राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की ये पंक्तियां आज भी हमारे देश-समाज पर अक्षरशः लागू होती है.
समर निंद्य है धर्मराज, पर,
कहो, शान्ति वह क्या है,
जो अनीति पर स्थित होकर भी
बनी हुई सरला है?
कहो, शान्ति वह क्या है,
जो अनीति पर स्थित होकर भी
बनी हुई सरला है?
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- सुख-समृद्धि का विपुल कोष
- संचित कर कल, बल, छल से,
- किसी क्षुधित का ग्रास छीन,
- धन लूट किसी निर्बल से।
सब समेट, प्रहरी बिठला कर
कहती कुछ मत बोलो,
शान्ति-सुधा बह रही न इसमें
गरल क्रान्ति का घोलो।
कहती कुछ मत बोलो,
शान्ति-सुधा बह रही न इसमें
गरल क्रान्ति का घोलो।
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- हिलो-डुलो मत, हृदय-रक्त
- अपना मुझको पीने दो,
- अचल रहे साम्राज्य शान्ति का,
- जियो और जीने दो।
सच है सत्ता सिमट-सिमट
जिनके हाथों में आयी,
शान्तिभक्त वे साधु पुरुष
क्यों चाहें कभी लड़ाई ?
जिनके हाथों में आयी,
शान्तिभक्त वे साधु पुरुष
क्यों चाहें कभी लड़ाई ?
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- सुख का सम्यक-रूप विभाजन
- जहाँ नीति से, नय से
- संभव नहीं; अशान्ति दबी हो
- जहाँ खड्ग के भय से,
जहाँ पालते हों अनीति-पद्धति
को सत्ताधारी,
जहाँ सूत्रधर हों समाज के
अन्यायी, अविचारी;
को सत्ताधारी,
जहाँ सूत्रधर हों समाज के
अन्यायी, अविचारी;
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- नीतियुक्त प्रस्ताव सन्धि के
- जहाँ न आदर पायें;
- जहाँ सत्य कहने वालों के
- सीस उतारे जायें;
जहाँ खड्ग-बल एकमात्र
आधार बने शासन का;
दबे क्रोध से भभक रहा हो
हृदय जहाँ जन-जन का;
आधार बने शासन का;
दबे क्रोध से भभक रहा हो
हृदय जहाँ जन-जन का;
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- सहते-सहते अनय जहाँ
- मर रहा मनुज का मन हो;
- समझ कापुरुष अपने को
- धिक्कार रहा जन-जन हो;
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