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(#Religious #conversion: a pertinacity)
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#धर्मपरिवर्तन: एक दुराग्रह
क्या मिला हमने कभी सोचा नहीं
देश को अपना लहू हमने दिया,
लोग जीते हैं डरे, सहमे यहाँ,
मौत से आँखें मिला हमने जिया.- एक सैनिक
आज जब देश के दुश्मन टेढ़ी नजरें टिकाये हुए
हैं, देश के जांबाज दिन रात सीमा पर कठिनतम हालत में भारत मां की सुरक्षा में
मुस्तैद हैं और आये दिन शहादत दे रहे हैं; तो दूसरी ओर हमारे राजनीतिज्ञ सिर्फ
सत्ता सुख के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को बेसब्र हो रहे हैं.
ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. हमें न
सिर्फ दुश्मनों के कुत्सित चालों के प्रति सतर्क रहने की जरुरत है बल्कि अपने देश
के अन्दर ही फलफूल रहे #भ्रष्टाचार, व्यभिचार, हत्या, अपराध, #घरेलु हिंसा, #महिलाओं
पर अत्याचार, #बेरोजगारी, भुखमरी, अशिक्षा जैसे भयानक दुश्मनों को खत्म करने कि
दिशा में एक कदम बढ़ाना होगा.
आज देश अपने नागरिकों से क़ुरबानी चाहती है.
क़ुरबानी, एक ऐसी क़ुरबानी जो शहादत से भी ज्यादा कठिन और प्रभावकारी है. एक ऐसी
क़ुरबानी जो जिन्दा रहकर दिया जा सकता है. जी हाँ, आप चाहें तो देश को एक बेहतर देश
बनाने के लिए ऐसी क़ुरबानी दे सकते हैं. आइये देखें वो कुर्बानियां क्या क्या हो
सकती हैं.
इस श्रृंखला में पहला स्थान है, क़ुरबानी गलत
मान्यताओं की, गलत धारणाओं की, गलत विचारणाओं की.
इसमें भी सबसे पहली प्राथमिकता #धर्म को लेकर
फैले गलत मान्यताओं, गलत धारणाओं, गलत विचारणाओं की क़ुरबानी देने की आती है.
आचरण की श्रेष्ठता, विचारों की उत्कृष्टता और
भावनाओं कि पवित्रता हीं धर्म का व्यवहारिक लक्ष्य है, जिसका परिपालन हर मानव को
करनी चाहिए. धर्म का वास्तविक तात्पर्य ही है- मानवी चेतना में ऐसी सत्प्रवृतियों
का समावेश जो सदाचरण, सद्भावना और कर्तव्यपालन के रूप में वातावरण को उल्लासपूर्ण
बनाने में समर्थ हो. धर्म को धारण करने वाले, धर्म के आधार पर अपने जीवन को
जीनेवाले, कर्तव्य परायणता को प्रमुखता देने वाले व्यक्ति ही सही अर्थों में
धार्मिक, धर्मात्मा और धर्म परायण कहे जाने के हकदार हैं.
मानवधर्म आत्मा की एकता (एको अहम् बहुस्यामः),
समता, सुचिता, शालीनता और उदार सहकारिता की आस्था पर आधारित है. उसमे विग्रह-द्वेष
की कहीं कोई गुंजाईश नहीं है. अड़चन तब पैदा होती है जब विभिन्न सम्प्रदायों के बीच
पाई जानेवाली भिन्नताओं तथा परम्पराओं को ही लोग सब कुछ मनाकर दुराग्रह पूर्वक यह
कहते सुनते पाए जाते हैं कि हमारी
मान्यताएं एवं परम्पराएँ ही सही हैं . इसके अतिरिक्त सब झूठे हैं. अपनी धर्म
ग्रंथों में जो कहा गया है वही ईश्वर का वचन है और जिसकी मान्यताएं इससे भिन्न हैं
उन्हें इस धरती पर रहने का कोई हक नहीं है. यह मान्यता हीं धर्मपरिवर्तन के चलन को
बढ़ावा देती है और यही विग्रह-विद्वेष का कारण बनती हैं. विवेकवान, उदारचेता इससे
बचते हैं और अन्यान्यों को भी बचाते हैं.
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