Dhaaraa370

Tuesday 16 October 2018

विज्ञान और धर्म की आस्तिकता - नास्तिकता



विज्ञान कहने से सामान्य तौर पर हम भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान समझते हैं. और तो और जीव विज्ञान तो अपना दायरा सिर्फ शारीरिक पक्ष तक हीं सीमित कर रखा  है. जबकि शरीर में  शारीरिक पक्ष से कई गुना बड़ा  दायरा, शुक्ष्म एवं कारण शरीर का है जो जीव विज्ञान के दायरे में है ही नहीं.

धर्म के दायरे में हम सिर्फ धार्मिक कर्मकांडों - बाबा, मौलवी और पादरी - मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों को लाते हैं.

लेकिन दृष्टिकोण बदलते हीं आप देखेंगे कि विज्ञान का दायरा वहीं  जाकर ख़त्म होता है जहाँ धर्म (आध्यात्म) का दायरा. और वह दायरा है  "अंतिम सत्य का अन्वेषण" .

अब सवाल यह खड़ा होता है की आखिर वह अंतिम सत्य है क्या? कोई अंतिम सत्य  हो भी सकता है क्या?

आगे बढ़ने से पहले आइये एक नजर डालते है,  समाज  ने विज्ञान एवं धर्म के माध्यम से क्या खोया क्या पाया?

विज्ञान (भौतिक) ने  समाज को नित्य नए  तकनीक दे रही  है जिससे जीवनयापन को आसान से आसान बनाया जा सकता है. उद्योग, संचार, ट्रांसपोर्टेशन, मेडिकल सुविधा, आर्तिफ़िसिअल इंटेलिजेंस वगैरह वगैरह. इससे ऊपर कुछ किया भी नहीं है और किया जा भी नहीं सकता है.

साथ में इसने हमें दिया है अस्त्र शस्त्रों का जखीरा, नए नए जानलेवा रोग जिससे न सिर्फ लाखों रोगी तमाम मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा को भोगने को मजबूर हैं बल्कि सामूहिक विध्वंस के अस्त्र शस्त्र दुनिया को मिटाने के लिए बेताब हो रहे  हैं.

धर्मं ने हमें यह सिखाया है कि हमें अपने ज्ञान एवं कर्मेन्द्रियों का बेहतर और उचित इस्तेमाल कैसे करना है ताकि हम अच्छे भाई-बहन, अच्छे पति-पत्नी, अच्छे माँ-पिता और अच्छे नागरिक बन सकें और अंततः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कर सकें.

साथ में इसने हमें दिया है अंधविश्वास और अंधभक्ति जिसके चपेट में आकर हमारे मासूम भाई बहन न सिर्फ अपनी जिंदगी बरबाद कर लेते हैं बल्कि सामजिक एवं देश के विकाश के लिए हानिकारक भी सिद्ध होते हैं.

अगर हम विज्ञान के शिक्षा पक्ष (बुध्धि) और धर्म के ज्ञान पक्ष (विवेक) को एक साथ मिला दें तो न सिर्फ हमारी व्यक्तिगत जीवन यात्रा शानदार हो जाती है बल्कि हम एक ऐसे समाज की रचना कर पाते हैं   जहाँ न अश्पृश्यता होगा न भुखमरी, ना आतंकवाद होगा और न अज्ञान , ना चाटुकारिता होगी न शोषण.

फिर हम विज्ञान के "बिग बैंग सिद्धांत" और "धर्म के एकोअहम बहुश्यामः" सिद्धांत की समानता को समझ पायेंगे. दोनों ही हमें उस अंतिम सत्य तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा है कि हम सभी एक ही उर्जा का विभिन्न अभिव्यक्ति मात्र हैं, हम सब एक ही इश्वर के संतान हैं.

धर्मपूर्ण विज्ञान और वैज्ञानिक अध्यात्म (धर्म) इस वक्त की मांग हैं और पंडित श्री राम शर्मा आचार्य (अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक) ने वैज्ञानिक अध्यात्म का प्रतिपादन करने के पश्चात यह घोषणा कई दशक पहले कर चुकें हैं की वैज्ञानिक अध्यात्मवाद ( गायत्री विद्या एवं यज्ञ विज्ञान) के द्वारा धरती पर स्वर्ग का अवतरण तय है.
गायत्री विद्या हमारे चिंतन एवं ज्ञान पक्ष को  जबकि यज्ञ विज्ञान हमारे कर्म  पक्ष को सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक  बनाता है.
यही है हमारे भारत के धर्मं एवं ऋषि परंपरा का वैज्ञानिक अध्यात्मवाद .



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