना जाय. लोगों  की प्रार्थना है कि बांस अग्नि कोण में हीं गिरे. ऐसी मान्यता है कि ऐसा होने से आने वाला साल गाँव के सुख समृद्धि के लिए बहुत अच्छा रहता है.
गाँव वाले होली गाते हुए पहले अगजा का परिक्रमा कर रहे हैं. इसमे भी खूब ठिठोली चल रहा है. अगजा जलाने के लिए पंडित जी आ गए हैं. मंत्रोच्चारण के साथ अगजा फूंका गया है. देखते हीं देखते आग की लपटें आसमान छूने लगी है. सब लोग बूंट (चना) सेंक रहे हैं. जिसे प्रसाद के तौर पर सभी खाते हैं.
जैसे जैसे आग तमाम जलावन को निगलते जा रही है, बांस जो अभी तक शान से खड़ा था झुकने लगा है. यूँ तो रात का वक्त है पर गाँव वालों के चहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ साफ़ देखी जा सकती है. बांस अग्नि कोण के बजाय दूसरी दिशा में झुक गया है. लोग आपस में बतियाने लगे हैं. मलकाना जी कहते हैं,
            इ सब बारा टोल्वा बाला के देन है, गहिडवा बाबा (शंकर भगवन) गोसाल हखिन.

लेकिन देखते हीं देखते बांस की दिशा बदल गयी और फिर वही हुआ जो लोग चाहते थे. बांस अग्नि कोण में गिरा और लोग एक साथ जयकारा लगाये:
                                                “शंकर भगवान की जय”



आज होली है. सुबह में धूरखेली होगा फिर शाम को रंग अबीर खेला जाएगा. लगभग साढे नौ बजे हैं और सारे होलैया (होली गाने वाले का दल) नेता जी के बंगला पर जमा हो रहे हैं. एक विशेष शरबत का व्यवस्था हुआ है, जिसमे सुखा फल, भांग और चीनी मिलाया गया है. पर बच्चों के लिए एक बड़ी समस्या यह है कि वहां घनघोर एवं कठोर अनुशासन का पालन किया जा रहा है. बी एन सिंह और मत्तु सिंह दोनों मिलकर बच्चन जी को पास फटकने तक नहीं दे रहे हैं. क्यूंकि भांग का नशा बड़ा वैसा वाला होता है. कहते हैं कि भंग का रंग एक बार चढ़ जाय तो हंसने वाला हँसता ही रहता है और रोनेवाला रोता ही रहता है. जैसे तैसे कर के कुछ बच्चे अपना जुगाड़ फिट कर लिए हैं. अब तो होली भी शुरुर पकड़ने लगा है. इसी बीच होली अध्यक्ष श्री हारो दा ( मुखिया जी जो सत्तर साल के सबसे युवा व्यक्ति हैं) एवं उपाध्यक्ष श्री दिनेश शर्मा ( जो उनके कुर्सी के वारिस हैं) का पदार्पण हो गया है. अध्यक्ष जी गले में लौकी लटकाए हैं और उपाध्यक्ष जी बैंगन का माला पहने हुए हैं. भुनी का अभी अभी आये हैं और उनका औल टाइम फेवरिट होली शुरू हुआ है.
            “खम्भवा लागल ठाढ़, खम्भवा लागल ठाढ़; कारण की हौ गे गोरिया
            किया तोरा सास ननद गरियावौ, किया तोरा पिया परदेश हो.
               किया तोरा पिया परदेश, कारण की हौ गे गोरिया.”

बच्चन जी कोरस में सुर मिलाते हैं “ हो हो हो हो होली हो. उनकी औकात भी उतने की है. क्यूंकि पैरू भैया झटाक से डांट दे रहे हैं.
                        धत्त सार, ने गाव है ने गाव दे है.

होलैया का दल निकल चला है. गाँव के गली गली से होकर गुजरेगा और भौजी लोगों से खूब ठिठोली होगी. कोई कोई भौजी तो इतने खतरू हैं कि लोग कन्नी कटा के पहले हीं क्रॉस कर जाते हैं, लेकिन भौजी भी कहाँ पीछे रहने वाली हैं. आज तो मिटटी घोरके भर बालटा (बड़ा बालटी) सुबहे से मोर्चा सम्हाले हुई हैं. मजाल जो कोई बिना गिला हुए गली से निकल जाए. साला भौजी के नाम पर धब्बा न लग जाएगा. होलैया का आगमन हो गया है. मोर्चा दोनों तरफ से बराबर सम्हाल लिया गया है. पहला हमला रामपुर वाली भौजी ने किया, भर कटोरा कीचड़ सीधे पैरु भैया के ऊपर. फिर क्या जंग शुरू. पेरू भैया ने भुनी का को रोका जो अब ढोलक पर साथ दे रहे थे. और हो गए शुरू.
भैया मोर कबीर भले.
                             सैंयाँ अभागा ना जागा, नकबेषर कागा ले भागा.

शाम को रंग अबीर खेलते हुए, इसी तरह जगह जगह पर हमलों का सामना करते लोग आगे बढ़ते रहे और कारवां भी बढ़ता गया. 
कितनी बार भौजी लोग रंग का बैलून से सर्जिकल स्ट्राईक तो कभियो एयर स्ट्राईक भी कर रही हैं।

अब शर्मा जी, सूप जी, दरोगा जी, विधायक जी सब हुजूम में शामिल हो चुके थे. शेखर भी कहाँ मानने वाले थे. नवादा से सब छोड़ छाड़कर घर आ गए हैं. मस्ती भरी टोली आगे बढ़ चली है.  चलते चलते आखिर हम लोग अलगडीहा  पहुँच गए हैं. जद्दु शर्मा जी और हम सभी होलैया दल को छोड़ कर शर्मा जी की टीम ज्वाइन कर लिए हैं. शर्मा जी ने गमछे को सलीके से भौजाई कि तरह ओढ़ लिया है और फिर छेड़ दी सुर:

“चल जा रे हट नट खट तू छू मेरी घूंघट
पलट के दूंगी आज तुझे गाली रे
मोंहे समझो ना तू भोली भाली रे.
धरती है लाल आज, अम्बर है लाल
धरती है लाल आज, अम्बर है लाल
उड़ने दे गोरी गालों का गुलाल
मत लाज का आज घूँघट निकाल
दे दिल की धड़कन पे, धिनक धिनक ताल
झाँझ बजे शँख बजे, संग में मृदंग बजे
अंग में उमंग खुशियाली रे
आज मीठी लगे है तेरी गाली रे
अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मेरा घूँघट
पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे
मुझे समझो तुम भोली भाली रे”

बस अब घर लौट चलने की बारी थी. अपने दोस्तों के हाथ पकडे भारी कदम से सब लौट चले अपने अपने घोंसले को.

उन दिनों को आज दूर बैठ कर याद करने मात्र से जो रोमांच आज पैदा हो जाता है, वो किसी पीवीआर में बैठकर भी नहीं आ सकता है.

पर क्या करें जिंदगी की दौड़ है, सो दौड़ रहे हैं. न रास्ते का पता न मंजिल का, बस दौड़े चले जा रहे हैं.
इस उम्मीद में कि फिर कभी वो उजाला आएगा जब हम अपने गाँव की गलियों में भौजी के आक्रमण का सामना नए अध्यक्ष श्री दिनेश शर्मा जी के नेतृत्व में कर सकेंगे.

आप सभी साथियों को होली हार्दिक शुभकामनाएं.


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