कुछ बातें बेकार सही मगर बतानी जरुरी है.
जब किसी रोज, थोडा खुद को खोने लगोगे
खुली आँखों में जब, तुम सोने लगोगे ,
जब बातें, वो रातें,
और वो कुछ प्यारी सी मुलाकातें
सब कुछ थोडा भूलने लगोगे
उस गम के झूले में तुम झूलने लगोगे,
तब याद रखना कि, अक्सर
लोग तुम्हारी उलझनों में, उलझना छोड़ देंगे,
सुनेंगे जरुर, पर शायद समझना छोड़ देंगे,
रिश्तों में आती है कड़वाहटे, दुस्वारियां होती हैं,
जब वो चले जातें हैं, उनकी भी जिम्मेदारियां होती हैं,
तू पूछेगा, कि सिर्फ मैं हीं क्यूँ ?
सिर्फ मुझे हीं क्यूँ ये झेलना पड़ रहा है?
इन अँधेरी तंग गलियों में,
मुझे हीं अकेले क्यूँ खेलना पड़ रहा है?
तो कुछ गलत कदम उठाने से पहले
सिर्फ इस आखिरी पंक्ति को पढ़ लेना,
जो लोग कठिनाइयों के सागर को पार कर आते हैं,
उनकी आँखों में, अजब सी नूरी होती है,
अब सच मानों तो ये बातें बेकार जरुर हैं,
पर कुछ बातें बतानी जरुरी होती है .
हर्ष शांडिल्य
(Published
in Abhivyakti magazine of BITS GOA)
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